जमशेदपुर : झारखंड के नये मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की राजनीति को धार करनडीह के इमली चौक से मिली थी. 80 के दशक में करनडीह का इमली चौक तत्कालीन सिंहभूम जिला की राजनीति का केंद्र बिंदु हुआ करता था. चौक के नीचे झामुमो का कार्यालय था, जहां चंपई सोरेन का ऑफिस भी था. हालांकि चंपई सोरेन का कार्यालय आज भी वहीं है. वर्तमान में ऑफिस कभी-कभार खुलता है. करनडीह स्थित इमली चौक को संताली भाषा में ‘जोजो दारे बूटा’ का जाता है. बताया जाता है कि 80 के दशक में इमली चौक की अपनी अलग पहचान थी. यहां तत्कालीन सिंहभूम जिले के मजदूर, दलित व शोषित की आवाज सुनी जाती थी. यहीं से उनके हक की लड़ाई के लिए रणनीति बनती थी. यहीं से हक की लड़ाई का आगाज कर अंजाम तक पहुंचाया जाता था. मजदूरों व आदिवासी-मूलवासियों का शोषण व प्रताड़ित करने वाले इमली चौक का नाम सुनकर भयभीत हो जाते थे. शोषित व प्रताड़ितों की आवाज इमली चौक तक पहुंचने पर हक मिलने की गारंटी मिल जाती थी. आरोपियों को वहां (इमली चौक) में हाजिरी लगानी पड़ती थी.
बताया जाता है कि कोल्हान में जहां भी गरीब-गुरबा और आदिवासी-मूलवासियों को सताया या डराया जाता था. वे लोग अपनी फरियाद लेकर करनडीह में इमली पेड़ के नीचे झामुमो ऑफिस में पहुंचते थे. चंपई सोरेन यहीं उनकी फरियाद सुनते थे. प्रताड़ित करने वालों को बुलाकर फटकार लगाते थे. उस समय क्षेत्र में गलत कार्य व धंधे से जुड़े लोग दादा (चंपई सोरेन) के व्यक्तित्व व उनकी न्यायप्रिय सोच से वाकिफ थे.