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जमशेदपुर: मशीन से चलने वाली ढेंकी बना मददगार, आर्थिक स्वावलंबन की ओर बढ़ रहीं महिलाएं

इस नवीनतम ढेंकी में सब कुछ पुराना है. बस इसको चलाने के लिए किसी आदमी की जरूरत नहीं होती है. मशीन की मदद से ढेंकी अपने आप ही चलता है और धान की कुटाई हो जाती है.

जमशेदपुर : ग्रामीण क्षेत्रों में महिला साक्षरता दर बढ़ रही है. हमारी बहन-बेटियां अपनी आजीविका कमाने और आर्थिक स्वावलंबन की ओर बढ़ रहीं हैं. इससे ग्रामीण परिवारों के जीवन स्तर में सुधार हो रहा है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने एक संबोधन में कहा था कि देश का समग्र विकास हमारे देश की महिलाओं की प्रगति में निहित है. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया था कि महिलाओं के योगदान से निकट भविष्य में भारत एक विकसित राष्ट्र के रूप में उभरेगा. इस कथनी को पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला बड़ाजुड़ी पंचायत के रघुनाथपुर गांव की महिलाओं ने सच साबित कर भी रही हैं. वे खुद को आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं, साथ ही अन्य महिलाओं को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं. घाटशिला व बहरागोड़ा क्षेत्र में रघुनाथपुर गांव की देवप्रिया ढेंकी चावल उत्पादक समूह व अन्नपूर्णा ढेंकी चावल उत्पादक समूह की महिलाएं लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन गयी हैं. इन महिलाओं में नित्याबाला पाल, झुमा, मालारानी भकत, कल्पना गोराई, गंदेश्वरी व पार्वती भकत नाम प्रमुख हैं.

मशीन युक्त ढेंकी ने बदली किस्मत

रघुनाथपुर गांव की महिलाओं की किस्मत अत्याधुनिक मशीन युक्त ढेंकी ने बदली है. एक समय था जब गांव में हर घर में एक ढेंकी हुआ करता था, लेकिन कलांतर में घान कूटने वाली मशीन आने से ढेंकी का उपयोग बंद सा हो गया, लेकिन किसी ने सच ही कहा है ओल्ड इज गोल्ड. पुराने चीजों के आगे नवीनतम चीजों की कोई जोड़ नहीं है. इस नवीनतम ढेंकी में सब कुछ पुराना है. बस इसको चलाने के लिए किसी आदमी की जरूरत नहीं होती है. मशीन की मदद से ढेंकी स्वत: ही चलता है और धान की कुटाई हो जाती है.

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आइआइटी खड़गपुर ने किया है विकसित

सेंटर फॉर वर्ल्ड सोलिडरिटी (सीडब्ल्यूएस) जेआरसी के ज्वाइंट डायरेक्टर पलाश भूषण चटर्जी ने बताया कि मशीन युक्त ढेंकी को आइआइटी खड़गपुर ने विकसित किया है. इसे 65 हजार रुपये की लागत से तैयार किया गया है. इस ढेंकी मदद से रघुनाथपुर की महिलाएं अच्छी खासी आमदनी कर रही हैं. गांव में लगी दो मशीन युक्त ढेंकी से एक साल में करीब 12 टन धान की कुटाई का टारगेट पूरा कर लिया है. तीन-तीन महिलाओं की दो समूह ने एक साल में 4 लाख रुपये की कमाई की है. श्री चटर्जी ने कहा कि विज्ञान का सही उपयोग ने महिलाओं के जीवन में बदलाव लाने का काम किया है. इन महिलाओं द्वारा तैयार चावल का क्रेज केवल पूर्वी सिंहभूम जिले में ही नहीं, बल्कि पूरे झारखंड, बंगाल व ओडिशा में भी है. दिन-प्रतिदिन चावल की मांग बढ़ रही है.

प्रति किलो 60 रुपये बिकता है चावल

सेंटर फॉर वर्ल्ड सोलिडरिटी (सीडब्ल्यूएस) की प्रोग्राम ऑफिसर राज लक्ष्मी पूर्ति ने बताया कि दोनों महिला समूह द्वारा तैयार लाल चावल की बाजार में अच्छी डिमांड है. मशीन युक्त ढेंकी से कूटा एक किलो चावल को मार्केट में 60 रुपये प्रति किलो में बेचा जा रहा है. चावल को बेचने के लिए महिलाओं को कोई मशक्कत नहीं करनी पड़ती है. आजीविका भूमिका फॉर्मर प्रोड्यूसर्स कंपनी के लोग उनके गांव में आकर सारा चावल उठाकर ले जाते हैं और उनका कीमत दे जाते हैं. उन्होंने बताया कि चावल के अलावा महिला समूह पर्व त्योहार के अवसर पर विभिन्न पारंपरिक पकवान को बनाने के लिए चावल की गुंडी तैयार करती हैं. उससे भी अच्छी आमदनी हो जाती है.

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