जमशेदपुर में पुलिस की पिटाई से युवक की हो गयी थी मौत, तब निर्मल महतो के आंदोलन से हिल गया प्रशासन
Nirmal Mahto Jayanti: निर्मल महतो की बहन ने बताया कि एक बार पुलिस की पिटाई से युवक की मौत हो गयी थी. जिसके बाद निर्मल महतो ने मृतक के घर पहुंचे. पूरे जमशेदपुर इसे लेकर जोरदार आंदोलन चला था.
Nirmal Mahto Jayanti, जमशेदपुर, संजीव भारद्वाज : झारखंड अलग राज्य के नायक शहीद निर्मल महतो की जयंती आज है. उनका जन्मदिन आज पूरे झारखंड में धूमधाम से मनाया जा रहा है. लोग उन्हें सूदखोरी, वसूली, शोषण, अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले शख्सियत के रूप में याद करते हैं. इस मौके पर प्रभात खबर ने शहीद निर्मल महतो के आंदोलन के साथी, उनके करीबी व उनकी इकलौती बहन से बात की और उनसे जुड़ी कुछ कहानियां जानने प्रयास किया.
पुलिस की पिटाई से युवक की मौत के खिलाफ चलाया था आंदोलन
शहीद निर्मल महतो की एकलौती बहन शांति बाला महतो ने बताया कि अन्याय, शोषण, जुल्म के खिलाफ जानकारी मिलते ही निर्मल महतो दौड़ पड़ते थे. सोनारी में हुई एक घटना में गिरफ्तारी के बाद पुलिस की पिटाई से सोनारी में नाकुल बागती की मौत हो गयी थी, तब मृतक के घर बिना देर किये निर्मल महतो पहुंचे. घटना में पुलिस के खिलाफ जोरदार आंदोलन हुआ. इसमें सोनारी थाना ही नहीं, बल्कि पूरे जमशेदपुर की पुलिस हिल गयी थी. आरोपी पुलिस पदाधिकारी के खिलाफ जांच व कार्रवाई होने पर पीड़ित परिवार के साथ निर्मल महतो शांत हुए थे. बहन आगे बताती हैं कि निर्मल को रुपये-पैसे की ओर झुकाव या चाहत नहीं थी. वह हमेशा गरीब-गुरबा, शोषित, मजबूर के लिए एक पैर में खड़े रहते थे. उनके लिए आंदोलन कर उन्हें न्याय दिलाते थे.
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निर्मल महतो से पहली मुलाकात साकची में जुलूस के दौरान हुई थी
शहीद निर्मल महतो के साथी रहे व जमशेदपुर लोकसभा सीट पर दो बार सांसद रेह शैलेंद्र महतो बताते हैं कि 50 साल पहले निर्मल महतो से पहली मुलाकात साकची बारी मैदान में झारखंड पार्टी (होरो) की सभा सह जुलूस में हुई थी. उक्त जुलूस में निर्मल अपने पिता के साथ हाथी पर बैठकर साकची बारी मैदान पहुंचे थे. साकची बारी मैदान में चक्रधरपुर गांव से देवेंद्र मांझी की सभा होनी थी. निर्मल महतो झारखंड पार्टी (होरो) के टिकट पर दो बार चुनाव भी लड़े, लेकिन वे हार गये थे. हंसमुख व मिलनसार स्वभाव निर्मल महतो के साथ चाईबासा, सरायकेला, ईचागढ़, जमशेदपुर में कई मीटिंग व आंदोलन में साथ रहे. करीब 44 साल पहले 1980 में झामुमो में निर्मल महतो को ज्वाइन भी करवाया था. उन दिनों में निर्मल महतो ने सूदखोरी, वसूली, शोषण, अन्याय के खिलाफ लड़ने में अलग पहचान बनायी थी, जो कम वक्त में ज्यादा लोकप्रिय भी हो गये थे. इसका विस्तृत उल्लेख उनकी लिखित झारखंड की समरगाथा में भी है.
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