दशरथ हांसदा के समर्पण व निरंतर प्रयास ने संताली सिनेमा को दिलायी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान

संताली फिल्मों की नींव रखने वालों में दशरथ हांसदा का नाम प्रमुखता से आता है. दशरथ हांसदा ने शुरुआत से लेकर वर्तमान समय तक अपने हौसले और जुनून के साथ संताली फिल्मों का निर्माण किया है.

By Prabhat Khabar News Desk | August 6, 2024 12:54 AM

जमशेदपुर:

संताली फिल्मों की नींव रखने वालों में दशरथ हांसदा का नाम प्रमुखता से आता है. दशरथ हांसदा ने शुरुआत से लेकर वर्तमान समय तक अपने हौसले और जुनून के साथ संताली फिल्मों का निर्माण किया है. उनके अथक प्रयास ने संताली फिल्मों को एक मजबूत पहचान दिलायी है. शुरुआती दिनों में जिस जोश और जुनून के साथ उन्होंने फिल्मों का निर्माण किया, वह आज भी बरकरार है. दशरथ हांसदा को संताली फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भीष्म पितामह कहा जाता है. उनके योगदान के कारण संताली फिल्में आज न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सराही जा रही है.

1980 की दशक में हुई संताली फिल्मों की शुरुआत

संताली फिल्म का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. इसकी शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी. शुरुआती दौर में लगभग 20 वर्षों तक, केवल वीडियो फीचर फिल्में ही बनायी जाती थीं. इस अवधि में संताली भाषा और संस्कृति को उभारने और समाज में अपनी पहचान बनाने के प्रयास हुए. ऑन रिकॉर्ड में पहली संताली फिल्म का श्रेय “चांदो लिखोन ” को मिला, जो वर्ष 2000 में बनी थी.

दशरथ हांसदा के निर्देशन में बनी थी “चांदो लिखोन “

ऑन रिकॉर्ड पहली संताली फिल्म “चांदो लिखोन ” को दशरथ हांसदा ने निर्देशित किया. इसके निर्माता-प्रेम मार्डी व म्यूजिक डायरेक्टर पीएन कालुंडिया थे. दशरथ हांसदा ने अब तक करीब 35 फिल्मों का निर्माण किया है. उसने अपनी सभी फिल्मों का सेंसर कराया है. सर्वाधिक संताली फिल्म को सेंसर कराने का रिकार्ड भी उन्हीं के नाम है. संताली फिल्मों के 40 वर्षों के सफर में करीब 200 से अधिक फूललेंथ की फिल्में बनी है. लेकिन अधिकाश निर्माता-निर्देशकों ने अपने फिल्मों को सेंसर नहीं कराया है. दशरथ ने 40 संताली फिल्मों में एक्टिंग किया. एक हिंदी फिल्म “जोरम ” में काम किया है. वहीं प्रबल महतो 15 से अधिक हिंदी डॉक्यूमेंट्री फिल्म में काम किया है. वे लंबे समय से संताली और हिंदी थियेटर से भी जुड़े हुए हैं. संताली में 60 व हिंदी में करीब 40 ड्रामा में अभिनय किया है. उसने संताली व हिंदी थियेटर मंच से भी राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल किया है.

“चांदो लिखोन ” निर्माता-निर्देशकों के लिए प्रेरणा श्रोत बनी

“चांदो लिखोन ” संताली सिनेमा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ. इसके बाद संताली फिल्मों की संख्या में वृद्धि होने लगी. इस फिल्म ने संताली समाज के लोगों को अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति गर्व का अनुभव कराया और उन्हें अपने जीवन की कहानियों को बड़े पर्दे पर देखने का अवसर प्रदान किया. इसके साथ ही, अन्य फिल्म निर्माताओं को भी प्रेरणा मिली और संताली सिनेमा की धारा में नयी ऊर्जा का संचार हुआ.

सरकार कलाकारों का सहयोग व सम्मान नहीं करती : दशरथ हांसदा

सिने अभिनेता व निर्माता-निर्देशक दशरथ हांसदा बताते हैं वर्तमान में संताली फिल्में न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी पहचान बना चुकी है. ये फिल्में संताली संस्कृति, रीति-रिवाज और जनजीवन को चित्रित करती हैं. इससे यह भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने और उन्हें व्यापक दर्शक वर्ग तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. इस तरह संताली सिनेमा अपने समाज और संस्कृति के महत्वपूर्ण अंश को जीवंत बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है. लेकिन केंद्र व राज्य सरकार इनके निर्माता, निर्देशक व कलाकारों को सहयोग और सम्मान नहीं देती है. सरकार अगर कलाकारों को सहयोग व सम्मान दे तो बॉलीवुड की तरह झारखंड में भी फिल्म उद्योग फल फूल सकता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Next Article

Exit mobile version