Jharkhand News: आदिम जनजातियों को खत्म कर रहा है अंधविश्वास, दैविक प्रकोप मान गांव छोड़ रहे सबर परिवार
सबिता सबर और उसके भाई बंगाल चले गये. इनकी मां सुमित्रा सबर और पिता रमेश सबर की मौत हो चुकी है. प्रकाश सबर के पिता कनाई सबर, मां सुंदरी सबर की बीमारी से मौत हो चुकी है.
Jamshedpur News: आदिम जनजातियों में व्याप्त अंधविश्वास उनकी जड़ों को खत्म कर रही है. घाटशिला प्रखंड के बड़ाकुर्शी पंचायत स्थित दारीसाई सबर बस्ती में मात्र दो परिवार (बुद्धेश्वर सबर और सुकुरमनी सबर) बच गये हैं. दरअसल, शराब का सेवन और बीमारियों से लगातार सबरों की मौत हो रही है. इसे दैविक प्रकोप मानकर छह सबर परिवारों ने गांव छोड़ दिया. बस्ती के बुद्धेश्वर सबर ने कहा कि जो बीमार अस्पताल गया, वह जिंदा नहीं लौटा. यह बस्ती अशुभ हो गयी है. यहां रहनेवाले सबर गांव छोड़कर जा रहे हैं. हमारा कोई रिश्तेदार नहीं है, इसलिए दो परिवार कहीं नहीं जा सके.
इन सबर परिवारों ने गांव छोड़ा :
लगातार हो रहे मौत के बद डर से सबिता सबर और उसके भाई बंगाल चले गये. इनकी मां सुमित्रा सबर और पिता रमेश सबर की मौत हो चुकी है. प्रकाश सबर के पिता कनाई सबर, मां सुंदरी सबर की बीमारी से मौत हो चुकी है. विशु सबर के पिता दिनेश सबर और मां रुदनी सबर की मौत हो चुकी है. कार्तिक सबर के पिता चक्र सबर और मां का देहांत हो चुका है.
अशोक सबर के पिता और मां की बीमारी से मौत हो गयी है. दिनेश सबर के पिता और मां का देहांत हो चुका है. जानकारी के अनुसार उक्त सबर परिवार पत्नी और बच्चों के साथ बंगाल के तालाडीह, बासगोड़ा आदि जगहों पर चले गये हैं
बस्ती में मात्र दो परिवार बचे :
इस बस्ती में बुद्धेश्वर सबर उसकी पत्नी निशोदा सबर, बेटा शिवचरण सबर, पुत्रवधू जोनासा सबर, पोती पद्दा सबर और पोता अमित सबर अभी रह रहे हैं. इसके अलावा सुकुरमनी सबर अपने दिव्यांग बेटे शंभु सबर के साथ रह रही हैं. सुकुरमनी के पति की मौत हो चुकी है.
बस्ती में वीरान पड़े हैं आवास
दारीसाई सबर बस्ती में बिरसा आवास वीरान पड़े हैं. कई आवासों में बर्तन, बोरे, कपड़े पड़े हैं. कई आवास जंगल-झाड़ी से घिर गये हैं.
गांव छोड़ने के बजाय सबरों को शराब छोड़नी होगी. भोजन कम और नशा ज्यादा करने से अधिकांश सबर बीमार पड़ते हैं. धीरे-धीरे टीबी से ग्रसित होकर असमय काल के गाल में समा जाते हैं. स्वास्थ्य विभाग और एनजीओ की एक टीम को दारीसाई सबर बस्ती भेजेंगे. सबरों में जागरूकता जरूरी है.
कुमार एस अभिनव, बीडीओ, घाटशिला