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शाल के पत्तों से कर रहे मल्चिंग, बढ़ा रहे ओल की खेती

दलमा तराई क्षेत्र में ओल की खेती को बारिश और धूप से बचाने के लिए शाल के पत्ता से मल्चिंग कर रहे हैं. दलमा के हमसादा गांव में रहने वाले संताल और मुंडा समाज के लोग इस नये तकनीक को अपना रहे हैं.

दलमा तराई क्षेत्र के किसानों ने अपनायी देसी तकनीक

प्रमुख संवाददाता, जमशेदपुर .

दलमा तराई क्षेत्र में ओल की खेती को बारिश और धूप से बचाने के लिए शाल के पत्ता से मल्चिंग कर रहे हैं. दलमा के हमसादा गांव में रहने वाले संताल और मुंडा समाज के लोग इस नये तकनीक को अपना रहे हैं.

अमूमन मल्चिंग पेपर या प्लास्टिक से किसान अपनी खेती को बेहतर बनाते थे. देसी मल्चिंग करने से किसान ज्यादा से ज्यादा ओल की खेती कर रहे है. जिससे इसकी बिक्री समय पर किया जा सके. खास तौर पर दुर्गा पूजा से लेकर दिवाली तक इसका काफी डिमांड होती है.

दलमा जाते वक्त रास्ते में पड़ने वाले हमसादा गांव में लोगों ने बताया कि दलमा के तराई वाले एरिया में बारिश के मौसम में काफी ज्यादा पानी होता है. ऐसे में हम लोग ओल के लिए मल्चिंग शाल के पत्ता से ही करते है. ताकि बारिश से भी बचाया जा सके और धूप से भी बच सके. इससे मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहती है.

मल्चिंग में इस्तेमाल करने से होता है लाभ : कृषि पदाधिकारी

जिला कृषि पदाधिकारी दीपक कुमार ने बताया कि मल्चिंग करने के लिए किसान खेती के अवशेष जैसे शाल का पत्ता या खरपतवार जैसी प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके इस्तेमाल से खेत में खाद बन जाता है. इतना ही नहीं इसके इस्तेमाल से फसलों को हीट वेव और पानी से बचाया जा सकेगा. साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहेगी.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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