जमशेदपुर: पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर की पहचान वैसे तो टाटा स्टील व लोहे की नगरी के रूप में है, लेकिन इस शहर के विद्यार्थियों व एजुकेशन सिस्टम ने पूरे देश व दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है. आइआइटी की प्रवेश परीक्षा में चाहे अभिनव कुमार के रूप में कंट्री टॉपर देकर हो या फिर काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशंस (सीआइएससीइ) बोर्ड में औसतन हर साल कंट्री टॉपर देकर. यही कारण है कि लोग इस बात को मानते हैं कि जमशेदपुर की स्कूलिंग वर्ल्ड क्लास है. लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से शहर में एक अजीबोगरीब ट्रेंड सेट हो गया है. हर साल रिजल्ट के वक्त तथाकथित रूप से विरोध प्रदर्शन कर अखबारों में खबर बनना और उपायुक्त को ज्ञापन के माध्यम से प्राइवेट स्कूलों पर दबाव बना कर पास होना. शिक्षाविद व स्कूल संचालक इसे खतरनाक करार दे रहे हैं. आने वाले दिनों में इसका व्यापक असर पड़ने की संभावना है. प्राइवेट स्कूलों से मिली जानकारी के अनुसार, इस बार भी 2,000 से अधिक बच्चे नौवीं व 11वीं में फेल हो गये हैं.
केरला समाजम मॉडल स्कूल में 102 बच्चे हुए फेल, प्रदर्शन
सोमवार को केरला समाजम मॉडल स्कूल के गेट पर विद्यार्थियों ने प्रदर्शन किया. बताया गया कि नौवीं में कुल 276 विद्यार्थी पढ़ाई करते हैं, जिनमें कुल 46 बच्चे फेल हो गये. इनमें 10 ऐसे भी विद्यार्थी हैं, जो पिछले साल भी नौवीं में फेल हो गये थे, तो उन्हें रिपीट करवाया था. वहीं, 11वीं में कुल 190 बच्चे पढ़ाई करते हैं, जिसमें 56 विद्यार्थी फेल कर गये. इनमें सात ऐसे विद्यार्थी हैं, जो पिछले साल भी फेल हुए थे. सभी बच्चे व अभिभावकों के साथ स्कूल की प्रिंसिपल नंदनी शुक्ला ने बातचीत की. इस बातचीत में कोई निर्णय नहीं निकल सका. इसके बाद अब बुधवार को नये सिरे से वार्ता करने की बात कही.
डीबीएमएस इंग्लिश स्कूल में 63 विद्यार्थी फेल
सोमवार को डीबीएमएस इंग्लिश स्कूल के गेट पर भी विद्यार्थियों के साथ ही उनके अभिभावकों ने प्रदर्शन किया. सभी विद्यार्थियों के अभिभावक यह मांग कर रहे थे कि उनके बच्चे को अगली क्लास में प्रमोट कर दिया जाए. हालांकि, स्कूल प्रबंधन की ओर से बताया गया कि ऐसी बात नहीं है कि अचानक से उक्त बच्चों को फेल कर दिया गया है. स्कूल प्रबंधन की ओर से बताया गया कि बच्चों को अलग-अलग टर्मिनल एग्जाम में फेल होने पर वार्निंग भी दी गयी थी. लेकिन, उनमें कोई सुधार नहीं हुआ है. बताया गया कि बोर्ड के नियमों के तहत बच्चों को फेल किया गया है.
क्या है बोर्ड का नियम
काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशंस ( सीआइएससीइ ) बोर्ड की ओर से यह नियम है कि नौवीं में विद्यार्थियों को पास होने के लिए किसी विषय में न्यूनतम 33 अंक, जबकि 11वीं में पास होने के लिए न्यूनतम 35 अंक आना अनिवार्य है. इसके साथ ही उन्हें अगली क्लास में प्रमोट होने के लिए इंग्लिश प्लस बेस्ट फोर का फार्मूला दिया गया है. यानी इंग्लिश के साथ ही अन्य चार विषयों में पास होना अनिवार्य है. यानी एक विषय में फेल होने पर अगली क्लास में विद्यार्थी प्रमोट हो सकते हैं. वर्ष 2018 में पासिंग परसेंटेज में बदलाव हुआ. पूर्व में नौवीं में 35, जबकि 11वीं में 40 प्रतिशत अंक पास होने के लिए अनिवार्य थे. साथ ही बोर्ड ने पास परसेंटेज में एकरूपता रखने का भी निर्देश दिया है.
