Manshi Joshi: जमशेदपुर. महाराष्ट्र की पैरा-बैडमिंटन खिलाड़ी मानसी जोशी, जो निराशा की गहराइयों से एक फीनिक्स की तरह उठी हैं. आज, वह न केवल पैरा-एथलीटों के लिए बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए एक सच्ची प्रेरणा है जो संघर्ष कर रहा है और अपने आस-पास के लोगों को रोशन करने के लिए आशा की किरण की तरह चमकता है. वर्तमान में विश्व चैंपियन भारत की शान मानसी जोशी अपने आत्म विश्वास के दम पर पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन कर रही हैं. बैंडमिंटन में कैरियर बनाने की नहीं थी योजना मानसी जोशी कभी नहीं चाहती थी कि वे बैंडमिंटन में कैरियर बनाएं. मानसी के पिता होमी भाभा रिसर्च सेंटर में रिसर्च साइंटिस्ट हैं और उनके साथ सिर्फ मनोरंजन के लिए बैडमिंटन खेलते थे. अपने शुरुआती दिनों में, उन्होंने कोच माधव लिमये और विलास दामले से प्रशिक्षण प्राप्त किया.
प्रतिभा खोज कार्यक्रम के माध्यम से परमाणु ऊर्जा विभाग के ग्रीष्मकालीन बैडमिंटन शिविर में चुने जाने तक उन्हें इस खेल में कितनी कुशल है इसका कभी एहसास नहीं हुआ. मानसी ने अगले कुछ वर्षों में स्कूल, कॉलेज और जिले के साथ-साथ विभिन्न बैडमिंटन टूर्नामेंटों में प्रतिनिधित्व किया. उन्होंने मुंबई के केजे सोमैया कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी की और एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के करियर की राह पर चल पड़ी. एक दुर्घटना ने बदली जिंदगी मानसी के जीवन में सबकुछ ठीक चल रहा था, उनका कैरियर आगे बढ़ रहा था, लेकिन एक दुखद दुर्घटना ने उसकी जिंदगी पूरी तरह से बदल दी. एक दुर्भाग्यपूर्ण रोड़ एक्सिडेंट में उन्होंने अपना बायां पैर खो दिया और उन्हें एक कृत्रिम पैर की सहायता लेनी पड़ी. उन्हें फिर से चलना शुरू करने और काम पर वापस आने में लगभग पांच महीने लग गए, लेकिन वे मानसीक अवसाद से तब भी नहीं उभर पाई. जिसके बाद इस अवसाद से उबरने के लिए उन्होंने अपने दोस्ट नीरज जॉर्ज के सुझाव पर बैंडमिंटन खेलना शुरू किया. यहां से मानसी की जिंदगी ने पिफर से करवट ली और वे अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर हौसले की उड़ान भरने लगी. बैडमिनट को बनाया जीवन का मकसद बैडमिंटन खेते समय उन्हें जल्द ही अपनी प्रतिभा का एहसास हुआ. जिसके बाद उन्होंने इसे ही अपना कैरियर बना लिया. उन्हें पहली सफलता करीब एक वर्ष बाद तब मिली जब उन्होंने राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट में रजत पदक जीता. उस जीत के साथ मानसी ने स्पेन में अपने पहले अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में जगह बनाई. मानसी ने अपने सपनों को जिंदा रखने का फैसला किया और फिर वो हैदराबाद स्थित पुलेला गोपीचंद की एकेडमी में ट्रेनिंग लेने लगीं. मानसी ने एक इंटरव्यू में बताया कि उस समय केवल यही सोच रही थीं कि एक पैर ही गंवाया है. अगर दौड़ लायक नहीं रही, तो भी कोई बात नहीं, 4 महीने बाद वे कृत्रिम पैर लगाकर फिर मैदान में उतर गई. मानसी ने लहराया जीत का परचम मानसी साल 2014 में प्रोफेशनल खिलाड़ी बनीं और अगले ही साल उन्होंने इंग्लैंड में हुई पैरा वर्ल्ड चैंपियनशिप में मिक्स्ड डबल्स का रजत पदक हासिल किया. ये उनका पहला बड़ा पदक था. इसके बाद मानसी ने अपने करियर का सबसे बड़ा मुकाम 2019 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीत हासिल किया. मानसी ने बताया कि कैसे वो गोल्ड मेडल जीतने के लिए मेहनत करती थीं। मानसी का एक पैर नहीं था लेकिन इसके बावजूद वो दिन में तीन प्रैक्टिस सेशन में हिस्सा लेती थीं. मानसी ने अपनी फिटनेस पर काम किया. कठिन परिश्रम से मानसी की मसल्स मजबूत हुई और हफ्ते में 6 जिम सेशन ने उन्हें एक चैंपियन खिलाड़ी बना दिया.