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मजदूरों के शहर में हाशिये पर श्रमिक यूनियनों के नेता, नहीं जीत पा रहे राजनीतिक दलों का भरोसा

Jamshedpur Vidhan Sabha: इस बार कांग्रेस समेत अन्य दलों में मजदूर नेताओं को टिकट देने की आवाज उठ रही है. मजदूर नेता अपनी दावेदारी भी कर रहे हैं.

Jamshedpur Vidhan Sabha|Jharkhand Assembly Election 2024|जमशेदपुर (पूर्वी सिंहभूम), ब्रजेश सिंह : झारखंड में विधान सभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है. कोल्हान की सभी 14 सीटों पर टिकट को लेकर छोटे-बड़े सभी दलों में मंथन चल रहा है. सभी दलों का लक्ष्य है कि जीत दर्ज कराने वाले प्रत्याशी को ही टिकट दिया जाये. जमशेदपुर समेत पूरे कोल्हान क्षेत्र में मजदूर वोटरों की संख्या काफी है.

मजदूर नेताओं पर कम हुआ राजनीतिक दलों का भरोसा

अतीत में विभिन्न राजनीतिक दल मजदूरों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं को टिकट देते रहे हैं. ऐसे नेता चुनाव भी जीतते रहे हैं. लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में मजदूर नेताओं के प्रति राजनीतिक दलों का भरोसा कम हुआ है तथा टिकट पाने की दौड़ में मजदूर नेता पिछड़ते चले गये हैं.

30 साल में किसी मजदूर नेता को जमशेदपुर से नहीं मिला टिकट

इस बार कांग्रेस समेत अन्य दलों में मजदूर नेताओं को टिकट देने की आवाज उठ रही है. मजदूर नेता अपनी दावेदारी भी कर रहे हैं, लेकिन अंतिम रूप से टिकट पाने में वे सफल हो पाते हैं या नहीं यह देखने वाली बात होगी. अगर पूर्वी सिंहभूम जिलांतर्गत विधानसभा क्षेत्रों की बात करें, तो कांग्रेस ने पिछले 30 सालों में किसी मजदूर नेता को प्रत्याशी नहीं बनाया है.

आखिरी बार केपी सिंह को मिला था जमशेदपुर पूर्वी से टिकट

ताम्रनगरी इंडियन कॉपर में मजदूर नेता रहे कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष केपी सिंह को अंतिम बार कांग्रेस ने टिकट दिया था, जिसमें वे क्लोज मार्जिन से जमशेदपुर पूर्वी सीट पर रघुवर दास से चुनाव हार गये थे. उसके बाद से कांग्रेस ने मजदूर या मजदूर नेताओं को टिकट नहीं दिया. मजदूरों के इस शहर में मजदूर नेता धीरे-धीरे हाशिये पर चले गये. कमोबेश जिले के सभी विधान सभा क्षेत्रों का यही हाल है. ऐसे में मजदूरों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता राजनीतिक रूप से हाशिये पर नजर आ रहे हैं.

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जमशेदपुर पूर्वी : जीतते रहे हैं मजदूर नेता

जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा से पहली बार 1967 में मजदूर नेता एसजे अखौरी को कांग्रेस ने टिकट दिया था. इसके बाद 1972 में भाकपा ने यहां से मजदूर नेता केदार दास को टिकट दिया . इसके बाद जनता पार्टी (अब भाजपा) के टिकट पर टाटा मोटर्स के कर्मचारी दीनानाथ पांडेय चुनाव लड़े. फिर कांग्रेस ने यहां से दारियस नारीमन को टिकट दिया, जिन्होंने जीत दर्ज की थी. दीनानाथ पांडेय वर्ष 1990 में चुनाव जीते. टाटा स्टील के मजदूर से राजनीति में आये रघुवर दास वर्ष 1995 में भाजपा के टिकट पर जीते. इसके बाद लगातार 2000, 2005, 2009, 2014 में चुनाव जीते. 2019 के चुनाव में रघुवर दास को निर्दलीय सरयू राय ने हराया. हालांकि सरयू राय मजदूर नेता नहीं, एक सधे हुए राजनीतिज्ञ हैं.

