आदिम जनजाति की दुर्दशा: मुख्य सड़क से गांव जाने के लिए नहीं रोड, टोले में बना दिया पीसीसी पथ
Jharkhand News: यह आदिम जनजाति है, जो अब विलुप्त होने की कगार पर है. पहले तामुकबेड़ा सबर टोला में पहल 15 सबर परिवार थे. अब घटकर 11 परिवार रह गये हैं. पिछले एक महीने में दो लोगों की मौत हो गयी. सांप काटने से. अस्पताल तक नहीं ले जाया जा सका.
Jharkhand News: देश-दुनिया में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है. आदिवासियों को प्रकृति का संरक्षक बताया जाता है. संयुक्त राष्ट्र समेत दुनिया भर में सरकारें आदिवासियों को उनका अधिकार देने की बात करती है. उनके विकास की बात करती है. आदिवासी केंद्रित योजनाओं की बात होती है. उन्हें समाज से जोड़ने की बात की जाती है, लेकिन आदिवासी बहुल राज्य झारखंड में आदिम जनजाति के लोगों के टोला को सड़क तक से नहीं जोड़ा जा सका है.
गांव के अंदर ही बना दिया पीसीसी पथ
पूर्वी सिंहभूम के बोड़ाम प्रखंड में एक सबर टोला है, जिसमें कुछ दूर तक पीसीसी पथ का निर्माण कर दिया गया है. इस बेहाल टोला से मुख्य सड़क तक जाने के लिए कच्ची सड़क या कहें कि पगडंडी है. महज 150-200 मीटर की सड़क बनाने की जहमत प्रशासन ने नहीं उठायी है. हालांकि, टोले के बीच में कुछ दूर तक सड़क ढाल दी गयी है.
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तामुकबेड़ा सबर टोला में रहते हैं 11 सबर परिवार
प्रखंड मुख्यालय से महज 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है तामुकबेड़ा सबर टोला. दलमा की तराई में बसे इस टोला में 11 सबर परिवार रहते हैं. यह आदिम जनजाति है, जो अब विलुप्त होने की कगार पर है. पहले तामुकबेड़ा सबर टोला में पहल 15 सबर परिवार थे. अब घटकर 11 परिवार रह गये हैं. पिछले एक महीने में दो लोगों की मौत हो गयी. सांप काटने से. अस्पताल तक नहीं ले जाया जा सका.
6 आवास का हुआ था निर्माण, सभी हो गये जर्जर
इस टोले में तीन दशक पहले 6 आवास का निर्माण करवाया गया था. सभी की स्थिति आज जर्जर हो चुकी है. गांव के लोगों को अगर बाजार जाना पड़े, तो उन्हें करीब 6 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. आसपास कोई सरकारी अस्पताल नहीं है. इनके स्वास्थ्य की कभी जांच नहीं होती. सरकारी पेंशन इन्हें नहीं मिलती.
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