जमशेदपुर, संजीव भारद्वाज : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर स्थापित रीति-रिवाज, पारंपरिक वेशभूषा और परंपराओं को मानने वाले अनुसूचित समाज के लोगों को ही अनुसूचित जनजाति (एसटी) का प्रमाण पत्र निर्गत करने का अनुरोध किया है. केरल हाईकोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए रघुवर दास ने मुख्यमंत्री से कार्मिक विभाग को इस संबंध में पत्र जारी करने संबंधी निर्देश देने का आग्रह किया है. ऐसे में जो व्यक्ति जनजाति समाज के रीति-रिवाजों को नहीं मानते हों, उनका जाति प्रमाण पत्र निर्गत नहीं किया जाना चाहिए. दास ने कहा कि मुख्यमंत्री खुद अनुसूचित जनजाति समाज से आते हैं. जनजातीय समाज ने बड़े भरोसे के साथ उन्हें मुख्यमंत्री के पद पर बैठाया था. वे लोग अब खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं. जनजातीय समाज उनसे अपेक्षा करता है कि उसके साथ न्याय हो, लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि मुख्यमंत्री बनने के साथ सबसे अधिक विश्वासघात उन्होंने अपने ही जनजातीय समाज के साथ किया.
जनजातीय समाज की परंपरा और पहचान संकट में
रघुवर दास ने कहा है कि यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जनजातीय समाज को आज झारखंड में किस खराब दौर से गुजर रहा है. झारखंड में जनजातीय समाज की परंपरा और पहचान आपकी सरकार की वजह से संकट में आ गयी है. पर्दे के पीछे से आपकी सरकार चलाने वाले चाहते हैं कि यहां का अनुसूचित जनजाति समाज मांदर की जगह गिटार पकड़ ले.
सरना समाज को गुमराह न करें सीएम हेमंत सोरेन : रघुवर
बीजेपी नेता रघुवर दास ने कहा कि उनका मुख्यमंत्री से अनुरोध है कि सरना कोड के नाम पर आप जनजातीय समाज विशेषकर सरना समाज को गुमराह करने की बजाय जो आपके हाथ में है, कम से कम उसे तो लागू कर दें. अनुसूचित जनजाति समाज की सालों पुरानी मांग है कि स्थापित रीति-रिवाज, पारंपरिक वेशभूषा और परंपराओं को मानने वालों को ही एसटी जाति प्रमाण पत्र निर्गत किया जाये. 1997 में केरल राज्य एवं एक अन्य बनाम चंद्रमोहनन मामले में केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट फैसला सुनाया था कि अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र निर्गत करने का क्या-क्या आधार होना चाहिए, लेकिन उनकी सरकार इस अहम मुद्दे पर मौन है.
ये है केरल हाईकोर्ट का फैसला
श्री दास ने कहा कि उनका मुख्यमंत्री से अनुरोध है कि अनुसूचित जनजाति समाज के हित में केरल हाईकोर्ट के फैसले को झारखंड में उतारने का काम करें. केरल हाईकोर्ट के निर्णय का सार इस प्रकार है- आवेदक के माता एवं पिता दोनों ही अनुसूचित जनजाति के सदस्य होने चाहिए. उनके माता-पिता का विवाह संबंधित जनजाति की रूढ़ियों एवं परंपराओं के अनुसार किया गया होना चाहिए. उनका विवाह जनजाति समाज द्वारा किया गया हो एवं उसे समाज के द्वारा मान्यता दी गयी हो. आवेदक एवं उसके माता-पिता के द्वारा जातिगत रूढ़ियों, परंपराओं एवं अनुष्ठान का पालन किया जा रहा है. आवेदक एवं उसके माता-पिता के द्वारा अपने पूर्वजों की विरासत एवं उत्तराधिकार के नियमों का पालन किया जा रहा है या नहीं. इन सब मामलों की जांच के पश्चात् ही जाति प्रमाण पत्र निर्गत किया जाना चाहिए.
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