राजेंद्र विद्यालय में भी हो गये 100 फेल, सशर्त हुए प्रमोट
पिछले दिनों राजेंद्र विद्यालय में भी नौवीं और 11वीं क्लास में करीब 100 विद्यार्थी फेल कर गये. उक्त सभी विद्यार्थियों के अभिभावकों ने हंगामा किया. स्कूल प्रबंधन पर कई गंभीर आरोप लगाए, जिसके बाद एसडीओ की अध्यक्षता में त्रिपक्षीय वार्ता हुई. इसके बाद स्कूल प्रबंधन व अभिभावकों में आपसी सहमति बनी कि सभी विद्यार्थियों को सशर्त प्रमोट किया जायेगा. लेकिन, अगर वे प्रमोट होने के बाद अगली क्लास के फर्स्ट टर्म में फिर फेल हो गये, तो उन्हें पुन: पिछले क्लास में पढ़ाई करनी होगी.
इसलिए बड़ी संख्या में बच्चे हो रहे फेल
- आरटीइ लागू होने के बाद नियमत: किसी बच्चों को आठवीं तक फेल नहीं करना है. बच्चों को फेल नहीं होने का डर होने की वजह से बच्चे पढ़ाई नहीं करते हैं. उनका बेस कमजोर हो जाता है. आठवीं तक के बच्चों का स्टैंडर्ड पांचवीं-छठी के बराबर होता है. अचानक नौवीं में जाने पर वे सिलेबस का भार नहीं सहन कर पाते हैं.
- कोरोना काल में बच्चों में पढ़ने की आदत छूट गयी. दो साल तक बच्चे किताब से दूर रहे. पढ़ने की आदत छूटने का व्यापक असर पड़ा है.
- कोरोना काल में बच्चों ने करीब दो साल तक लिखा ही नहीं. लिखने की आदत छूट गयी. अब बच्चे पेन-पेपर पर लिख ही नहीं पाते हैं. वे टैब व मोबाइल का नियमित इस्तेमाल कर रहे हैं. भटकाव भी हुआ है.
- अभिभावकों में भी पूर्व निश्चिंतता आ गयी है कि नियमों की आड़ में बच्चे आठवीं तक पास हो जाएंगे. वे ज्यादा तनाव नहीं लेते.
- 11वीं में विषयों का चयन गलत कर रहे हैं. अधिकांश अभिभावक बच्चों पर साइंस पढ़ने का दबाव बनाते हैं, इसके लिए वे स्कूलों में पैरवी से लेकर हर हथकंडे अपनाते हैं. बच्चे साइंस का भार सहन नहीं कर पाते और बड़ी संख्या में फेल करते हैं.
ये तीन आरोप स्कूल प्रबंधकों को कटघरा में खड़े कर रहे
शहर के प्राइवेट स्कूलों में नंबर वन स्कूल बनने की होड़ है. स्कूलों के बीच प्रतिस्पर्धा किसी से छिपी हुई नहीं है. हर स्कूल रिजल्ट जारी होने पर अपनी ब्रांडिंग में लगा रहता है. अभिभावक नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि स्कूलों में 10वीं व 12वीं की परीक्षा के लिए जितनी सीटों की मान्यता मिली हुई है, उससे अधिक विद्यार्थियों का एडमिशन निचले क्लास में ले लिया जाता है. लेकिन, बोर्ड से रजिस्ट्रेशन के लिए कम संख्या रहने पर विद्यार्थियों पर कड़ाई की जाती है, जिससे वे फेल कर जाते हैं.
टॉपर बना तो स्कूल की क्रेडिट, फेल होने पर झाड़ लेते हैं पल्ला
प्रभात खबर से बात करते हुए कई अभिभावकों ने कहा कि बच्चे फेल हो गये तो इसकी पूरी जिम्मेदारी बच्चे व अभिभावक पर डाला जा रहा है. लेकिन, जब बच्चे अच्छे अंक से पास करते हैं तो पूरी क्रेडिट स्कूल प्रबंधक लेकर जाते हैं. अपनी पीठ थपथपाते हैं. अभिभावकों ने कहा कि अगर स्कूल में 10 साल रहने के बाद भी बच्चे को 10 व 15 अंक आते हैं, तो स्कूल अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते हैं.
