JRD Tata- भारत को पहली विमान कंपनी देने वाले JRD टाटा ने कैसे भरी सफलता की उड़ान, पढ़ें ये प्रेरक कहानी

JRD Tata- JRD टाटा ने भारत को सबसे पहली विमान कंपनी एयर इंडिया दी. उनकी सोच थी को भारत के ठीक है वही उनके लिए. एयर इंडिया से बच्चे की तरह प्यार करते थे.

By Akansha Verma | July 29, 2024 3:18 PM

JRD Tata- भारत को पहली विमान कंपनी देने वाले जेआरडी टाटा की गिनती भारत में ही नही बल्कि विश्व में सबसे महान उद्योगपतियों में शीर्ष पर आता है. उन्होंने टाटा समूह के साथ ही आजाद भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनका जन्म आज यानि 29 जुलाई के दिन ही ठीक 119 साल पहले फ्रांस में हुआ था.

टाटा समूह की सबसे लंबे समय तक अगुवाई करने वाले दिग्गज उद्योगपति जेआरडी टाटा की आज 119वीं बर्थ एनिवर्सरी है. जेआरडी टाटा का जन्म वर्ष 1904 में पेरिस में हुआ था. उनके पिता RD टाटा, टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के बिजनेस पार्टनर थे. व उनकी मां फ्रांस की रहने वाली थीं. टाटा की मां सूनी फ्रांस की नागरिक थीं. JRD टाटा की पढ़ाई फ्रांस के अलावा जापान और इंग्लैंड में हुई थी. उन्होंने भारत की पहली एयरलाइन में अपना योगदान तो दिया ही बल्कि स्टील सेक्टर में भी भारत को ग्लोबल पावर बनाने के सपने को पूरा किया.

एयर लाइसेंस पाने वाले पहले भारतीय

भारत की सबसे पहली विमान कंपनी में उड़ान भरने वाले टाटा का प्रेम पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. जेआरडी बचपन से ही उड़ान भरने को लेकर रोमांचित रहते थे. जब वह 15 साल के थे, तभी उन्होंने फ्रांस में एक विमान में उड़ान भरने का आनंद लिया था. इस अनुभव ने जेआरडी के मन उड़ान के प्रति लगाव पैदा कर दिया, और बाद में वही एअर इंडिया की शुरुआत का कारण बना. साल 1929 में जेआरडी टाटा को कॉमर्शियल पायलट का लाइसेंस मिला और इस तरह वह ऐसा लाइसेंस पाने वाले पहले भारतीय बन गए.

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जेआरडी ने खुद ही उड़ाई पहली फ्लाइट

साल 1930 में टाटा के मुख्यालय में एक एयरमेल सर्विस शुरू करने का प्रस्ताव आया, जो बॉम्बे, अहमदाबाद और कराची को कनेक्ट करने वाला था. इस कंपनी की शुरुआत यात्री उड़ानों के लिए नहीं बल्कि डाक ढोने के लिए की गई थी. इसकी पहली डाक सेवा की उड़ान कराची से मद्रास के लिए थी और इसमें जेआरडी टाटा खुद पायलट बने थे.

एअर इंडिया से बच्चे की तरह करते थे प्रेम

साल 1932 में जेआरडी की अगुवाई में टाटा एविएशन सर्विस की शुरुआत हुई. कुछ समय बाद कंपनी का नाम बदलकर टाटा एयरलाइंस किया गया. हालांकि यह नाम बहुत दिनों तक नहीं चल पाया और फिर इस कंपनी को एअर इंडिया का नाम मिला, जो अभी भी कायम है. भारत की आजादी के बाद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई वाली सरकार ने साल 1953 में एअर इंडिया को नेशनलाइज कर दिया. और एअर इंडिया का प्रसिद्ध महाराजा लोगो (चिन्ह) भी जेआरडी टाटा की देन है. इसे जेआरडी टाटा ने एयर इंडिया की अंतरराष्ट्रीय सर्विस के लिए डिजायन करवाया था.

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एअर इंडिया के साथ जेआरडी टाटा के लगाव की कई कहानियां हैं. वह एयर होस्टेस तक को चुनने में भी भागीदारी लेते थे और इस काम में उन्हें अपनी पत्नी से मदद मिलती थी. एअर इंडिया के मेन्यू में मांस से लेकर टमाटर और अंडे तक उन्होंने खुद शामिल किया था. उनकी नजर फ्लाइट में यात्रियों को परोसी जाने वाली चाय से लेकर कॉफी तक पर रहती थी.

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टाटा को ऐसे मिला जेआरडी जैसा लीडर

जेआरडी पहले फ्रांस की सेना में शामिल हो गए थे और सर्विस में बने रहना चाहते थे. पिता ने मना कर दिया तो उन्हें अपनी इच्छा दबानी पड़ी. बाद में जेआरडी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन पिता ने इससे भी मना कर दिया और भारत आकर टाटा समूह के कामकाज से जुड़ने का आदेश सुना दिया. उन्होंने टाटा समूह में करियर की शुरुआत एक एप्रेंटिस के रूप में दिसंबर 1925 में की और इसके लिए उन्हें एक रुपये भी नहीं मिलते थे. जब जेआरडी महज 22 साल के थे, उनके पिता का निधन हो गया. साल 1929 में वापस भारत में बिजनेस पर पूरा ध्यान लगाने लग गए.

“देश को किस चीज की जरूरत है”JRD टाटा

जमशेदजी ने महज 17 साल तक ही टाटा समूह की अगुवाई की थी. पहले कंपनी का नाम टाटा एंड संस था, जिसे बाद में साल 1917 में प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाए जाने के बाद टाटा संस नाम मिला. आरएम लाला जेआरडी की बायोग्राफी ‘Beyond the Last Blue Mountain’ में इसकी झलक दिखाते हैं. वह लिखते हैं, ‘जमशेदजी बोर्ड की बैठकों में बार-बार एक सवाल पूछते थे…देश को किस चीज की जरूरत है? अब इसका उत्तर स्टील हो, हाइड्रो-इलेक्ट्रिक एनर्जी हो या यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस हो, जमशेदजी उस दिशा में पूरे जतन से जुट जाते थे.

जो भारत के लिए ठीक, वही टाटा के लिए ठीक

जेआरडी की सोच थी…जो भारत के लिए अच्छा है, वह टाटा के लिए भी अच्छा है.’ जेआरडी की यही बात उन्हें तमाम महान उद्योगपतियों में अलग मुकाम दिला देती है.
इससे भी मजेदार बात कि जीवन के अंतिम सालों में उन्होंने मेहनत से कमाई दौलत को परोपकार के काम के लिए बांट दिया. जेआरडी भी यही मानते थे कि वह या उनकी कंपनी जो कुछ कमा रही है, वह कमाई अंतत: जरूरतमंद लोगों तक जानी चाहिए. जमशेदजी ने भी टाटा समूह की जड़ में इसी विचार का प्रतिरोपण किया था, जिसे जेआरडी ने सींच-सींच कर विशाल बरगद बना दिया.

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