जमशेदपुर की रग-रग में रतन
रतन टाटा का निधन 9 अक्तूबर 2024 को ही हो गया. शनिवार को यानी 28 दिसंबर को उनका जन्मदिन मनाया जायेगा. वे पहली बार अपने जन्मदिन पर हमारे बीच नहीं होंगे.
जमशेदपुर. देश की ऐसी शख्सियत, जिनको देश का रतन कहा जाता है. हम बात कर रहे हैं देश के प्रख्यात उद्योगपति और टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष (चेयरमैन) रतन टाटा की. रतन टाटा का निधन 9 अक्तूबर 2024 को ही हो गया. शनिवार को यानी 28 दिसंबर को उनका जन्मदिन मनाया जायेगा. वे पहली बार अपने जन्मदिन पर हमारे बीच नहीं होंगे. यह मौका है उनके किये गये कार्यों को याद करने का. उनकी सोच और विचारों को आत्मसात करने का और रतन टाटा कैसे भारत के रतन कहे गये, इसके बारे में जानने का और जमशेदपुर से उनके जुड़ाव की पूरी कहानी का. रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को हुआ था. इसके बाद वे 1991 से 2012 तक टाटा समूह के चेयरमैन रहे और अंत समय तक टाटा समूह की संचालक संस्था टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन बने रहे. वे लोक कल्याणकारी फैसलों के लिए हमेशा से जाने जाते रहे हैं. वे एक ऐसे उद्योगपति थे, जो परोपकारी के तौर पर ज्यादा जाने गये. उनके फैसलों ने देश का रतन उनको बना दिया.
टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रहते हुए 26 बार शहर आये थे
टाटा संस के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का जमशेदपुर से विशेष लगाव बना रहा था. टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रहते हुए वे 26 बार जमशेदपुर आये थे. बढ़ती उम्र के बावजूद उन्होंने जमशेदपुर से अपना कनेक्शन तोड़ा नहीं था. यहां हर साल 3 मार्च को होने वाले कार्यक्रम में उनकी कोशिश होती थी कि वे इसमें जरूर शामिल हों. गत वर्ष 3 मार्च को यहां पर आयोजित कार्यक्रम में रतन टाटा को आना था. लेकिन, तबीयत खराब होने के चलते वह यहां पर नहीं आ सके थे. उनकी करियर की शुरुआत भी यहीं से हुई थी. उनकी रग रग में स्टील सिटी बसी हुई थी. वे रिटायरमेंट के बाद भी अपने सोशल मीडिया पर लगातार जमशेदपुर की तस्वीरों को साझा करते रहे थे. वर्ष 1962 में रतन टाटा वास्तुकला में ग्रेजुएट हुए और इसी साल वह पहली बार टाटा समूह की कंपनी टाटा इंडस्ट्रीज में बतौर असिस्टेंट शामिल हुए. वे जमशेदपुर से ही अपने करियर की शुरुआत की. उन्होंने टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी (अब टाटा मोटर्स) के जमशेदपुर प्लांट में छह माह की ट्रेनिंग ली. इसके बाद रतन टाटा का एक ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए ट्रांसफर किया गया. यह ट्रांसफर टाटा स्टील (उस वक्त टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी टिस्को) में किया गया. इसके बाद वे टिस्को के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में 1965 में भेजे गये. वे वहां तकनीकी अधिकारी के तौर पर काम करना शुरू किये. इसके बाद से उनका कंपनी और काॅरपोरेट के तौर पर उनको जाना गया. अंतिम बार वे कोरोना के दौरान ही वर्ष 2021 में जमशेदपुर आये थे. करीब तीन साल पहले वे अंतिम बार यहां आये थे. 3 मार्च 2021 को वे टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन के साथ आये थे. वे संस्थापक दिवस परेड में शामिल हुए थे. टाटा वर्कर्स यूनियन के पदाधिकारियों से मुलाकात की थी. उसके बाद फिर वे नहीं लौटे. लेकिन, अंतिम दौरे के दौरान रतन टाटा ने कहा था कि फिर हम शहर आ सके या नहीं, लेकिन यह जरूर कहा कि वे चाहते हैं कि यह शहर और आगे बढ़े और एक अपनी पहचान बनाये. इसके लिए शहरवासियों को भी खुद आगे आना होगा.जमशेदपुर में केनेल क्लब खोला
