सर्दी शुरू होते ही दुकानों में खजूर के गुड़ की चक्की दिखायी देने लगती है. खजूर का गुड़ झारखंडवासियों के लिए प्रकृति का वरदान है. यह स्वाद और सेहत दोनों के लिए अच्छा माना जाता है. तभी तो चक्की के साथ-साथ इसका लिक्विड भी लोग घर में रखना पसंद करते हैं. इसके खरे स्वाद का आनंद तो सभी लेते हैं, लेकिन गुड़ थाली तक कैसे पहुंचा है, इसके पीछे की मेहनत किसी को दिखायी नहीं देती. जी हां, इसके पीछे खजूर के सौदागर की कड़ी मेहनत होती है. ऐसे ही सौदागर की जिंदगी को करीब से देखने की कोशिश करती कन्हैया लाल सिंह और दिलीप पोद्दार की रिपोर्ट.
मजबुल के साथी शहजान खान सुबह तीन बजे से ही खजूर के पेड़ से रस भरे बर्तन उतारना शुरू कर देते हैं. क्योंकि सूर्योदय के बाद रस के लिए पुन: पेड़ पर बर्तन टांगना भी है. वे बताते हैं कि डिमना लेक के आसपास के 200 खजूर के पेड़ से वे लोग रस निकालन रहे हैं. इसलिए तड़के ही काम शुरू कर देना पड़ता है. दो व्यक्ति पेड़ पर बर्तन चढ़ाने-उतारने में लगते हैं. एक भट्ठी में रस को गरम करता है. इस तरह सभी के सहयोग से यह काम पूरा हो पाता है.
मजबुल के साथी शहजान खान सुबह तीन बजे से ही खजूर के पेड़ से रस भरे बर्तन उतारना शुरू कर देते हैं. क्योंकि सूर्योदय के बाद रस के लिए पुन: पेड़ पर बर्तन टांगना भी है. वे बताते हैं कि डिमना लेक के आसपास के 200 खजूर के पेड़ से वे लोग रस निकालन रहे हैं. इसलिए तड़के ही काम शुरू कर देना पड़ता है. दो व्यक्ति पेड़ पर बर्तन चढ़ाने-उतारने में लगते हैं. एक भट्ठी में रस को गरम करता है. इस तरह सभी के सहयोग से यह काम पूरा हो पाता है.
इनपुर (पश्चिम बंगाल) के मजबुल डिमना लेक के पास फुटबॉल मैदान में खजूर का रस पका रहे हैं. वे बताते हैं कि इसे पकाने से ही गुड़ बनेगा. सुबह छह बजे भट्टी शुरू होती है, जो शाम चार बजे तक लगातार जलती रहती है. तब जाकर रस गाढ़ा होकर गुड़ का आकार लेने लगता है. उन्होंने बताया कि रस पतीले में पकड़े नहीं, इसके लिए उसे लगातार लकड़ी के बड़े चम्मच से चलाना पड़ता है.
मजबुल बताते हैं कि गुड़ बनाने से पूर्व गाढ़े रस को लिक्विड के तौर पर रखते हैं. इसे भी लोग बड़े चाव से खाते हैं. उनके मुताबिक सर्दियों में रोटी के साथ लोग लिक्विड गुड़ खान पसंद करते हैं. एक तो यह स्वादिष्ट होता है, दूसरा शरीर में गर्मी भी पैदा करता है. गुड़ बनाने के लिए मोटे गाढ़ को पत्ते या कागज के छोटे-छोटे कटोरे में डाला जाता है. इस तरह यह बढ़िया चक्की का आकार ले लेता है.
हर दिन निकलता है 200 लीटर रस. मजबुल बताते हैं कि हर दिन एक पेड़ से करीब एक लीटर रस निकल आता है. इस तरह 200 पेड़ से 200 लीटर रस निकलता है. इससे केवल 50 किलो गुड़ बनता है. मजबुल बताते हैं कि गुड़ 120 रुपये और लिक्विड गुड़ 80 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिक्री करते हैं. कई लोग भट्ठी से गुड़ ले जाते हैं. वेलोग समय-समय पर साकची, बिष्टुपुर, मानगो और जुगसलाई के बाजार में भी गुड़ पहुंचाते हैं. जनवरी के अंत में वे गांव इनपुर लौट जाते हैं. मजबुल बताते हैं कि सर्दी में खजूर का काम होता है. गर्मी में वे लोग निर्माण मजदूर बन जाते हैं. यही उनकी रोजी-रोटी का जरिया है.
मुश्ताक खान बताते हैं कि पेड़ लेने के एवज में स्थानीय ग्रामीणों को एक फुटबॉल और 13-14 जर्सी देनी पड़ती है. क्योंकि यहां के युवा फुटबॉल के शौकीन हैं. कभी-कभी कुछ पैसे भी देने पड़ते हैं. वे बताते हैं कि देखा जाये, तो सुबह तीन बजे से शाम में अंधेरा होने तक वे लोग काम करते हैं. वे यहां नवंबर से जनवरी तक रहते हैं. इन तीन महीनों में उनकी यही दिनचर्या रहती है.
