जमशेदपुर, ब्रजेश सिंह : कर्जदार और साहूकार का रिश्ता मजबूरी और शोषण पर आधारित रहा है. चाहे वह स्मार्ट सिटी लौहनगरी जमशेदपुर हो या कोई पिछड़ा हुआ गांव. एक बार अगर कोई सूदखोर के जाल में फंस गया, तो उसका बच निकलना मुश्किल है. सूदखोरों का ब्याज इतनी तेजी से बढ़ता है कि पीड़ित चुका ही नहीं पाता. ऐसे में सूदखोर पीड़ित पर दबाव बनाने लगते हैं, उसका उत्पीड़न करते हैं. कर्ज न चुका पाने पर जमीन और जेवरात बेचने का दबाव बनाते हैं. इससे परेशान होकर अंतत: कर्जदार आत्महत्या को मजबूर हो जाता है. वर्ष 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने झारखंड निजी साहूकार निषेध कानून बनाया था. इसके तहत अवैध सूदखोरी का धंधा करने वालों को तीन वर्ष कारावास तक की सजा का प्रावधान है. बावजूद इसके जमशेदपुर में भी महाजनी सिस्टम हावी है. सूदखोरी का धंधा तेजी से फल-फूल रहा है. सूदखोर बिना लाइसेंस धंधा कर रहे हैं. सूदखोरों के जाल में फंस कर लोग आत्महत्या तक कर ले रहे हैं. ब्याज के एवज में लोगों की जमीन जायदाद सूदखोर हड़प ले रहे हैं.
जिले में सूदखोरी का अवैध धंधा बड़े पैमाने पर फल-फूल रहा है. पूरे शहर में ब्याज पर रकम देकर कर्जदार से कई गुना राशि वसूलने की शिकायतें आम हैं. हालांकि, बिरले ही कोई थाने में इसकी शिकायत करता है. सूदखोरी करने वाले लोग बिना लाइसेंस रुपये उधार देते हैं और गरीबों की मजबूरी का फायदा उठाकर आजीवन उनसे अवैध रूप से ब्याज वसूलते हैं. वसूली के लिए अपराधियों को भी एजेंट बनाकर रखा है, जो सूद पर उधार लेने वालों को डरा-धमकाकर, प्रताड़ित कर पैसे की उगाही करते हैं. ब्याज व मूलधन की राशि समय पर नहीं लौटा पाने पर सूदखोर जमीन, जायदाद सहित अन्य संपत्ति गिरवी रखवा लेते हैं. इसकी वजह से सूदखोरी के जाल में फंसे लोग खुदकुशी को मजबूर होते हैं.
झारखंड में मनी लेंडर्स एक्ट लागू है, जिसके अंतर्गत सूद में रुपये देने का व्यवसाय करने वाले व्यक्ति (मनी लेंडर्स) का पंजीयन जरूरी है. इसके अलावा उन्हें खाता संधारण करना तथा उसको कर्ज लेने वाले व्यक्ति को देना आवश्यक है. यदि बिना लिखा-पढ़ी कर्ज दिया गया है, तो उसके संबंध में भी इन नियमों में उल्लेख किया गया है. कोई भी व्यक्ति मनी लेंडिंग का व्यवसाय बिना वैध पंजीयन प्रमाण-पत्र के नहीं कर सकता और ऐसा करने वाले व्यक्ति सजा के पात्र होंगे.
मजदूरों और जरूरतमंदों को रकम देने के एवज में सूदखोर 10 से 15 फीसदी तक ब्याज की वसूली करते हैं. खासतौर पर दुकानदारों से बड़ी रकम वसूली जाती है. अगर दुकानदार किसी माह ब्याज जमा नहीं कर पाया, तो उससे चक्रवृद्धि ब्याज वसूला जाता है. दुकानदार उधार की रकम से ज्यादा ब्याज का भुगतान करने को मजबूर होते हैं.
कर्ज लेने वाला भले पूरा पैसा चुका दे, लेकिन दबंग सूदखोरी मे फंसे व्यक्ति से मनचाही राशि वसूलते रहते हैं. कई बार कर्ज लेने वालों को प्रतिदिन आठ से 10 हजार रुपये के हिसाब से राशि देनी पड़ती है. कर्ज की राशि देने के बाद भी आपराधिक तत्व पीछा नहीं छोड़ते और प्रतिमाह वसूली करते हैं. सूदखोर कर्ज लेने वाले की संपत्ति व वाहन भी हथिया लेते हैं. अधिकतर सूदखोर ब्याज पर पैसा देने के बदले में जरूरतमंद से ब्लैंक चेक पर हस्ताक्षर करवाकर अपने पास रख लेते हैं. उधार में लिया गया पैसा चुकाने के बाद भी कर्ज देने वाले चेक नहीं लौटाते और उसे बैंक में लगाकर बाउंस कराने की धमकी देते हैं. चेक के दुरुपयोग का प्रकरण कोर्ट में भी चला जाता है. यहां पर सूदखोर कर्ज लेने वाले को दूसरे प्रकरणों में उलझाकर उससे वसूली करने की कोशिश करते हैं. इतना ही नहीं, कई बार प्रोपर्टी के दस्तावेज या गहने भी सूदखोर गिरवी रख लेते हैं. कई बार कर्ज लेने व देने की कानूनन लिखा-पढ़ी भी नहीं रहती है. ऐसे में सूदखोर दस्तावेज व गहने नहीं लौटाते हैं.
शहर के सभी बाजारों में सूदखोरों का मजमा लगता है. रोज माल मंगाने वाले व्यापारी इनके चंगुल में फंसते हैं. उदाहरण के तौर पर सूदखोर दुकानदार को 100 रुपये कर्ज देते हैं और शाम के वक्त उनसे दो सौ रुपये से भी ज्यादा वसूल ले जाते हैं. ऐसे ही बड़े-बड़े कारोबारियों को भी वे कर्ज देते हैं. बिष्टुपुर, साकची, बारीडीह, सोनारी, कदमा समेत शहर के अन्य बाजारों में सूदखोरों का एक सुनियोजित जाल फैला है. यहां लोगों को पैसे दिये जाते हैं. लेकिन पैसे समय पर नहीं लौटाने पर गाली-गलौज से लेकर मारपीट और धमकी देने तक का खेल चलता है. बाजार में ऐसे सूदखोरों के नाम सार्वजनिक तौर पर लोग जानते हैं.
टाटा स्टील समेत तमाम कंपनियों के गेट पर ऐसे लोन देकर वसूलने वाले नजर आते हैं. सूदखोरों के पास कर्मचारियों का एटीएम कार्ड रहता है. जैसे ही उनके एकाउंट में पैसा आता है, वे एटीएम कार्ड के जरिये पैसे की निकासी कर लेते हैं. टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा पावर समेत तमाम कंपनियों के कर्मचारी उनके चंगुल में फंसते रहते हैं.