झारखंड की कंचन उगुरसंडी ने बाइक से की दुनिया की सबसे ऊंची सड़क की यात्रा

कंचन उगुरसंडी ने बताया कि सबसे ऊंची सड़क की यात्रा काफी चुनौतीपूर्ण था. इसके लिए परिवार को समझाना पड़ा कि उसे सफलता मिलेगी, इसके बाद यात्रा पूरी कर पायीं. वह भारत-चीन सीमा की सड़क की यात्रा पर भी निकल चुकी थीं, लेकिन सेना ने भूस्खलन के कारण उन्हें फिलहाल जाने से रोक दिया है.

By Mithilesh Jha | August 9, 2023 5:36 PM
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जमशेदपुर, ब्रजेश सिंह : वर्ष 2021 के जून में शून्य से माइनस 40 डिग्री से भी कम ठंड वाले इलाके में दुनिया की सबसे ऊंची सड़क पर यात्रा पूरी करनेवाली सरायकेला के बिदरी गांव की कंचन उगुरसंडी ने कहा कि यह साहसिक यात्रा काफी रोमांचकारी थी. उन्होंने अब भारत-चीन सीमा पर 18 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित सड़क तक सोलो बाइक राइड (एकल बाइक की सवारी) करने का मन बनाया है.

आदिवासी किसी से पीछे नहीं : कंचन उगुरसंडी

उन्होंने कहा कि आदिवासी किसी से पीछे नहीं हैं. वह मेहनती होते हैं. अपनी मेहनत के बल पर किसी भी ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं. पहले से सोच भी बदली है, लेकिन अब भी कई सारी रुढ़ियों को तोड़ने की जरूरत है, ताकि आदिवासी समुदाय की लड़कियां भी आगे आ सकें. आदिवासियों के लिए दुनिया काफी बड़ी है.

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भारत-चीन सीमा की सड़क यात्रा पर निकल चुकीं थीं कंचन उगुरसंडी

कंचन उगुरसंडी ने बताया कि सबसे ऊंची सड़क की यात्रा काफी चुनौतीपूर्ण काम था. इसके लिए परिवार को समझाना पड़ा कि उन्हें सफलता मिलेगी, इसके बाद यात्रा पूरी कर पायी. वहीं, इस यात्रा के बाद के बाद आगे की भी तैयारी जारी है. वह भारत-चीन सीमा की सड़क की यात्रा पर भी निकल चुकी थीं, लेकिन सेना ने भू-स्खलन के कारण उन्हें फिलहाल जाने से रोक दिया है.

बाइक से चार धाम यात्रा
कंचन उगुरसंडी को बाइक चलाने का शौक था, जिसने उनका आत्मबल बढ़ाने का काम किया. उन्होंने कहा कि वह नामुमकिन नहीं, बस मुमकिन करना जानती हैं. वह अकेले बाइक से चारों धाम की यात्रा भी कर चुकी हैं.

बाइक चलाने के शौक ने बढ़ाया आत्मबल

कंचन उगुरसंडी को बाइक चलाने का शौक था, जिसने उनका आत्मबल बढ़ाने का काम किया. उन्होंने कहा कि वह नामुमकिन नहीं, बस मुमकिन करना जानती हैं. वह अकेले बाइक से चारों धाम की यात्रा भी कर चुकी हैं.

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बच्चों व बड़ों को सिखा रहीं ओलचिकी लिपि

लौहनगरी जमशेदपुर के कदमा निवासी कारना मुर्मू झारखंड, बंगाल व ओडिशा में किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. उन्हें छोटे से लेकर बड़े, हर आयु वर्ग के लोग भलीभांति जानते हैं. उन्हें हर कोई प्यार से दीदी कहकर पुकारते हैं. दरअसल कारना मुर्मू करीब पिछले 30 सालों से संताली भाषा, लिपि व साहित्य को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर कार्य कर रही हैं. वह झारखंड, बंगाल व ओडिशा के सुदूर आदिवासी बहुल गांव में जाकर बच्चों व बड़ों को ओलचिकी लिपि को लिखना व पढ़ना सिखाती हैं. वर्तमान समय के साथ कदमताल करते हुए कारना मुर्मू अब ऑनलाइन भी संताली पढ़ाती हैं. इसके अलावा वह कदमा बीएसएस व करनडीह दिशोम जाहेरथान में संचालित संताली शिक्षण केंद्र में भी जाकर बच्चों को ओलचिकी लिपि लिखना व पढ़ना सिखाती हैं.

कारना मुर्मू करीब पिछले 30 सालों से संताली भाषा, लिपि व साहित्य को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर कार्य कर रही हैं. वह झारखंड, बंगाल व ओडिशा के सुदूर आदिवासी बहुल गांव में जाकर बच्चों व बड़ों को ओलचिकी लिपि को लिखना व पढ़ना सिखाती हैं.

चार दशकों से भाषा-साहित्य को कर रहे हैं समृद्ध

पोटका के बालीजुड़ी निवासी ईश्वर सोरेन आदिवासी समाज के भाषा-साहित्य व संस्कृति को समृद्ध व विकसित करने में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं. वे साहित्य सृजन व ड्रामा के माध्यम से लोगों को जागृत कर रहे हैं. वे एक साहित्यकार व नाटककार हैं. वे पिछले चार दशक से संताली नाटक को लिख रहे हैं. उनका अपना एक नाट्य संस्था बंगी आसरा है. इसके बैनर तले वे झारखंड, बंगाल, ओडिशा व बिहार में सैकड़ों नाटकों का मंचन कर चुके हैं. वे हमेशा समाज के ज्वलंत मुद्दों को लेकर नाटक तैयार करते हैं और प्रभावी तरीके से मंचन करते हैं. वर्तमान समय में पोटका के बालीजुड़ी में वर्कशॉप का आयोजन कर ड्रामा को तैयार करवा रहे हैं. ईश्वर सोरेन ड्रामा खुद लिखते हैं और उसका निर्देशन भी खुद ही करते हैं.

ईश्वर सोरेन आदिवासी समाज के भाषा-साहित्य व संस्कृति को समृद्ध व विकसित करने में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं. वे साहित्य सृजन व ड्रामा के माध्यम से लोगों को जागृत कर रहे हैं. वे एक साहित्यकार व नाटककार हैं. वे पिछले चार दशक से संताली नाटक लिख रहे हैं.

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