Happy Teachers Day : झारखंड की शिप्रा मिश्रा के पढ़ाने का है अनोखा अंदाज, प्रकृति को विज्ञान से जोड़ा
Happy Teachers Day: डिब्बा स्कूल के नाम से बदनाम टाटा वर्कर्स यूनियन उच्च विद्यालय कदमा में साइंस टीचर के रूप में योगदान देने वाली शिप्रा मिश्रा ने प्रिंसिपल के साथ मिलकर एक पहल की और कुछ ही दिनों में स्कूल का कायाकल्प कर दिया.
Happy Teachers Day: सच्ची लगन हो. कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो, तो छोटे-छोटे काम करके बड़ी से बड़ी उपलब्धि हासिल की जा सकती है. किसी भी टीचर का सपना होता है कि उसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिले. इसके लिए जरूरी नहीं कि आप बड़े-बड़े स्कूलों में पढ़ायें. बड़े-बड़े काम करें. बल्कि जरूरत है, छोटी-सी पहल करके बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करें. जमशेदपुर में सरकारी स्कूल में पढ़ा रहीं शिप्रा मिश्रा ने ऐसा ही किया. उन्होंने विज्ञान को प्रकृति से जोड़ा और विज्ञान को रोचक विषय बना दिया. कभी डिब्बा स्कूल के नाम से बदनाम स्कूल को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलायी है. वर्ष 2022 में राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली शिप्रा मिश्रा झारखंड की एकमात्र टीचर हैं. आइए, जानते हैं कि शिप्रा मिश्रा ने किस तरह इस मुकाम को हासिल किया. उन्होंने हमारे संवाददाता विकास श्रीवास्तव से लंबी बातचीत की. आप भी पढ़ें, राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित होने वाली शिप्रा मिश्रा का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू.
‘डिब्बा’ स्कूल को दिलायी राष्ट्रीय पहचानडिब्बा स्कूल के नाम से बदनाम टाटा वर्कर्स यूनियन उच्च विद्यालय कदमा में साइंस टीचर के रूप में योगदान देने वाली शिप्रा मिश्रा (Shipra Mishra) ने प्रिंसिपल के साथ मिलकर एक पहल की और कुछ ही दिनों में स्कूल का कायाकल्प कर दिया. यह स्कूल एक समय नशेड़ियों और जुआरियों का अड्डा हुआ करता था. शिक्षिका शिप्रा मिश्रा ने स्कूल की प्राचार्य सेतेंग केरकेट्टा के सहयोग से उन्होंने स्कूल में बदलाव लाने की ठानी. वर्ष 2022 में राज्य स्तरीय स्वच्छता पुरस्कार से इस स्कूल को नवाजा गया. साथ ही शिप्रा जी को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए भी चुना गया.
शिप्रा मिश्रा कहती हैं कि उन्होंने इनोवेटिव, क्रिएटिव तरीके से बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. विज्ञान जैसे कठिन विषय को उन्होंने बच्चों के लिए खेल का विषय बना दिया. गणित के ज्यामिती के जटिल चैप्टर को बागवानी व पेड़ों की घेराबंदी कर आसान बना दिया. यूज्ड प्लास्टिक बोतल से स्कूल प्रांगण में स्थित बागवानी की चहारदीवारी बना दी. उनकी इसी अलग सोच, इनोवेटिव आइडिया ने इस मुकाम तक पहुंचा दिया है.
शिप्रा मिश्रा इस पुरस्कार के मिलने से खुश हैं. इसका श्रेय अपने स्कूल की प्रिंसिपल सेतेंग केरकेट्टा, साथी शिक्षिका मिट्ठू साहा व उन सभी विद्यार्थियों को देती हैं, जिन्होंने उनकी बातों को समझा. उनके पढ़ाने के तरीके को अपनाया.
विज्ञान को अलग नजरिये से देखने और समझने वाली शिप्रा मिश्रा ने डिजिटल प्लेटफॉर्म का बखूबी इस्तेमाल किया. बच्चों को मोबाइल का सदुपयोग सिखाया. उन्होंने प्रकृति और विज्ञान को समायोजित करने का काम किया. शिप्रा मिश्रा ने बताया कि वे देखती थीं कि लोग स्कैन कोड, बार कोड, क्यूआर कोड का उपयोग केवल पेमेंट के लिए करते हैं, जबकि इसके व्यापक आयाम हैं. शिप्रा ने अपने स्कूल में लगे पेड़-पौधों के रहस्य को क्यूआर कोड में तब्दील कर दिया.
उन्होंने सभी पेड़ों की विस्तृत जानकारी का एक क्यूआर कोड बना दिया. अब कोई भी बच्चा उस क्यूआर कोड को स्कैन करके पेड़ के बारे में पूरी जानकारी, रहस्य, गुण, प्रजाति, कहां पाया जाता है, जैसी संपूर्ण जानकारी हासिल कर सकता है. इसी तरह उन्होंने ज्यामिती के अलग-अलग आकार जैसे त्रिभुज, चतुर्भुज, षटकोण, वृत्त को रोचक बनाने के लिए अलग-अलग आकृति बगान में बनवायी. उनका भी क्यूआर कोड बना दिया.
