आदि महोत्सव में रविवार को गोपाल मैदान बिष्टुपुर में आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिली. सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत उरांव नाच से हुई. रांची के कृष्ण भगत व टीम के कलाकारों ने जात्रा नाच की प्रस्तुति दी. बूट खेते बूट, तीसी खेते तीसी…, रेचो खेते बिछिया हेराइल रे, रेचो खेते…, की प्रस्तुति ने दर्शनकों को मंत्रमुग्ध कर दिया.
तोलंग बंडी, माथे पर पगड़ी के साथ बगुआ टइयां खोसे और पैरों में घुंघरू बांधे जैसे ही कलाकार मंच पर उतरे कि खुले महफिल में जान आ गयी. ठोसा माला, हसली, चंदवा जैसे आभूषण शोभा बढ़ा रहे थे. इसमें ढोल, नगाड़ा, मांदर और ढेचका जैसे वाद्य यंत्र का इस्तेमाल हुआ. यह नाच धान की खेती की खुशी में किया जाता है.
जन्मडीह पोटका के भूमिज सुसुन अखड़ा के कलाकारों ने करम सुसुन (नाच) प्रस्तुत किया. नगाड़ा, मांदल, चरचरी, झामर और करताल के साथ कलाकार मंच पर उतरे और बोल के साथ नाच शुरू हो गया. तिसिन दोगे करम राजा उड़ा दुआर रे… के साथ कलाकारों ने टाटा बाजार टेल्को, सुबह-सुबह होटल को…, गीत की भी प्रस्तुति दी. नृत्य में 14 महिला व छह पुरुष कलाकारों ने दर्शकों को थिरकने पर मजबूर कर दिया.
मानभूम स्टाइल में महिषासुर मर्दिनी
नटराज कलाकेंद्र चौगा की ओर से मानभूम स्टाइल में छऊ की प्रस्तुति हुई. कलाकारों ने महिषासुर मर्दिनी पेश किया. बड़े-बड़े आकर्षक मुखौटे के साथ एक ताल-लय में उछल-कूद करते कलाकार जहां शारीरिक संतुलन का परिचय दे रहे थे.
वहीं साथ-साथ लोक संस्कृति के साथ नृत्य भी चल रहा था. मां दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध के साथ नगाड़े की आवाज थम जाती है. इसमें प्रभात कुमार महतो, घासीराम महतो, जयराम महतो, स्वर्ण कालिंदी व अन्य कलाकारों ने प्रस्तुति दी. कार्यक्रम का संचालन अणिमा बाअ: ने किया.
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