विकास श्रीवास्तव
Jamshedpur News: पर्यावरणीय असंतुलन और वन्य प्राणियों पर छाये संकट के बीच दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी से अच्छी खबर सामने आयी है. हाथियों के लिए संरक्षित दलमा की सेंसस रिपोर्ट-2022 जारी कर दी गयी है. इस बार की गणना में हाथी, बंदर, जंगली मुर्गी, सूअर, मोर, लाल गिलहरी, मयूर (मोर) और लोमड़ी की संख्या में दोगुना से तीन गुना तक वृद्धि दर्ज की गयी है.
रिपोर्ट के मुताबिक हाथियों की संख्या 67 से बढ़ कर 104 हो गयी है. साल 2019 में हाथियों की संख्या 67 थी. वहीं, वर्ष 2018 में यह संख्या महज 48 थी. सेंसस रिपोर्ट-2022 के मुताबिक, दलमा में 27 की संख्या में अजगर भी पाये गये हैं. वर्ष 2014 के बाद से लकड़बग्घा के विलुप्त होने की रिपोर्ट दर्ज की गयी थी. वर्ष 2018 तक यहां लकड़बग्घा नहीं पाये गये थे. लेकिन, वर्ष 2019 में दो लकड़बग्घा दिखे. अच्छी बात यह है कि वर्ष 2022 की सेंसस रिपोर्ट में यहां लकड़बग्घा की संख्या तीन हो गयी है.
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वर्ष 2019 के मुकाबले भालुओं की संख्या 19 से बढ़ कर 21 हो गयी है. वहीं, एक भेड़िया और एक सिवेट कैट (बिल्ली) भी देखे गये हैं. दरअसल, वर्ष 2020 में सेंसस नहीं कराया जा सका था, जबकि वर्ष 2021 की रिपोर्ट अब तक जारी नहीं की गयी है. गज परियोजना जमशेदपुर और दलमा वन आश्रयणी के डीएफओ ने बताया कि जानवरों की सुरक्षा, निवास स्थान को उपयोगी बनाने में काफी मेहनत की गयी है. दलमा के जानवर सुरक्षित हो रहे हैं. यह सेंसस रिपोर्ट से साबित हो रहा है.
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दलमा रेंज के डीएफओ अभिषेक कुमार ने हाथियों के संबंध में बताया कि हाथी माइग्रेट करते हैं. पश्चिम बंगाल से दलमा और वापस लौटने से संख्या में उतार- चढ़ाव भी दर्ज किया जाता है. दलमा अभ्यारण्य में आने-जाने के अलग- अलग रास्तों में चेक नाका भी बनाये गये हैं, ताकि शिकारियों पर नजर रखी जा सके. लाल गिलहरी, बंदर और पक्षियों के अनुकूल फलदार वृक्ष लगाये गये हैं तो वहीं कटाशनी पहाड़ में भालू की गुफा भी है.
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हाथी – 105
भालू – 21
जंगली सूअर – 305
बार्किंग डियर (कोटरा) – 86
लंगूर – 29
बंदर – 835
जंगली कुत्ता – 05
रेटल – 09
लाल गिलहरी – 87
जंगली मुर्गी – 307
लकड़बग्घा – 03
नेवला – 66
मयूर (मोर) – 216
खरहा (खरगोश) – 93
साहिल – 28
लोमड़ी – 20
जंगली बिल्ली – 06
तोता व बुलबुल – 371
पाइथन – 27
सिवेट कैट – 01
भेड़िया – 01
दलमा में वन्य जीवों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गयी है. दलमा का माहौल वन्य जीवों को पसंद आ रहा है. जानवर सुरक्षित रहे, इसके लिए हर स्तर से प्रयास किये जा रहे हैं. सेंदरा पर्व में शिकार नहीं होना भी इसके लिए कारगर रहा.
अभिषेक कुमार, डीएफओ, दलमा