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Jitiya Vrat 2023: झारखंड में जितिया पर्व कब है? 6 या 7 अक्टूबर को, जानें नहाय खाय से लेकर पारण तक की सही तारीक

तीन दिनों तक चलने वाला संतान कामना का पर्व जीवित्पुत्रिका यानी जिउतिया को लेकर असमंजस की स्थिति है. जितिया व्रत पांच अक्तूबर से नहाय खाय के साथ शुरू हो जायेगा. झारखंड के लोग बड़े ही धूमधाम से जितिया का पर्व मनाते हैं.

By Nutan kumari | October 4, 2023 1:55 PM
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Jitiya Vrat 2023: झारखंड बहुरंगी संस्कृति वाला राज्य है. यहां बारह महीना कोई न कोई त्योहार पर्व मनाया जाता है. यहां के लोग बहुत ही उत्साह के साथ कोई भी त्योहार को मनाते हैं. इसी में से एक है जितिया का पर्व. यहां के लोग बड़े ही धूमधाम से जितिया का पर्व मनाते हैं लेकिन तीन दिनों तक चलने वाला संतान कामना का पर्व जीवित्पुत्रिका यानी जिउतिया को लेकर असमंजस की स्थिति है. बता दें कि जितिया पर्व संतान की खुशहाली, अच्छे स्वास्थ, उन्नति व वंश वृद्धि के लिए किया जाता है. जितिया व्रत पांच अक्तूबर से नहाय खाय के साथ शुरू हो जायेगा. शास्त्रों में इस व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. इसे जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है. यह व्रत हर साल अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस दिन माताएं निर्जल उपवास रख विधि-विधानसे राजा जिमूत वाहन की पूजा करती हैं. वहीं चिल्लो सियारो की कथा सुनती हैं और संतान की लंबी आयु का आशीष मांगती हैं.

सात अक्टूबर को होगा पारण

जितिया व्रत को लेकर पांच अक्टूबर को नहाय खाय है. इस दिन माताएं स्नान ध्यान कर निर्जल व्रत पूरा करने का संकल्प लेंगी. अरवाइन भोजन ग्रहण करेंगी. अर्धरात्रि को सरगी करेंगी. उसके बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होगा. छह अक्टूबर शुक्रवार को उपवास रखा जाएगा. सात अक्टूबर को सुबह दस बजे के बाद पारण किया जायेगा.

इन पंचांगों के अनुसार कब है पर्व

मिथिला पंचांग के अनुसार पंडित गुणानंद झा ने बताया कि अष्टमी तिथि छह अक्टूबर को सुबह साढ़े नौ बजे शुरू हो रही है, जो सात अक्टूबर को सुबह साढ़े दस बजे समाप्त होगी. जिउतिया व्रत अष्टमी तिथि में संध्या में करने का विधान है. इसलिए छह अक्टूबर को उपवास व पूजा होगी. बनारस पंचांग के अनुसार पंडित मनोज पांडे ने बताया कि अष्टमी तिथि छह अक्टूबर को सुबह नौ बजकर 25 मिनट में प्रवेश कर रही है जो सात अक्टूबर को सुबह दस बजकर 21 मिनट में समाप्त होगी.

तीन दिनों का होता है जितिया पर्व

जितिया पर्व तीन दिन का होता है. इसकी शुरुआत सप्तमी तिथि पर नहाय खाय से होती है. इसमें माताएं पवित्र नदी में या जल में गंगाजल मिलाकर स्नान के बाद पूजा कर सात्विक भोग बनाती हैं. दूसरे दिन अष्टमी को निर्जला व्रत रखा जाता है. नवमी तिथि पर पारण किया जाता है.

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छह नहीं सात को जिउतिया

जबकि ज्योतिषाचार्य राजेश पाठक ने कहा कि शास्त्र कहता है कि इस बार सात अक्तूबर को जिउतिया व्रत है. वे बताते हैं कि छह अक्तूबर की सुबह 9:34 बजे तक सप्तमी तिथि है. इसके बाद अष्टमी तिथि शुरू हो रही है. इस तरह अष्टमी उदया तिथि में प्राप्त नहीं हो रही. जबकि उदया तिथि में अष्टमी मिलने से ही व्रत करना चाहिए. शास्त्र कहता है कि सप्तमी रहित अष्टमी तिथि में व्रत करना चाहिए. वे बताते हैं कि सात अक्तूबर को सुबह 10:32 बजे तक अष्टमी तिथि है. जो उदया तिथि में मिल रहा है. इसलिए जिउतिया व्रत सात अक्तूबर को इस दौरान कर लेना चाहिए. ज्योतिषाचार्य पाठक यह भी बताते हैं कि सप्तमी में सूर्योदय के बाद प्रदोष पड़ रहा है. यानी चंद्रोदय में अष्टमी तिथि हो रही है. जो शास्त्र के अनुसार ठीक नहीं है. वे बताते हैं कि व्रत से एक दिन पहले छह अक्तूबर को नहाय खाय है. और आठ अक्तूबर को सूर्योदय के बाद किसी भी समय पारण किया जा सकता है.

बाजार में जिउतिया की भरमार

जिउतिया को लेकर बाजार में पूजन सामग्री की बिक्री शुरू हो गयी है. जिउतिया बद्धी 10 से 40 रुपये तक में मिल रहे हैं. कारीगर इसकी बनायी 20 रुपये ले रहे हैं. इसके बाद जिउतिया के हिसाब से पांच-पांच रुपये अतिरिक्त लग रहा है. मोती वाले जिउतिया की कीमत 30 रुपये है.

क्या है नियम

नहाय खाय को स्नानादि के बाद अपने अराध्य और कुल देवी-देवता को कुलाचार विधि से बनाये भोजन जैसे मडुआ आटे की रोटी, सतपुतिया की सब्जी, नोनी साग, कंदा, खीरा आदि अर्पण करना चाहिए. उसके बाद उसे स्वयं ग्रहण करना चाहिए. मगध और मिथिला के कुछेक क्षेत्रों में मड़ुआ रोटी के साथ छोटी मछली खाने की परंपरा है. ओठगन के निमित्त व्रती उजाला होने से पूर्व कुलाचार विधि से विभिन्न प्रकार के पकवान खीर, दही-चूड़ा, खीरा आदि ग्रहण करती हैं. इसके बाद अच्छी तरह मुंह धोने के बाद निर्जला व्रत शुरू हो जाता है. व्रत रखते हुए दिन में स्नान के बाद पूजा और कथा वाचन अथवा श्रवण करना चाहिए. कुश से जितवाहन देव बनाकर पूजा जाता है. पूजन स्थान पर जिउतिया रखा जाता है. जिसे संतान में सटा पर उसे व्रती ग्रहण करती हैं. अष्टमी तिथि बीतने के बाद पारण करना चाहिए.

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