मदर्स डे स्पेशल : मां वो है, जो सिर्फ समर्पण जानती है. उसे कुछ चाहिए नहीं, बस वह देना जानती है. मां अपने बच्चों की हर परेशानी पर ढाल बन कर खड़ी रहती हैं. बच्चे के जन्म से लेकर उसके बड़े होने तक, वह उसकी हर परेशानी को बिना कहे समझ लेती है. आज मदर्स डे पर हम वैसी महिलाओं की संघर्ष से रूबरू हो रहे हैं, जो कामकाजी होने के साथ घर-परिवार की भी जिम्मेदारी कुशलता से संभाल रही हैं.
यानी, आठ घंटे की ड्यूटी के बाद घर आने पर भी हर काम को ही पहले निबटाती हैं. यहां तक कि ये अपने बच्चों की शिक्षा, सफलता व सकुशल जीवन के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने से भी परहेज नहीं करती हैं. समय आने पर अपने परिवार और बच्चों के लिए पूरी दुनिया और सभी विपरीत परिस्थितियों से लड़ जाती हैं. ममता की ऐसी मूरत के त्याग और बलिदान को सत-सत नमन.
पुलिस की नौकरी के साथ परिवार की जिम्मेदारी संभाल रहीं रेणु देवी
बिना आराम ड्यूटी की मिसाल बनीं रेणु देवी पुलिस में आरक्षी हैं. उनकी दिनचर्या में कहीं आराम नहीं है, लेकिन बुलंद हौसलों से सब खुशी-खुशी कर रही हैं. उन्होंने बताया कि पति की उग्रवादियों ने हत्या कर दी. उस वक्त वह गर्भवती थी. दो बेटे पहले से थे. घर में बूढ़ी सास. ऐसे में अकेले पूरे परिवार को लेकर चली और तीनों बच्चों को शिक्षा दिलायी. घर में खाना बनाकर ड्यूटी करना और फिर बच्चों को पढ़ाना. सास की सेवा करना, जटिल लगता था. लेकिन, सब रूटीन में आ गया. उनके पति करमदेव सिंह लातेहार में प्रखंड में काम करते थे. मई 2007 में उनकी हत्या के दो माह बाद उन्होंने बेटी को जन्म दिया. परेशानी और भी बढ़ी. लेकिन, हिम्मत नहीं हारी. वर्ष 2008 में उन्हें झारखंड पुलिस में नौकरी मिली और जमशेदपुर पुलिस लाइन में ज्वाइन की. पुलिस की नौकरी में समय पर कार्यालय आने का अलग प्रेशर रहता था. बेटी गोद में थी. दोनों बेटे भी छोटे- छोटे थे. लेकिन, हर दिक्कत बच्चों का चेहरा सामने आने साहस ही बढ़ाती रही. उन्होंने बताया कि नौकरी के दौरान उनकी सास पानो देवी का उन्हें काफी सहयोग मिला. जब भी वह ड्यूटी पर रहती थी, तो बच्चों की देखरेख उनकी सास ही करती थीं. आज उनके दोनों बेटे स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं और बेटी मैट्रिक की परीक्षा दी है.
पति की मौत के बाद पढ़ाई कर की नौकरी, संभाला परिवार
परिवार को मुसीबतों से उबारना कोई मनोहरपुर की सिपाही अंजली महतो से सीखे. उन्होंने बताया कि उनकी शादी 2014 में हो गयी. पति तरुण कुमार झारखंड पुलिस में सिपाही थे. लेकिन, शादी के कुछ साल बाद ही वर्ष 2021 में पति की मौत बीमारी से हो गयी. पूरा परिवार बिखर गया. लोग तरह-तरह की बातें करने लगे. लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. अपनी आगे की पढ़ाई की. स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद वर्ष 2023 में झारखंड पुलिस में उन्हें अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिल गयी. ससुराल वालों व अपने दो छोटे- छोटे बच्चों का पालन पोषण किया. इस दौरान उन्होंने अपने चेहरे पर कोई भी सिकन आने नहीं दी. आज उन्होंने अपने दम पर दोनों बच्चों का नामांकन सोनारी डीएवी स्कूल में करा दिया है. उन्होंने अपने दम पर बिखरे परिवार को संभाला है. बच्चे जब छोटे थे, तो नौकरी पर जाने के पूर्व वह उन्हें खिला-पिला कर तैयार कर देती थी. परिवार में सास- ससुर के भी काम करने के बाद ही नौकरी पर जाती थी. ड्यूटी से लौटने के बाद वह बच्चों को घर पर बैठा कर पढ़ाती थी. वर्तामान में दोनों बच्चे स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं. हालांकि, कुछ ही वर्षों के बाद ससुर का भी देहांत हो गया. उसके बाद सास की पूरी देखभाल की.