जमशेदपुर पश्चिमी : मिला मजदूर नेताओं का प्रतिनिधित्व

जमशेदपुर पश्चिम से पहली बार 1967 में मजदूर नेता सी व्यास चुनाव जीते. 1969 में हुए उपचुनाव में सीपीआइ ने मजदूर नेता सुनील मुखर्जी को टिकट दिया, जिसमें उन्होंने जीत दर्ज की. 1972 में सीपीआइ ने रामअवतार सिंह को टिकट दिया, जो टिस्को मजदूर यूनियन से जुड़े हुए थे. वर्ष 1977 में मोहम्मद अयूब खान जनता पार्टी से चुनाव जीते. कांग्रेस से 1980 में मोहम्मद शमसुद्दीन खान ने चुनाव जीते. वर्ष 1985 में टाटा मोटर्स के कर्मचारी मृगेंद्र प्रताप सिंह भाजपा के टिकट पर जीते. 1990 में झामुमो के टिकट पर हसन रिजवी चुनाव जीते थे. 1995 और 2000 के चुनाव में मृगेंद्र प्रताप सिंह चुनाव जीते. इसके बाद की राजनीति से मजदूर नेताओं का दबदबा कम हो गया.

घाटशिला : मजदूर नेताओं का रहा है दबदबा

घाटशिला से 1952 के चुनाव में मुकुंद राम तांती झारखंड पार्टी से चुनाव जीते थे. 1957 में झारखंड पार्टी के ही श्यामचरण मुर्मू जीते. सीपीआइ से 1962 में मजदूर नेता बास्ता सोरेन चुनाव जीता. कांग्रेस के दशरथ मुर्मू ने वर्ष 1967 में यहां से चुनाव जीता. यदुनाथ बास्के झारखंड पार्टी से 1969 में चुनाव जीते, इसी तरह 1972, 1977, 1980 के चुनावों में सीपीआइ ने मजदूर नेता टीकाराम मांझी को टिकट दिया और वे जीते. कांग्रेस के करण मार्डी ने टीकाराम मांझी को वर्ष 1985 में हराया. 1990 के चुनाव में आजसू के सूर्य सिंह बेसरा ने चुनाव जीता. 1991 के उपचुनाव में फिर से मजदूर नेता टीकाराम मांझी चुनाव जीते गये. इसके बाद कांग्रेस के प्रदीप बलमुचु वर्ष 1995, 2000, 2005 तक विधायक रहे. इसके बाद मजदूर नेता हाशिये पर चले गये.

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बहरागोड़ा : मजदूर नेताओं का रहा है बोलबाला

बहरागोड़ा में मजदूर नेताओं का बोलबाला रहा है. 1967 में घाटशिला से अलग होकर बहरागोड़ा विधानसभा सीट बना. पहली बार 1967 में शिबू रंजन पहली बार विधायक बने. शिबू रंजन ही 1969, 1972 में चुनाव जीते. फिर 1977 के विधानसभा चुनाव में यहां से विश्नपद घोष जीते, जो सीपीआइ से थे .1980 में सीपीआइ के देवीपद उपाध्याय विधायक बने. वे 1985, 1990 और 1995 के चुनाव में विधायक बने. वर्ष 2000 व 2005 में भाजपा के टिकट पर डॉ दिनेश षाड़ंगी विधायक बने . 2009 में डॉ षाड़ंगी को झामुमो प्रत्याशी विद्युत वरण महतो ने हराया था. विद्युत वरण महतो मजदूर नेता नहीं थे. बाद में मजदूर नेताओं का वर्चस्व कमजोर पड़ता गया.

पोटका : 1995 के बाद नहीं जीता कोई मजदूर नेता

पोटका क्षेत्र में पहले मजदूर नेताओं का दबदबा था. 1995 के बाद कोई मजदूर या मजदूर नेता जनप्रतिनिधि नहीं बन पाया. पोटका से झापा से कैलाश प्रसाद 1952 में चुनाव जीते . इसके बाद सुपाई सोरेन 1957 में चुनाव जीते, वह भी मजदूर नेता ही थे. 1962 में मांझी रसराज टुडू कांग्रेस के टिकट पर जीते.घनश्याम महतो 1967, 1969, 1972 में चुनाव जीते. 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर सनातन सरदार, फिर भाजपा के टिकट पर सनातन सरदार 1980 में और फिर 1985 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते. 1990 और 1995 में झामुमो के टिकट पर हाड़ीराम सरदार की जीत हुई, जो मजदूर आंदोलन से जुड़े रहे थे. इसके बाद से मजदूर नेता हाशिये पर चले गये.