अब वे अपने मोबाइल में तत्काल उसे स्कैन कर आकार से संबंधित संपूर्ण जानकारी बच्चों को दे देती हैं. यह पूरी पढ़ाई वह क्लास रूम की बजाय स्कूल के बगान व फुलवारी में करवाती हैं. इससे बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ी. उनके मन में रचनात्मक विचार आते हैं. शिप्रा मिश्रा के पति बैंक में अधिकारी हैं, जबकि उनकी बेटी दसवीं और बेटा तीसरी कक्षा में जमशेदपुर सोनारी के कारमेल जुनियर कॉलेज में पढ़ाई करता है.
झारखंड से इकलौती शिक्षिका शिप्रा मिश्रायह लगातार तीसरा साल है, जब जमशेदपुर व पूर्वी सिंहभूम के टीचर को राष्ट्रीय पुरस्कार मिल रहा है. इस वर्ष झारखंड से तीन शिक्षकों नाम भेजे गये थे. उनमें शिप्रा मिश्रा का चयन हुआ है. पांच सितंबर को शिक्षक दिवस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हें पुरस्कृत करेंगी. शिप्रा मिश्रा मूल रूप से बिहार के पूर्णिया जिले की हैं. वर्ष 2010 में वे सरकारी शिक्षिका के तौर पर नियुक्त हुईं.
चर्च स्कूल बेल्डीह से शुरू किया टीचिंग का करियरशिप्रा मिश्रा ने जमशेदपुर के बिष्टुपुर स्थित बेल्डीह चर्च स्कूल से टीचर के रूप में करियर की शुरुआत की. विज्ञान शिक्षिका के रूप में वर्ष 2009 में योगदान दिया. इसके छह माह बाद ही जेपीएससी शिक्षक नियुक्ति परीक्षा में सफल हुईं. पहली बार जमशेदपुर हाई स्कूल बिष्टुपुर में विज्ञान शिक्षिका के रूप में वर्ष 2010 में नियुक्त हुईं. वर्ष 2016 में उनका स्थानांतरण टाटा वर्कर्स यूनियन उच्च विद्यालय कदमा में किया गया. इसके बाद उन्होंने इस स्कूल की तरक्की के लिए दिन-रात एक कर दिया. पहले स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया. हर साल मैट्रिक का परिणाम अच्छा आता गया और बच्चों की संख्या में इजाफा होता चला गया. स्लम एरिया से बच्चों को ढूंढ़-ढूंढ़कर, कैंपेन चलाकर स्कूल में दाखिला करवाया.
शिप्रा के छात्रों के मॉडल ने जीते हैं कई पुरस्कारस्कूल में छात्रों को विज्ञान में रुचि बढ़ाने और छात्रों को स्कूल की गतिविधियों से जोड़े रखने के लिए अपने विद्यार्थियों के सहयोग से कई तरह के इनोवेशन करती हैं. शिप्रा मिश्रा की छात्रा नेहा सरदार का ‘स्मार्ट विलेज’ का मॉडल विज्ञान प्रदर्शनी में राज्य स्तर पर पुरस्कार प्राप्त कर चुका है. यहीं से वह आगे बढ़ती गयी. अभी हाल ही में आइएसएम धनबाद झारखंड के सरकारी स्कूलों की श्रेणी में इस स्कूल के छात्रों द्वारा बनाये गये ‘ऑटोमेटिक क्लीन टॉयलेट’ प्रोजेक्ट को ओवरऑल श्रेणी का पुरस्कार मिला.
झारखंड का पहला एमएचएम लैब इसी स्कूल में बनासाथ ही राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता पुरस्कार के लिए इस स्कूल का चयन हुआ है. इसमें भी इस शिक्षिका ने लीक से हटकर काम किया. कई लोगों से मदद भी मांगी. झारखंड का पहला एमएचएम लैब भी इस स्कूल में बना, जो छात्राओं के लिए कारगर साबित हुआ. इस स्कूल में स्मार्ट क्लास व नये भवन के लिए भी काफी प्रयास किये गये. इसमें सरकार व जिला शिक्षा विभाग ने भी सहयोग किया.
शिक्षिका का प्रोफाइलनाम : शिप्रा मिश्रा
प्राथमिक शिक्षा : कक्षा एक से छह तक बिहार के सीवान जिला के प्राथमिक विद्यालय
दसवीं तक शिक्षा : नवोदय विद्यालय कटिहार
स्नातक : रांची वीमेंस कॉलेज से, केमेस्ट्री ऑनर्स
एमएससी : रांची यूनिवर्सिटी
बीएड : रांची वीमेंस कॉलेज
2020 में एनएमएल द्वारा बेस्ट साइंस टीचर्स अवार्ड
2019 में राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान
2017 में रोटरी क्लब की ओर से वर्ष सर्वश्रेष्ठ शिक्षिका का सम्मान
इनर ह्वील क्लब की ओर से सर्वश्रेष्ठ शिक्षिका का सम्मान