इस संसार रोग की औषधि है विचार : मां गुरुप्रिया लाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुरसीएच एरिया स्थित आत्मीय वैभव विकास केंद्र में सोमवार को स्वामिनी मां गुरुप्रिया का दुश्चिंता और भय से मुक्ति विषय पर प्रवचन हुआ. उन्होंने कहा कि संसार में सभी जगह भय और चिंता व्याप्त है. मनोनुकूल फल प्राप्त नहीं होने का भय, प्राप्त चीजों के खो जाने का भय या काल्पनिक दुर्घटनाओं का भय रहता है. अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होने से या समत्व भाव रखने से भय और चिंता से मुक्त रहा जा सकता है. उन्होंने कहा कि पूजा-पाठ से मन में शुद्धि क्यों नहीं आती है? हमारे मन में फिर भी भय क्यों रहता है? आप पूजा-पाठ में सिर्फ शरीर को लगाते हैं. मन बुद्धि को नहीं लगाते. इसी कारण पूजा-पाठ से अपेक्षित फल प्राप्त नहीं होते. आप मन बुद्धि को भगवान में अर्पित करें. मतलब यह कि आप पूजा-पाठ में मन को लगाएं और बुद्धि से सोचने का काम करें. उन्होंने कहा कि विचार ही इस संसार रोग की औषधि है. अच्युत के कमल चरणों की उपासना करना ही भय को पार करना है. उन्होंने कहा कि हम विश्वात्मा से घिरे हुए हैं. हमें यह अनुभव होना चाहिए कि हम उनकी गोद में हैं. यह भाव आपको चिंता और भय से मुक्ति दिलाएगा. ठीक उसी तरह जैसे एक बच्चा मां की गोद में स्वयं को सुरक्षित अनुभव करता है. उन्होंने कहा कि आप शरीर नहीं आत्मा हैं. आपका वास्तविक स्वरूप वही है. आत्मा सर्वव्यापी, अपरिवर्तनशील और नित्य है. आत्मा की तरह हम भी सर्वव्यापी हैं. हम संकुचित नहीं विश्वात्मा हैं. हम सभी के साथ उदारता पूर्वक व्यवहार करेंगे. सभी को खुशी देने की कोशिश करेंगे. जब सभी अपने हैं, तब भय किससे? आसक्ति को त्याग कर कर्मों से जो फल प्राप्त होता है. उसमें समभाव रखने का नाम समत्व है. उन्होंने कहा कि आत्मा अनेक नहीं एक ही है. इस तरह शत्रु-मित्र, लाभ-हानि, सुख-दुख को समभाव से स्वीकार करना चाहिए. समत्व भाव रखने पर कोई चिंता और भय नहीं रहेगा. इस योग का थोड़ा अनुशीलन भी भय से छुटकारा दिला देगा.
इस संसार रोग की औषधि है विचार : मां गुरुप्रिया
जमशेदपुर. सीएच एरिया स्थित आत्मीय वैभव विकास केंद्र में सोमवार को स्वामिनी मां गुरुप्रिया का दुश्चिंता और भय से मुक्ति विषय पर प्रवचन हुआ. उन्होंने कहा कि संसार में सभी जगह भय और चिंता व्याप्त है. मनोनुकूल फल प्राप्त नहीं होने का भय, प्राप्त चीजों के खो जाने का भय या काल्पनिक दुर्घटनाओं का भय रहता है. अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होने से या समत्व भाव रखने से भय और चिंता से मुक्त रहा जा सकता है. उन्होंने कहा कि पूजा-पाठ से मन में शुद्धि क्यों नहीं आती है? हमारे मन में फिर भी भय क्यों रहता है? आप पूजा-पाठ में सिर्फ शरीर को लगाते हैं. मन बुद्धि को नहीं लगाते. इसी कारण पूजा-पाठ से अपेक्षित फल प्राप्त नहीं होते. आप मन बुद्धि को भगवान में अर्पित करें. मतलब यह कि आप पूजा-पाठ में मन को लगाएं और बुद्धि से सोचने का काम करें. उन्होंने कहा कि विचार ही इस संसार रोग की औषधि है. अच्युत के कमल चरणों की उपासना करना ही भय को पार करना है. उन्होंने कहा कि हम विश्वात्मा से घिरे हुए हैं. हमें यह अनुभव होना चाहिए कि हम उनकी गोद में हैं. यह भाव आपको चिंता और भय से मुक्ति दिलाएगा. ठीक उसी तरह जैसे एक बच्चा मां की गोद में स्वयं को सुरक्षित अनुभव करता है. उन्होंने कहा कि आप शरीर नहीं आत्मा हैं. आपका वास्तविक स्वरूप वही है. आत्मा सर्वव्यापी, अपरिवर्तनशील और नित्य है. आत्मा की तरह हम भी सर्वव्यापी हैं. हम संकुचित नहीं विश्वात्मा हैं. हम सभी के साथ उदारता पूर्वक व्यवहार करेंगे. सभी को खुशी देने की कोशिश करेंगे. जब सभी अपने हैं, तब भय किससे? आसक्ति को त्याग कर कर्मों से जो फल प्राप्त होता है. उसमें समभाव रखने का नाम समत्व है. उन्होंने कहा कि आत्मा अनेक नहीं एक ही है. इस तरह शत्रु-मित्र, लाभ-हानि, सुख-दुख को समभाव से स्वीकार करना चाहिए. समत्व भाव रखने पर कोई चिंता और भय नहीं रहेगा. इस योग का थोड़ा अनुशीलन भी भय से छुटकारा दिला देगा.
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