मो.परवेज/ अनूप साव, डुमरिया (घाटशिला):
डुमरिया प्रखंड के मानिकपुर, बांकीशोल, बाहदा और डुमरिया में शनिवार की शाम उत्सव का माहौल था. हर गली, चौक व रास्ते पर लोग पलकें बिछाये हुए खड़े थे. हर कोई उत्तरकाशी सुरंग हादसा से सकुशल घर लौट रहे छह मजदूरों की एक झलक देखना चाहता था. 17 दिनों तक जिंदगी व मौत के साये में जद्दोजहद के बाद छह मजदूर मानिकपुर के रवींद्र नायक, रंजीत लोहार, गुणाधर नायक, बांकीशोल के समीर नायक, बाहदा के भक्तू मुर्मू और डुमरिया मुख्यालय के टिंकू सरदार अपनों के बीच गांव में पहुंचे. यहां ढोल-धमसे के साथ ग्रामीणों ने नाचते-गाते हुए उनका स्वागत किया. परिजनों ने पांव धोकर आरती उतारी व टीका लगाया. माला पहनाकर स्वागत किया. परिजनों के आंखें खुशी से छलक गयीं. मजदूर अपनी मां-पिता व पत्नी से लिपटकर फफक पड़े, तो कोई अपने बच्चे को गोद में उठाकर खुशी से चहक उठे. वहीं, दोस्त व परिजनों के गले लगकर धन्यवाद दिया. पूरा गांव जश्न में डूब गया. परिजन एक पल के लिए उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं थे.
रवींद्र नायक के गाड़ी से उतरते ही चार साल का बेटा लिपट गया
मानिकपुर गांव में रवींद्र नायक के गाड़ी से उतरते ही 4 साल का बेटा निखिल नायक दौड़ते हुए पिता से लिपट गया. मानों लंबे समय से इसी क्षण का इंतजार था. वह घर तक अपने पिता के साथ रहा. रवींद्र नायक ने बताया लगभग 15 दिनों बाद परिजनों से बात हुई. फोन पर बेटा निखिल बार-बार पूछ रहा था, पापा आप कब आओगे? यह सुनकर मैं काफी भावुक हो गया था. आंख छलक पड़ी थी. भगवान से प्रार्थना करता था जल्द बाहर निकालो. हम लोगों ने कोई गलती नहीं की. अंदर सबसे ज्यादा चिंता परिजनों की थी.
– हमने मौत करीब से देखा, वहां की सरकार ने दिन-रात एक कर दिया
डुमरिया लौटे मजदूर रवींद्र नायक समेत अन्य ने कहा सुरंग के अंदर हमारे साथ जो बीता, भगवान किसी दुश्मन के साथ भी न हो. पहले 18 से 20 घंटे भूखे रहे. पहले दो दिन काफी कष्टदायक थे. कई मजदूर केला के छिलके को खा गये. उन बातों को याद नहीं करना चाहते. उसे बुरा सपना समझकर भूला देना चाहते हैं. एक-एक पल मौत के करीब था. हमने मौत को बहुत करीब से देखा है. वहां की सरकार ने हमें बचाने के लिए दिन-रात एक कर दी. उन लोगों को बस हमारी चिंता थी. बार-बार हम से पाइप से बात करते थे. हमारी हिम्मत बढ़ाते थे. हम लोग ताउम्र नहीं भुलेंगे.
डुमरिया का माणिकपुर गांव में गाजे-बाजे के साथ मजदूरों का भव्य स्वागत
डुमरिया के मानिकपुर गांव में ग्रामीणों ने गाजे-बाजे के साथ खूब आतिशबाजी की. माणिकपुर गांव में शाम से रात तक जश्न का माहौल था. मजदूरों के परिवार वालों ने खुशी घरों के बाहर दीप जलाये थे. मानों, राम अयोध्या लौटे हैं. मजदूरों के वाहन से उतरते ही माइक पर आइये आपका इंतजार था, देर लगी आने में लेकिन, शुक्र हैं… की धुन बजने लगी. गांव के सैकड़ों लोग मिठाई, अंग वस्त्र, आरती, शंख, पैर धोने के लिए हल्दी- पानी, फूल माला लेकर तैयार थे. मजदूरों को सकुशल अपने पास देखकर परिजनों की आंखें छलक पड़ीं. शंख ध्वनि से गांव गूंज उठा. इन मजदूरों को वृद्ध महिलाओं ने हल्दी पानी से पैर धोये.
गाजे-बाजे संग नाचते-गाते हुए गांव का परिभ्रमण किया
माहौल ऐसा था मानो समय ठहर सा गया हो. सभी को माला पहनाया गया. चंदन का टीका लगाया गया. चावल, धूप, पुष्प की वर्षा की गयी. गाजे-बाजे के साथ नाचते गाते पूरे गांव का परिभ्रमण किया गया. छोटे छोटे बच्चे भी क्षण को मोबाइल के कैद करने के लिए आतुर थे. उसके बाद एक एक को उनके घर तक पहुंचाया गया. घर वालों ने पारंपरिक रूप से स्वागत किया. उत्साह व उमंग के साथ परिजनों की आंखों में आंसू थे. यह खुशी के आंसू थे. लंबे समय के इंतजार के बाद सभी अपनों के साथ थे.
पिता को याद कर खूब रोया भक्तू, मां ने संभाला
मजदूर भक्तू मुर्मू अपने गांव बहादा पहुंचा, तो अपने पिता को खोने का मलाल था. वह अपनी मां पिती मुर्मू से लिपट कर फफक पड़ा. जिस दिन भक्तू टनल से बाहर निकला, उसी दिन सुबह में उसके पिता बरसा मुर्मू की सदमे में मौत हो गयी. पुत्र के इंतजार में पिता चल बसे. पुत्र मौत की जंग जीत कर घर लौटा, यह खुशी का क्षण देखने के लिए पिता नहीं थे. भक्तू को उसकी मां समेत अन्य परिजनों और दोस्तों ने ढांढस बंधाया.