जुगसलाई : मजदूरों के नेता बने हैं विधायक

वर्ष 1977 में जुगसलाई अलग विधानसभा क्षेत्र बना. वर्ष 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के प्रत्याशी कार्तिक कुमार जीते. 1980 में तुलसी रजक (सीपीआई) और 1985 में त्रिलोचन कालिंदी (कांग्रेस) यहां से विधायक बने. ये सभी मजदूर नेता थे. वर्ष 1990 में मंगल राम (झामुमो) पहली बार जुगसलाई सीट से जीते. वे टाटा मोटर्स के कर्मचारी रहे थे. इसके बाद झामुमो लगातार चार बार इस सीट पर कब्जा बनाए रखा. दुलाल पहली बार 1995 में जीते. इसके बाद लगातार 2000, 2005 में जीत दर्ज की. वे झामुमो के झारखंड मजदूर यूनियन विंग के केंद्रीय अध्यक्ष रहे हैं. 2009 और 2014 में यहां से आजसू पार्टी के रामचंद्र सहिस विधायक बने. 2019 में झामुमो से मंगल कालिंदी विधायक बने. सभी मजदूरों का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं.

क्या कहते हैं मजदूर नेता

एक वक्त था जब कांग्रेस में इंटक नेताओं की पूछ थी. वीजी गोपाल बाबू के साथ हमलोगों ने काम किया है. उस वक्त कांग्रेस का नीति निर्धारण इंटक के नेता करते थे. लेकिन अफसोस है कि इंटक नेताओं को टिकट नही मिल पाता है.

आरबीबी सिंह, पूर्व अध्यक्ष, टाटा वर्कर्स यूनियन

जमशेदपुर मजदूरों की नगरी है. मैंने टाटा वर्कर्स यूनियन अध्यक्ष रहते हुए 4500 नयी नौकरियां दिलाई. पूर्व व वर्तमान कर्मचारियों के लिए कैंसर रेस्ट हाउस, क्लब हाउस, दार्शनिक स्थलों पर गेस्ट हाउस सहित टीएमएच में कई सुविधाएं शुरू करायी. इसलिए पार्टी को हम पर भी भरोसा करना चाहिए. लेकिन अफसोस है कि टिकट मजदूर नेताओं को नहीं मिल पाता है.

रघुनाथ पांडेय, जमशेदपुर पूर्वी के टिकट के दावेदार और जुस्को श्रमिक यूनियन

मुझे लगता है कि इंटक नेताओं की अनदेखी की वजह से भी कांग्रेस को अच्छे परिणाम नहीं मिले हैं. मजदूरों का यह राजनीतिक हक है कि उन्हें भी चुनाव लड़ने का मौका मिले. तभी विधानसभा में मजदूरों की बात को तार्किक ढंग से उठाया जा सकता है. यह अफसोस है कि मजदूर नेताओं को अब तक ढंग से मौका नहीं मिल पाया है.

राकेश्वर पांडेय, जमशेदपुर पूर्वी से कांग्रेस की सीट से दावेदार और इंटक के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष

जमशेदपुर से चुनाव लड़ने वाले आखिरी मजदूर नेता कौन थे?

जमशेदपुर विधानसभा या लोकसभा सीट से कई मजदूर नेताओं ने चुनाव लड़ा, लेकिन पिछले 3 दशक में किसी श्रमिक नेता को किसी पार्टी ने टिकट दिया हो, ऐसा नहीं हुआ. केपी सिंह आखिरी श्रमिक नेता थे, जिन्हें किसी राजनीतिक पार्टी ने टिकट दिया था. कांग्रेस ने उन्हें जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट पर रघुवर दास के खिलाफ उतारा था. रघुवर दास ने केपी सिंह को पराजित कर दिया था.

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