चंदा करके केरल में आयोजित चैंपियनशिप में भाग लेने पहुंची झारखंड की बैडमिंटन टीम

झारखंड टीम के पुरुष और महिला वर्ग के खिलाड़ियों को 22 दिसंबर को अर्नाकुलम ट्रेन से जाना है. झारखंड टीम के महिला व पुरुष वर्ग के खिलाड़ियों ने लोगों से चंदा इकट्ठा कर किसी तरह से ट्रेन का टिकट लिया है

By Prabhat Khabar News Desk | December 17, 2022 10:45 AM

देश के लिए मेडल जीतने का संपना संजोये बॉल बैडमिंटन के खिलाड़ियों के पास दमखम की कोई कमी नहीं है, कमी है तो बस संसाधनों की. हालात ऐसे हैं कि उनके पास स्पोर्ट्स किट और टिकट के भी पैसे नहीं हैं. 68वीं सीनियर नेशनल बॉल बैडमिंटन चैंपियनशिप का आयोजन कोच्चि (केरल) में होना है.

इसमें भाग लेने के लिए झारखंड टीम के पुरुष और महिला वर्ग के खिलाड़ियों को 22 दिसंबर को अर्नाकुलम ट्रेन से जाना है. झारखंड टीम के महिला व पुरुष वर्ग के खिलाड़ियों ने लोगों से चंदा इकट्ठा कर किसी तरह से ट्रेन का टिकट लिया है. महिला टीम की ये खिलाड़ी 25 से 27 नवंबर को छतीसगढ़ में एनएमडीसी दंतेवाड़ा द्वारा आयोजित सेंट्रल जोन बॉल बैंडमिंटन चैंपियनशिप में तीसरे स्थान पर रही थी.

मेहनत-मजदूरी कर खिलाड़ी बनाना चाहते हैं माता-पिता

बॉल बैडमिंटन की महिला टीम की खिलाड़ी सुगी मुर्मू, लक्ष्मी मुर्मू, दिपाली सिंह सरदार, अनिशा बिरूआ, सकरो किस्कू, सुमंती बिरूआ, शकुंतला एवं सुनिता मुखी के माता-पिता किसान हैं या तो ठेका मजदूरी करते हैं. लेकिन वे अपने बच्चियों को बेहतरीन खिलाड़ी बनाना चाहते हैं.

खिलाड़ी बोलीं-आर्थिक तंगी में छूट गयी पढ़ाई

मेरे पिता सकला मुर्मू राजमिस्त्री हैं. पैसे के अभाव में मैं इंटर में नामांकन नहीं ले पायी. मुझे खेल पसंद है. मैच खेलने बाहर जाने में पापा मैनेज करते हैं और कई बार तो एसोसिएशन मदद करती है.

सुगी मुर्मू, ,सरजामदा

मेरे पिता किसान है. मैं पांच भाई-बहनों में चौथे नंबर पर हूं. आर्थिक तंगी के कारण इंटर के बाद पढ़ाई छाेड़ दी. कई बार पैसे के तंगी के कारण गेम खेलने नहीं जा पाती हूं.

-सुमंती बिरुआ, परसुडीह

तीन भाई बहनों में मैं सबसे बड़ी हूं. माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे. घर की पूरी जिम्मेवारी मेरे ही कंधों पर है. ठेका कंपनी में जॉब करती हू.

-सुमिता मुखी, बिरसानगर जोन-एक

क्या कहते हैं अध्यक्ष और टीम के कोच

झारखंड में बॉल बैडमिंटन को सरकार फंड नहीं दे रही है. बिहार के समय इस खेल को फंड मिलता था. झारखंड बनने के बाद पूरी तरह बंद हो गया है. वर्ष 2013 में मुझे 33वें सब जूनियर नेशनल बॉल बैडमिंटन के समय एक साल तक 1200 रुपये का स्टाइपेंड मिला था. बाद में वह भी बंद हो गया.

वीरेंद्र कुमार मिश्रा, कोच सह अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी, बॉल बैडमिंटन

झारखंड टीम में कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं. ऐसे बच्चे अपने घर से पैसे खर्च कर गेम खेलने नहीं जा पाते हैं. एसोसिएशन ऐसे खिलाड़ियों को आने-जाने में होनेवाले खर्च में मदद की जा रही है. एसोसिएशन के सहयोग से ट्रेन का किराया दिया गया है.

मनोज कुमार यादव, अध्यक्ष,झारखंड स्टेट बॉल बैडमिंटन एसोसिएशन

Next Article

Exit mobile version