रीमा डे, जमशेदपुर : खादी क्रीम और सफेद रंगों से निकल कर कलरफुल हो गया है, इसके साथ सस्ता भी. जिसके कारण कभी बुजुर्गों की पसंद हुआ करने वाला खादी शहर के युवाओं व लोगों का भी पसंद बन गया है. खादी के कपड़े नये-नये डिजाइन के ड्रेस मार्कट में है. जमशेदपुर के लोगों का खादी से जुड़ाव तो पहले से तो था ही, नये डिजाइन के कारण अब इसकी डिमांड बढ़ गयी है. खादी रंगों के संग सादगी लुक देता है. इसकी खासियत यह है कि इसे आप किसी भी मौसम में पहन सकते हैं. गर्मी में खादी के कपड़े आरामदायक होते हैं, वहीं सर्दी में इसे पहनने से गर्माहट का एहसास होता है.
दुर्गापूजा हो या दिवाली हर त्योहार में खादी की फैशन झलक उठती है. खादी उद्योग आउटलेट, बिष्टुपुर हर में मौसम का विशेष ध्यान रखते हुए फैशनेबल खादी कपड़ों का कलेक्शन आता है. अब क्रीम, ऑफ व्हाइट रंगों के बंदिशों से निकल कर खादी कलरफूल हुआ है. इसके अनगिनत वैराइटी लोगों को यहां तक खींच लाती है.
दरअसल, फैशन की दुनिया में खादी का आउटफिट कभी आउट ऑफ ट्रेंड नहीं होता है. वहीं सिंथेटिक कपड़ों की तुलना में खादी को प्राकृतिक पहनावे की संज्ञा दी जाती है. ऐसे में किसी खास आयोजन पर डिफरेंट लुक पाने के लिए खादी ट्राई करना अच्छा ऑप्शन हो सकता है. सिंपल और सोबर लुक पाने के लिए खादी की साड़ी से लेकर कुर्ता पजामा को लोग प्राथमिकता देते हैं.
कैजुअल पहनावे से लेकर ट्रेडिशनल आउटफिट में खादी पहनना लोग पसंद कर रहे हैं. खादी बोरिंग हल्के रंगों वाला फैब्रिक नहीं रहा. अब यह शोख रंगों में बदलकर शादी और पार्टी की शान बन गया है. युवाओं में खासतौर पर लोकप्रिय हुआ है. आजकल ब्राइडल वेयर में भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.
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जुगसलाई निवासी रुबी परवीन 25 सालों से खादी के व्यवसाय से जुड़ी है. वह बिष्टुपुर स्थित खादी आउटलेट में कार्यरत है. उन्होंने बताया कि संयुक्त बिहार में भी खादी का क्रेज था. समय के साथ खादी के ट्रेंड बदला है. झारखंड राज्य होने के बाद भी खादी की खरीदारी में कमी नहीं आयी है. खासतौर पर शहर के लोग खादी पसंद करते हैं.
बिष्टुपुर खादी आउटलेट के प्रभारी राकेश कुमार गुप्ता बताते है कि गांधी जयंती से विशेष छूट मार्च तक रहता है. जमशेदपुर के लोग सर्द और गर्मी दोनों में ही खादी पहनना पसंद करते हैं. यहां की महिलाएं खादी सिल्क साड़ी खूब पसंद करती है.
अगर इस साल आप खादी में कुछ अलग प्रयोग करना चाहते हैं, तो खादी की बाहुबली साड़ी इस्तेमाल कर सकते हैं. कॉटन खादी की साड़ी में बाहुबली फिल्म की तस्वीरें नजर आयेगी. सिर्फ कॉटन ही नहीं बल्कि खादी सिल्क के अनगिनत वैराइटी मौजूद है. दुकानदार राकेश कुमार ने कहा- घीचा तसर साड़ी भगईया (देवघर) में बनता है. कटिया सिल्क साड़ी चांडिल, आमदा, कुचाई में भी बनने लगा है. खादी के बढ़ते डिमांड को देखते हुए अब स्थानीय स्तर पर खादी के कपड़ों के बनाने का काम हो रहा है.
जमशेदपुर में खादी कपड़ों की सिलाई सिखाने के लिए चार प्रशिक्षण केंद्र चल रहे हैं. इसमें डुमरिया, घोड़ाबांधा, बिष्टुपुर. बिरसानगर शामिल है. यहां महिलाओं को मुफ्त प्रशिक्षण दिया जाता है, छह माह प्रशिक्षण के दौरान स्टाइपंड के रूप में 4500 रुपये भी दिये जाते हैं.
महिलाओं के लिए
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खादी कांजीवरम – 13,000 से शुरू
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खादी स्वर्णचुड़ी – 11,1999 रु से शुरू
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बाटिक खादी सिल्क- 4700 रु
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घीचा तसर- 5200 रु
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कलमकारी खादी सिल्क- 7000
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कॉटन खादी सिल्क- 1500 रुपये
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बाटिक खादी सिल्क- 4,200
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खादी स्टॉल/ दुपट्टा- 950 रु
पुरुषों के लिए
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बंडी(कॉटन खादी) – 1000 रु से शुरु
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हाफ शर्ट- 649 रु
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फूल सिल्व- 899 रु
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कुरता- 1500 रु से शुरु
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खादी के बने कपड़े गर्मी और सर्दी दोनों ही मौसम के अनुकूल होते हैं. – गर्मी के मौसम में ये पसीने को सोख लेते हैं
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मजबूत होने के कारण सर्दियों में ये ठंड से भी बचाते हैं.
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ये वस्त्र जितने धोए जाते हैं, उतना ही इनका लुक बेहतर होता जाता है.
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यह मजबूत कपड़ा होता है और कई साल तक नहीं फटता
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ये त्वचा के लिए नुकसानदायक नहीं है.
खादी हमेशा से पसंदीदा रहा है. लेकिन महंगाई के कारण खरीदारी नहीं कर पाते थे. मोदी सरकार के आने के बाद खादी के वस्त्र के दामों में कमी आयी है. छूट मिलता है. वैराइटी भी है. खादी हर अनुष्ठान के लिए परफेक्ट है. गर्मी में खादी के आगे तो कुछ भी नहीं है.
-संजय कुमार. कदमा
वर्ष 2004 से खादी पहन रहे हैं. पत्नी सुनीता को भी खादी खूब पसंद है. शहर के आउटलेट में खादी ड्रेस सिलवाये भी जाते हैं. इससे अपने मन के अनुसार पहनावा मिल जाता है. खादी देसी परिधान है. गर्मी के लिए यह बहुत अच्छा है. चाहें तो रेडिमेड ले सकते हैं, या फिर थान से कटवा कर पहन सकते हैं.
– राजीव रंजन . बिष्टुपुर