धरना प्रदर्शन पर बैठने से रोकना को ग्रामीणों ने बताया लोकतांत्रिक व्यवस्था का हनन

चालियामा मौजा में बिना ग्रामसभा की सहमति व बिना जनसुनवाई किये ही कंपनी खोलने के विरोध में बुधवार को राजनगर प्रखंड सह अंचल कार्यालय के सामने एक दिवसीय धरना प्रदर्शन करने वाले थे. लेकिन एसडीओ कार्यालय से धरना प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी. इसपर ग्रामीणों ने नाराजगी जताया है.

By Dashmat Soren | July 10, 2024 9:36 PM

जमशेदपुर: चालियामा मौजा में बिना ग्रामसभा की सहमति व बिना जनसुनवाई किये ही कंपनी खोलने के विरोध में बुधवार को राजनगर प्रखंड सह अंचल कार्यालय के सामने एक दिवसीय धरना प्रदर्शन करने वाले थे. लेकिन एसडीओ कार्यालय से धरना प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी. इसपर ग्रामीणों ने नाराजगी जताया है. ग्रामीणों का कहना है कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनता को अपनी आपत्ति को दर्ज करने व अपनी बातों को संबंधित अधिकारी तक पहुंचाने के लिए धरना प्रदर्शन करने का अधिकार है. लेकिन प्रजातांत्रिक तरीके से राजनगर प्रखंड सह अंचल कार्यालय के सामने धरना प्रदर्शन नहीं करने देना लोकतांत्रिक व्यवस्था का हनन करने जैसा है. उनका कहना है कि ग्रामीणों की आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है. जो अनुचित है. उन्हें आशंका है कि सरकारी पदाधिकारी व कंपनी आपस मिले हुए हैं. सरकारी पदाधिकारी गुपचुप तरीके से बिना ग्रामसभा की सहमति व बिना जनसुनवाई के कंपनी को स्थापित करने में मदद कर रहे हैं. यदि ऐसा नहीं है तो कंपनी लगाने की प्रक्रिया को शुरू करने से पहले विधिवत ग्रामसभा से सहमति ली जाती. साथ ही जनसुनवाई भी किया जाता. पदाधिकारी द्वारा सारे नियम व कानून को ताक पर रखकर गरीब- गुरबों को साजिश के तहत ठगने का काम किया जा रहा है. पदाधिकारियों की इस प्रयास को किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने दिया जायेगा. जरूरत पड़ी तो इसके लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जायेगा. बुधवार को चालियामा मौजा के ग्रामीणों का एक प्रतिनिधिमंडल ने एसडीओ से मुलाकात की और अपनी समस्याओं से अवगत कराया. साथ ही एक लिखित मांग पत्र भी सौंपा. सौंपे गये ज्ञापन में कहा गया है कि अंचल कार्यालय व राजनगर थाना ने कंपनी की मिलीभगत से उनके धरना प्रदर्शन को रोकने का काम किया है. धरना प्रदर्शन की अनुमति नहीं देकर ग्रामीणों की आवाज को दबाया जा रहा है. प्रतिनिधिमंडल ने मामले की उचित जांच कर ग्रामीणों के साथ न्याय करने की मांग की है. प्रतिनिधिमंडल में करिया हेंब्रम, अजय मुर्मू, विश्वनाथ हेंब्रम, रायराय मुर्मू, विशु पूर्ति, राज बांकिरा, इंद्र हेंब्रम समेत अन्य शामिल थे.
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सांठ-गांठ से सभी नियम व कानूनों को नजरअंदाज करने का आरोप
आदिवासी छात्र एकता के इंद्र हेंब्रम ने आरोप लगाया है कि सरकारी पदाधिकारी और कंपनियों के बीच मिलीभगत से आदिवासियों के अधिकारों का हनन हो रहा है. उन्होंने कहा कि बिना ग्रामसभा की सहमति और जनसुनवाई के कंपनी स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है. यदि सही तरीके से काम किया जाता, तो पहले ग्रामसभा से विधिवत सहमति ली जाती और जनसुनवाई आयोजित की जाती. इंद्र हेंब्रम ने स्पष्ट किया कि आदिवासी समाज विकास विरोधी नहीं है, लेकिन अपने हक और अधिकार से वंचित होना स्वीकार नहीं करेगा. सरकारी अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं और जनता पर जबरन व्यवस्था थोप रहे हैं. यह स्थिति पूरी तरह से अस्वीकार्य है और आदिवासी समाज इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगा. यदि आवश्यक हुआ, तो न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाएगा. इंद्र हेंब्रम ने यह भी कहा कि सरकारी अधिकारियों और कंपनियों की इस सांठ-गांठ से सभी नियम और कानूनों को नजरअंदाज कर दिया जा रहा है. आदिवासी समाज अपने अधिकारों की रक्षा के लिए पूरी तरह तैयार है और न्याय की मांग करेगा.

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