बच्चों पर ट्यूशन पढ़ने का बनाया जाता है दबाव
शहर के स्कूलों में कागजों पर यह नियम है कि स्कूल के शिक्षक बच्चों को ट्यूशन नहीं पढ़ाएंगे. लेकिन, सच्चाई कुछ और ही है. स्कूल के शिक्षक धड़ल्ले से अपने स्कूल के ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते हैं. ट्यूशन नहीं पढ़ने वाले बच्चों ने आरोप लगाया कि स्कूल के टीचर से ट्यूशन नहीं पढ़ने पर प्रोजेक्ट वर्क व क्लास टेस्ट में कम अंक दिए जाते हैं. बच्चों पर ट्यूशन पढ़ने का दबाव भी बनाया जाता है.
क्या कहते हैं प्रिंसिपल
बड़ी संख्या में बच्चे फेल हो रहे हैं. यह घोर चिंता का विषय है. स्कूल प्रबंधकों के साथ ही अभिभावकों को मिल कर इसका समाधान करने की आवश्यकता है. स्कूल प्रबंधक बच्चों के दुश्मन नहीं हैं. लेकिन, अगर बच्चे का बेस कमजोर है, तो उसे मजबूत करने की आवश्यकता है, ना कि जबरन प्रमोट कर बच्चे पर अतिरिक्त भार देने की.
-फादर विनोद फर्नांडिस, प्रिंसिपल, लोयोला स्कूल
बच्चों को हर टर्म में रिजल्ट खराब होने के बाद अच्छी तरह से पढ़ाई करने को कहा जाता है. काउंसेलिंग की जाती है, अभिभावकों से भी बातचीत की जाती है. लेकिन, वास्तव में अगर देखा जाए तो बच्चे का बेस ही कमजोर होता है. आरटीइ का असर है, कमजोर बच्चे प्रमोट होते-होते आठवीं तक पहुंच जाते हैं, बेस कमजोर होने पर वे नौवीं में फेल हो जाते हैं.
-रजनी शेखर, प्रिंसिपल, डीबीएमएस इंग्लिश स्कूल
क्या कहते हैं डीसी
पूर्वी सिंहभूम के डीसी अनन्य मित्तल ने कहा कि शहर के कई प्राइवेट स्कूलों के प्रिंसिपलों ने मुलाकात की. उन्होंने नौवीं व 11वीं में फेल होने के मामले की जानकारी दी. मैंने उन्हें स्पष्ट निर्देश दिया है कि काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशंस ( सीआइएससीइ ) बोर्ड के नियमों का पालन किया जाए. अगर बोर्ड के निर्देशों में छेड़छाड़ कर किसी बच्चे को फेल करने की शिकायत आती है, तो मामले की जांच करवा कर स्कूल प्रबंधक पर कार्रवाई की जाएगी.
प्रिंसिपलों ने डीसी को बतायी पीड़ा-पास करने का बनाया जा रहा दबाव
नौवीं व 11वीं में फेल होने के बाद हर बार की तरह इस बार भी स्कूल के गेट के बाहर ””””प्रदर्शन फार्मूला”””” के तहत बच्चों को पास करने के लिए सभी प्राइवेट स्कूलों पर दबाव बनाए जा रहे हैं. सोमवार को डीबीएमएस इंग्लिश स्कूल व केरला समाजम मॉडल स्कूल में भी विद्यार्थियों व अभिभावकों ने प्रदर्शन किया. इसके बाद सामूहिक रूप से शहर के करीब 25 प्राइवेट स्कूलों के प्रिंसिपलों ने उपायुक्त अनन्य मित्तल से मुलाकात की.
उपायुक्त के समक्ष सुनायी पीड़ा
इस दौरान सभी प्राइवेट स्कूलों के प्रिंसिपलों ने उपायुक्त के समक्ष अपनी पीड़ा बतायी. कहा कि नौवीं व 11वीं में जिन बच्चों को फेल किया गया है, उन्हें एक-दो नहीं, बल्कि पांच बार से अधिक लिखित रूप से वार्निंग दी गयी. बच्चों के साथ ही अभिभावकों की काउंसेलिंग भी की गयी. लेकिन, सुधार नहीं होने के बाद सीआइएससीइ बोर्ड के नियमों को पालन करते हुए मजबूरन फेल किया गया है. उपायुक्त अनन्य मित्तल ने सभी प्रिंसिपलों की बातों को सुनने के बाद बोर्ड के तय नियमों का पालन करने की अनुमति दी. साथ ही यह भी हिदायत दी कि अगर बोर्ड के आदेशों का उल्लंघन कर गलत मंशा से विद्यार्थियों को फेल करने की शिकायत मिलेगी, तो सभी स्कूलों की जांच करवा कर कड़ी कार्रवाई की जाएगी.