खजूर का गुड़ अनेक पोषक तत्वों से भरा होता है. इसमें प्रोटीन, आयरन, विटामिन बी1, फाइबर प्रचूर मात्रा में पाया जाता है. इसे नियमित रूप से खाने से शरीर में आयरन की कमी नहीं होती. इम्युनिटी भी बढ़ती है. शरीर गर्म रहता है. यह गुड़ सर्दी-जुकाम के लिए बढ़िया माना जाता है. यह पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है. पेट संबंधी समस्याएं दूर करता है. यह भोजन को पचाने में भी सहायक होता है. यह शरीर से टॉक्सिन एलिमेंट को बाहर निकालने में भी सहायक है. चेहरे के पिंपल्स को दूर करने में मददगार साबित होता है. इस गुड़ में कैल्शियम प्रचूर मात्रा में पाया जाता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है.
मजबुल और उनके साथियों को एक पेड़ पर चढ़ने और उतरने में दो से तीन मिनट लगते हैं. यह स्पीड लगातार प्रैक्टिस में रहने से बनी है. शहजान बताते हैं कि यह स्पीड नहीं रहेगी, तो 200 पेड़ों से रस निकालना मुश्किल हो जायेगा. पेड़ पर चढ़ते वक्त कमर में पत्ते का झोला, हाथों में रस्सी, बर्तन, हसुआ या बड़ी छूरी होती है. फुनगी पर चढ़कर हसुआ से तना छिला जाता है. जहां बर्तन लगा दिया जाता है. तने से रिसता रस पूरे दिन और रातभर बर्तन में जमा होता रहता है.
हमारे घरों में खजूर के गुड़ की मिठास पहुंचे, इसके लिए पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा से हर साल कारीगर यहां पहुंचते हैं. गुड़ बनाने का सीजन खत्म होते ही कुछ अपने गांव लौट जाते हैं, लेकिन अधिकतर दूसरे राज्यों में दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए चले जाते हैं. वहां ये निर्माण कार्यों में मजदूरी कर अपना जीवन यापन करते हैं. कुल मिलाकर देखें, तो गुड़ की िमठास से इन कारीगरों के जीवन में कोई खास बदलाव दिखायी नहीं देता है. गुड़ बनाने के लिए कैंप तैयार होने से 15 दिन पहले ही पश्चिम बंगाल के ये कारीगर यहां पहुंच कर आसपास स्थित खजूर के पेड़ों की सफाई करते हैं. इसके बाद खजूर के पत्तों से झोपड़ी नुमा घर तैयार करते हैं. गुड़ तैयार करने के लिए बड़ी-बड़ी भट्ठियां तैयार की जाती हैं. उसमें गुड़ बनाते हैं.
प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले से पटमदा एवं एनएच के विभिन्न गांवों में आये 70 कारीगर प्रतिदिन 10 क्विंटल खजूर गुड़ तैयार कर रहे हैं. इस गुड़ को जमशेदपुर, बांकुड़ा, पुरुलिया और दुर्गापुर में सप्लाई की जाती हैं. थोक व्यापारियों को खजूर का लिक्विड गुड़ ₹50 रुपये एवं ठोस बाटी गुड़ ₹60 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जाता है. जबकि खुदरा व्यापारियों को लिक्विड 70 एवं ठोस गुड़ ₹90 रुपये प्रति किलो बेचा जाता है. पटमदा के सारी, घोड़ाबांधा, पोड़ाडीह, धुसरा, पांईचाडीह, लावा, बोटा, मिर्जाडीह, गोबरघुसी आदि क्षेत्रों में ये कारीगर दिनरात गुड़ बनाने में जुटे हैं.
पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले से जाफर खान, सद्दाम खान, सत्तार मंडल, नवाब अली नवाज, अब्दुल बारी खान, कलीउद्दीन खान, अब्दुल खान, अब्दुल रहमान मंडल, लुलु मंडल, सुकूदिन खान, नूर इस्लाम खान, गुलाम महमूद आदि यहां पहुंचे हैं.
पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिला अंतर्गत सात सौ गुड़िया गांव निवासी जाफर खान ने बताया कि 15 वर्षों पूर्व खजूर पेड़ पर मिट्टी की हांडी टांगी जाती थी, जिससे टूटने-फूटने का डर रहता था. अब प्लास्टिक की हांडी टांगी जाती है.
जाफर खान ने बताया कि खजूर के पेड़ पर चढ़ने की प्रैक्टिस गांव में की जाती है. जिसके बाद पूरी तैयारी के साथ पेड़ पर चढ़ा जाता है. खजूर के पेड़ पर टांगी गयी हांडी 18 से 20 घंटे बाद उतारी जाती है. प्रत्येक हांडी में 3-4 किलो रस इकट्ठा होता है. उसी रस को भट्ठी पर पकाकर गुड़ तैयार किया जाता है.
पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा से आने वाले खजूर गुड़ के कारीगर काली पूजा से लेकर मकर संक्रांति तक लगातार तीन माह गुड़ तैयार करने में जुटे रहते हैं. खजूर गुड़ के लिए बंगाल के कारीगर अलग-अलग स्थानों पर कैंप लगाते हैं. प्रत्येक कैंप में 4 से 5 लोगों की टीम रहती है और लगभग 4 से 5 टीना तक गुड तैयार किया जाता है. ये खजूर के पेड़ पर चढ़कर हांडी में रस निकालने से लेकर, बड़े-बड़े बैग में रस डालकर खजूर का गुड़ तैयार करते हैं. गुड़ तैयार करने के बाद विभिन्न क्षेत्रों में टीना एवं कार्टून में पैक कर व्यापारी तक इसे पहुंचाया जाता है. जिसके बाद आम लोगों तक यह पहुंचता है.