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जमशेदपुर में 12 दिन पहले ही शुरू हो गयी थी करम पर्व की तैयारी, कल भव्य जुलूस के साथ होगा विसर्जन

लोग अपने-अपने समाज के पूजा स्थलों में जाकर करम देवता समेत अन्य देवी-देवताओं का आह्वान करेंगे. सामाजिक पुजारी पाहन व लइया की अगुआई में पूजा-अर्चना कर परिवार समेत विश्व कल्याण की आशीष मांगेंगे.

भाषा-संस्कृति मानव समाज में चरित्र गठन का मूल आधार है. हमारा देश अनेक भाषा-संस्कृतियों की विविधताओं से भरा है. इसमें भी झारखंड की भाषा-संस्कृति की एक अलग ही विशिष्टता है, जो देश की एक प्राचीनतम आदि संस्कृति है. इस प्राचीनतम विशिष्टता का सूचक है झारखंड का करम महोत्सव. यह सांस्कृतिक त्योहार प्रकृति की महाशक्ति पर आधारित है. अति प्राचीन होते हुए भी हर साल इसमें नयापन झलकता है एवं यह अहसास दिलाता है कि यह कभी भी पुराना नहीं हो सकता है. पुरखों ने बहुत ही गहन चिंतन-मनन करके प्रकृति महाशक्ति के गुणों को परख कर इस महान पर्व के विधि-नियम स्थापित किये, जिसका विधिवत अनुपालन करने पर मानव समाज में सद्चरित्र-सद्भाव गठन पीढ़ी-दर-पीढ़ी होता रहेगा एवं समाज सुख-शांतिपूर्वक जीवन निर्वाह कर सकेगा. सोमवार को आदिवासी-मूलवासी समाज के उरांव, मुंडा, भूमिज, कुड़मी समेत अन्य समाज व समुदाय के लोग इस आदि संस्कृति को करम महोत्सव के रूप में मनायेंगे. लोग अपने-अपने समाज के पूजा स्थलों में जाकर करम देवता समेत अन्य देवी-देवताओं का आह्वान करेंगे. सामाजिक पुजारी पाहन व लइया की अगुआई में पूजा-अर्चना कर परिवार समेत विश्व कल्याण की आशीष मांगेंगे.

12 दिन से कर रहे हैं करम पर्व की तैयारी

करम उत्सव की तैयारी त्योहार से लगभग 12 दिन पहले शुरू हो गयी थी. नौ प्रकार के बीज जैसे चावल, गेहूं, मक्का आदि टोकरी में लगाये गये थे, जिसे जावा कहा जाता है. लड़कियां इन बीजों की 7-9 दिनों तक जागरण कर श्रद्धा व भक्तिभाव से देखभाल की. करम उत्सव की सुबह महिलाओं द्वारा चावल का आटा प्राप्त करने के लिए ढेंकी में चावल कूटा जायेगा. इस चावल के आटे से स्थानीय व्यंजन बनाया जायेगा, जिसे परिजनों व पूरे मुहल्ले में बांटा जायेगा.

कल भव्य जुलूस के साथ करम की डाली करेंगे विसर्जित

करम पूजा के बाद एक सामुदायिक दावत आयोजन किया जाता है. श्रद्धालु पूरी रात विभिन्न अखाड़ों में जाकर करम राजा के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेंगे. मंगलवार को करम की डाली को नृत्य करते हुए नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जायेगा.

करम पर्व है फसल उत्सव

करम पर्व भारतीय राज्यों झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, ओडिशा और बांग्लादेश में मनाया जाने वाला एक फसल उत्सव है. यह शक्ति, यौवन और युवावस्था के देवता करम-देवता की पूजा के लिए समर्पित है. यह पर्व अच्छी फसल और स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है.

करम गीत

आइज रे करम गसाञ, घाेरे दुआरे…घाेरे दुआरे.

आर काइल रे करम गसाञ कास नोदि पारे.

जाहु जाहु करम गसाञ, जाञ छइअ मास रे…जाञ छइअ मास.