जानवरों के प्रति प्रेम को देखते हुए रतन टाटा ने जमशेदपुर में केनेल क्लब खोला. इसके अलावा, युवा विकास के लिए उन्होंने कई अकादमियों की स्थापना की, जिनमें नवल टाटा हॉकी अकादमी प्रमुख है. शहर की हरियाली और स्वच्छता के प्रति भी उनका विशेष ध्यान था. उन्होंने जमशेदपुर की ऐतिहासिक इमारतों, जैसे नटराज बिल्डिंग, बुलेवर्ड बिल्डिंग और रीगल बिल्डिंग, को संरक्षित करने की बात कही थी.सीएच एरिया के दो मकानों की खुद की थी डिजाइनिंग
टाटा समूह के कामकाज सीखने के लिए रतन टाटा बकायदा मजदूरों के साथ शॉप फ्लोर में काम किये. इसके बाद वे लगातार बुलंदियों को छूते गये. उनसे जुड़ी एक याद जमशेदपुर में है. जमशेदपुर के बिष्टुपुर के सीएच एरिया में उनकी ही डिजाइन किया गया मकान है, जिसमें आज टाटा स्टील के पूर्व डिप्टी एमडी डॉ टी मुखर्जी रहते हैं. इसके अलावा उक्त मकान से सटे हुए एक और मकान में मानसरोवर कंपनी के प्रोपराइटर रहते हैं. रतन टाटा ने उक्त मकान की खुद डिजाइनिंग की थी. वे एक आर्किटेक्ट भी थे. वे जमशेदपुर प्रवास के दौरान टाटा स्टील के लिए खुद से डिजाइन की थी, जो सबलीज का मकान था. उक्त मकान अब उपरोक्त दोनों शख्स के पास हैं.डॉ टी मुखर्जी को याद हैं रतन टाटा के साथ किये कार्य
रतन टाटा के साथ टाटा स्टील के पूर्व डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट डॉ टी मुखर्जी ने भी काफी लंबा समय काम किया था. उन्होंने अपनी याद को ताजा किया और कहा कि रतन टाटा के दिल में जमशेदपुर बसता था. श्री मुखर्जी ने बताया कि जब वे टाटा स्टील में फर्नेस के हेड ऑपरेशन थे, उस समय रतन टाटा ने कंपनी के कर्मचारियों और पदाधिकारियों से मुलाकात की थी. उन्होंने पूछा कि आप देश में नंबर वन बने रहना चाहते हो या दुनिया में? इस सवाल के जवाब में मजदूर व पदाधिकारी कुछ देर तक स्तब्ध हो गए. सभी को पता चल गया कि वे कंपनी के मजदूरों को एक टास्क उनकी इच्छानुसार देना चाहते हैं. थोड़ा रुककर मजदूरों ने कहा कि आप जैसा सोचते हैं, कंपनी को वैसा ही बनाना चाहते हैं. मजदूरों का यह जवाब रतन टाटा को इतना पसंद आया कि उसी दिन से इस पर काम प्रारंभ हो गया. डॉ टी मुखर्जी ने बताया कि इसके बाद कई पदाधिकारियों को निप्पन स्टील व अन्य कई विदेशी स्टील कंपनियों में भेजा गया. वहां के वर्क कल्चर को देखा, जिसके बाद जो होना था, अब सबके सामने है. सामूहिक एकजुटता व प्रयास के कारण टाटा स्टील दुनिया की श्रेष्ठ कंपनी के साथ एक विश्वसनीय कंपनी बन गयी है. मजदूरों के प्रति उनका प्रेम सहज ही झलकता है. वे मजदूरों के हर सुझाव का सम्मान करते थे. डॉ टी मुखर्जी ने रतन टाटा को लेकर कहा कि उन्होंने जिस आदर्शों के साथ कंपनी को खड़ा किया, वह दूसरों के लिए अनुकरणीय है. रतन टाटा ने राष्ट्रीय गौरव के साथ कभी समझौता नहीं किया.रतन टाटा ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने कई लीडर पैदा किये : बी मुत्थुरमण
टाटा स्टील के पूर्व एमडी बी मुत्थुरमण ने कहा कि रतन टाटा ऐसे लीडर थे, जिन्होंने कई लीडर पैदा कर दिये. उनके सिर्फ मार्गदर्शन से हमारे जैसे पदाधिकारी भी काम करने आ गये. उन्होंने कहा कि उनसे काफी कुछ सीखने को मिला. विपरीत परिस्थितियों में भी किस तरह से फैसले लेने हैं, किस तरह से मजदूर हितों में काम करते हुए कंपनी को आगे ले जाना है, यह सीख उन्होंने दी. उन्होंने याद करते हुए कहा कि रतन टाटा जैसे लीडर देश ही नहीं, बल्कि दुनिया में विरले ही पैदा होते हैं. उनके बताये मार्ग पर उदयमान काॅरपोरेट हस्तियां काम करें, तो उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है