ऐसी होतीं हैं मां : सुलेखा राय ने अपनी किडनी देकर बचाई बेटी की जान, 5 बेटियों को बनाया सफल

जमशेदपुर की एक मां ने अपनी बेटी की जान बचाने के लिए अपनी किडनी दान कर दी. पति की मौत के बाद अपने दम पर 5 बेटियों का पालन-पोषण किया.

By Mithilesh Jha | May 12, 2024 1:15 AM

जमशेदपुर, निखिल सिन्हा : मां त्याग और बलिदान की मूर्ति होतीं हैं. समय आने पर अपने परिवार और बच्चों के लिए पूरी दुनिया से लड़ जाती है. अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार हो जाती है. मुसीबतों को मां के आगे सरेंडर करना पड़ता है. जमशेदपुर में कार्यरत महिला आरक्षी सुलेखा राय एक ऐसी ही मां हैं. सिंगल मदर सुलेखा ने 5 बेटियों का पालन-पोषण किया. बड़ी बेटी की किडनी खराब हुई, तो उसकी जान बचाने के लिए अपनी किडनी दे दी.

मां ने अकेले 5 बेटियों का किया पालन-पोषण

गोलमुरी पुलिस लाइन में कार्यरत महिला आरक्षी सुलेखा राय बतातीं हैं कि उनके पति अशोक कुमार राय झारखंड पुलिस में सिपाही थे. वर्ष 2006 में तबीयत खराब होने के बाद अचानक उनकी मौत हो गयी. अकेले 5 बेटियों का पालन-पोषण किया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वर्ष 2009 में उन्हें झारखंड पुलिस में अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिली. थोड़ा सहारा मिला.

5 बेटियां आज अपने पैरों पर हैं खड़ी

आज उनकी पांचों बेटियां शिखा, दीपाली, दीप्ति, लवली और अस्मिता अपने पैरों पर खड़ी हैं. उन्होंने दो बेटियों की शादी कर दी. दो बेटी स्कूल टीचर हैं. एक बेटी प्राइवेट बैंक में नौकरी करती है. अब वह अपनी अन्य बेटियों की शादी करने की तैयारी में जुटी हैं.

अचानक पता चला- बेटी की दोनों किडनी खराब हो गई

पति की मौत के बाद जमशेदपुर की सुलेखा राय का पूरा जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था. मन विचलित था. घर कैसे संभालें, कुछ समझ में नहीं आता था. परेशानी अभी समाप्त भी नहीं हुई थी कि अचानक से पता चला कि बड़ी बेटी शिखा की दोनों किडनी खराब हो गयी. कई डॉक्टर से दिखाने के बाद भी कुछ ठीक नहीं हुआ. डॉक्टर ने कहा कि उसे जिंदा रखने के लिए कम से कम एक किडनी चाहिए.

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बेटी को देखकर भूल जातीं हैं अपना दर्द

सुलेखा ने डॉक्टर से बात की. कहा कि वह अपनी किडनी बेटी को दान देंगीं. सभी जांच के बाद शिखा को मां की किडनी मिली और उसकी जिंदगी बच गई. कभी-कभी कुछ तकलीफ होती है, लेकिन बेटी को देखकर इतना सुकून मिलता है कि अपना सारा दर्द भूल जाती है.

बेटी बनी हिम्मत

सुलेखा राय कहतीं हैं कि जब उनके पति का देहांत हुआ था, तब उनकी सबसे बड़ी बेटी 10वीं में पढ़ रही थी. सबसे छोटी बेटी अस्मिता यूकेजी में. पति की मौत के बाद मायके पक्ष से आर्थिक मदद मिली. लेकिन उसके बाद भी कई परेशानियां थीं. इस दौरान उनकी बेटी ही उनकी हिम्मत बनी. झारखंड पुलिस में नौकरी मिलने के बाद ड्यूटी का कोई टाइम-टेबल नहीं था. उनकी बेटियों शिखा और दीपाली ने घर को संभाला. दोनों ने अपनी छोटी बहनों को बच्चे की तरह पाला. छोटी सी उम्र में ही इन दोनों बहनों को हालात ने बड़ा बना दिया.

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