बेटा और सास को हमेशा साथ रखती हैं बबीता महतो
हर मुश्किल को कैसे टाला जा सकता है यह कोई गोलमुरी पुलिस लाइन की आरक्षी बबीता महतो से जाने. बबीता महतो मूल रूप से सरायकेला की रहने वाली हैं. उन्होंने बताया कि उनकी शादी वर्ष 2018 में कुबेर महतो के साथ हुई, जो झारखंड पुलिस में सिपाही थे. वर्ष 2016 में उनके पति और देवर की मौत हो गयी. परिवार में उनके अलावा उनका पांच साल का बेटा और बूढ़ी सास थी. पति की मौत के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी. बच्चों के लालन- पालन में भी मुश्किल होने लगी. लेकिन, उन्होंने हौसला से काम लिया. वर्ष 2018 में पुलिस विभाग में नौकरी प्राप्त करने के बाद उन्होंने अपने बच्चे और सास को लेकर जमशेदपुर आ गयी. वर्तमान में वह अपनी सास और बेटे के साथ रह रही है. उनका बेटा तारापोर स्कूल में पढ़ाई कर रहा है. उन्होंने बताया कि उनकी मुश्किलें कभी कम नहीं हुई. पुलिस में नौकरी के बाद उन्हें ट्रेनिंग के लिए साहेबगंज भेज दिया गया. उस दौरान उन्होंने अपने बेटे को गोविंदपुर स्थित विग इंग्लिश स्कूल के हॉस्टल में भर्ती करवा दिया. लेकिन, कुछ दिनों के बाद ही कोविड महामारी में हॉस्टल बंद कर दिया गया. फिर उन्होंने अपने बेटे को अपने पिता के पास छोड़ दिया. लेकिन, कोविड के दौरान उनके पिता की भी मौत हो गयी. किसी तरह बुरे दिन काटे. ट्रेनिंग के बाद बेटे व सास के साथ रहने लगी.
आंगनबाड़ी सेविका जूली ने बेटी को बनाया इंजीनियर
बच्चे के लिए मां हर मुश्किल से लड़ सकती है, हर दर्द सह सकती है. यह साबित किया है बर्मामाइंस ईस्ट प्लांट बस्ती पंजाबी लाइन की रहने वाली जूली कुमारी ने. इनके बच्चों के सिर से 15 जुलाई 2008 को पिता का साया उठ गया, लेकिन वह हिम्मत नहीं हारी. आंगनबाड़ी सेविका बन एक बेटी स्नेहा को इंजीनियर बना डाला. दूसरी बेटी श्रद्धा ने 2017 में टाटा स्टील में अप्रेटिंस की और अब स्थायी कर्मचारी के तौर पर कार्यरत है. वहीं, पुत्र कृष अभी मोतीलाल नेहरू पब्लिक स्कूल में प्लस टू में पढ़ रहा है. जूली कुमारी बताती हैं कि पति की अचानक सड़क हादसे में निधन के बाद उनपर तीन बच्चों के लालन-पालन के साथ ही परिवार को चलाने की जिम्मेदारी आ पड़ी. पहले तो घबराई. लेकिन, फिर बच्चों की खातिर खुद को इस मुश्किल से निकाला. तीनों बच्चों को मुकाम तक पहुंचाने के लिए साल 2009 से आंगनबाड़ी सेविका बन कार्य किया. इस दौरान मां-पिता और भाई का भी सहयोग मिला. तीनों बच्चों को पढ़ा इस काबिल बनाया कि अब पूरे परिवार को उनपर नाज है. इधर तीनों बच्चे कहते हैं कि आज मां की वजह से वे इस मुकाम पर हैं. वह खुद सब तकलीफें सहीं. मां के संघर्ष का कर्ज उतारना मुश्किल है.
काम से लौट कर भी संगीता करती हैं काम
मानगो दाईगुड्डू निवासी संगीता देवी का जीवन घड़ी की तरह ही है. वह 24 घंटे चल रही हैं. 16 साल की उम्र में उनकी शादी हुई. 18 साल में मां बनीं. आज तीन बेटों की मां हैं. संगीता का जीवन अन्य माताओं से संघर्षपूर्ण इसलिए है, क्योंकि उन्हें बाहर और घर दोनों संभालना पड़ता है. वह अपने बच्चों के लिए मां और पिता दोनों है. पति मानसिक रूप से नि:शक्त है. संगीता बुटिक में काम करती है. शादी के बाद पति की बीमारी के बारे में पता चला. इलाज सही तरीके से नहीं होने के कारण स्थिति पहले से ज्यादा बिगड़ गयी. अब वे घर पर ही रहते हैं. संगीता घर के काम-काज को संभाल कर बुटिक में आठ घंटे तक काम करती हैं. रात को काम से लौट कर फिर काम में लौट आती हैं. बच्चों को खाना, घर के अन्य कामकाज इसी में कब रात हो जाती है, उसे इसका अंदाजा भी नहीं. संगीता के तीनों बेटे पढ़ रहे हैं. एक बीए कर रहा है. दूसरा इंटर और छोटा बेटा 10वीं में है. संगीता ने बताया कि आज स्थिति पहले से बेहतर है, क्योंकि बच्चे बड़े हो गये हैं. पहले तो इन बच्चों को ही गोद में लेकर काम पर जाती थी.
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