आर आउअतअ भादरअ मास, आनबउ घुराइ…

उत्सव के केंद्र में करम वृक्ष

भादो मास की एकादशी को मनाये जानेवाले करम उत्सव का केंद्र करम वृक्ष होता है. आज लोग ढोल-नगाड़ों और मांदर वादकों के समूह के साथ जंगल में नाच-गाकर पूजा करने के बाद करम के पेड़ की डाली अर्थात शाखाओं को काटकर लायेंगे. सामाजिक मान्यता के अनुसार, शाखाओं को आमतौर पर अविवाहित युवक व युवतियों द्वारा गांव में लाया जाता है और गांव के अखाड़ा में करम वृक्ष की डाली को स्थापित किया जाता है. फिर पूजा स्थल को गोबर से लीप कर फूलों से सजाया जाता है. ग्राम पुजारी (क्षेत्र के अनुसार पाहन या दिऊरी) धन और संतान देने वाले देवता करम देवता के लिए अंकुरित अनाज और हंड़िया को प्रसाद में चढ़ायेंगे. करम देवता की पूजा करने के पश्चात, करम देवता की कथा सुनायी जायेगी. फिर लोग अपने कान के पीछे पीले रंग के फूल के साथ अनुष्ठान नृत्य करेंगे. सभी पुरुष और महिलाएं पूरी रात गायन और नृत्य में भाग लेंगी. ढोल-नगाड़ों और मांदर की थाप और लोकगीतों पर महिलाएं एवं पुरुष नृत्य करेंगी.

नवसृजन के साथ भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है करम पर्व

आदिवासी कुड़मी समाज, बिरसानगर टेल्को के लाइआ (पुजारी) प्रकाश महतो केटिआर ने बताया कि आदिवासी कुड़मी जनजाति समुदाय का ‘करम परब सेंउरन विधि’ कुड़माली संस्कृति का सर्वप्रमुख पर्व है. करम पर्व को पहले एक मास तक मनाया जाता था, धान रोपनी खत्म होने पर शुरू हो जाता था और पूरे करम मास (भादोमास) आखड़ा में लोग हर रात करम गीतों और झूमर गीतों से सराबोर रहते थे. हाल के दिनों में 11, 9, 7 या 5 दिनों का जाउआ पाता नदी घाट से जाउआ उठाकर नवसृजन और भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक महान प्राकृतिक महापर्व ‘करम’ मनाया जाता है. करमइति बच्चियां उपवास रहकर नदी में स्नान करती हैं और गीले कपड़ों में ही नदी से हथेली पर बालू उठाकर जाउआ डाला में रखती हैं. फिर उसमें पारंपरिक नियमानुसार कुरथी, मूंग, बिरहि, राहड़, मकई, चना, रोमहा, सरसों आदि बोआई कर ‘जाउआ पाता’ तैयार किया जाता है.

जाउआ उठाने वाली बहनों को कई तरह की शुद्धता का पालन करना पड़ता है. जाउआ डाला को प्रतिदिन संध्या बेला घर के बीच आंगन में रख कर करमइति बहनों के द्वारा जाउआ बेड़हा किया जाता है. भादो एकादशी की पूर्व संध्या संजत जाउआ बेड़हा में पीठा पकवान विशेषकर गुड़ पीठा बनाकर सभी उपस्थित जनों को खिलाया जाता है. संजत के दिन शाम के समय पारंपरिक लाइआ के द्वारा कुड़मालि नेगाचारि विधि से करम-गाछ को एक लोटा पानी, रहइन माटी, गुंड़ि, सिंदूर, धूप, अरवा चावल, दूब घास आदि देकर “जागरण” किया जाता है. शुक्ल पक्ष भादो एकादशी के दिन शाम के समय आखड़ा के लाइआ उपवास रहकर विधिवत गुंड़ि, सिंदूर, धूप आदि देकर तथा गीत गाकर व मांदर बजाकर करम-गाछ की आराधना कर करम डाली काटकर लाते हैं.

करम-डाली लाते समय भी करमइति बहनें करम-डाइर के स्वागत में गीत गाते हुए उनके साथ-साथ चलती हैं. करम डाइर गाड़ने में कई प्रकार की सामग्री एवं नेग विधि के साथ करम-डाइर को गाड़ते हैं. उसके बाद लाइआ अर्थात पुजारी के साथ सभी करमइति एकांत मन से सभी सामग्री के साथ बसमतामाञ, आदि-हड़ बुड़हाबाबा-माहामाञ, नउ देउआ भुता, सिसटिक 5 ततअ के नेहर एवं करम गसाञेक सेंउरन कर रात भर करम गीतों और ढोल-मांदर के थाप पर पाता नाच और झूमर गीतों के साथ रात्रि जागरण करते हैं. अगले दिन करम डाइर और जाउआ डाला का भासान व पारना कर करम पर्व का समापन होता है. इससे पूर्व बहनों द्वारा भाइयों को “आपोन कोरोम भाइएक धोरोम” के तहत जाउआ फूल-पत्तियों की रक्षा सूत्र भी बांधी जाती है.

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