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मोबाइल, सिनेमा और इंटरनेट के साइड इफेक्ट, पांच साल के बच्चे ने चला दी गोली, समाज को सोचने की जरूरत

बुधवार को बिहार के सुपौल में एक पांच साल के बच्चे ने एक 11 साल के बच्चे पर गोली चला दी. इस घटना के बाद वह बच्चा गंभीर रूप से घायल हो गया. इस घटना से हमें यह सोचने की जरूरत है कि खेलने,कूदने की उम्र में मासूम के हाथ हथियार कैसे लगे.

जमशेदपुर : गत बुधवार की सुबह बिहार के सुपौल जिले के त्रिवेणीगंज स्थित सेंट जॉन बोर्डिंग स्कूल में पांच वर्षीय एक छात्र ने 11 साल के स्टूडेंट पर गोली चला दी. गाेली लगने से छात्र गंभीर रूप से जख्मी है. उसका इलाज किया जा रहा है. इस घटना ने मानव समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया कि हमारे देश के नौनिहाल किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. जिस कच्ची उम्र में मासूम के साथ में पेंसिल और खिलौने होनी चाहिए, उस उम्र में अगर उसके हाथ में बंदूक पहुंच गयी है, तो इसके लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. अगर यह स्थिति उत्पन्न हुई है, तो इसके लिए समाज के हर स्टेक होल्डर जिम्मेदार हैं. इस प्रकार की घटना की पुनरावृत्ति नहीं हो, इसके लिए साझा प्रयास की आवश्यकता है.

स्कूल, अभिभावक और पूरे समाज के लिए चुनौती

स्कूल और क्लास शब्द सुनते ही जेहन में आता है शिक्षक-छात्र, पेन-पेंसिल, कॉपी-किताब, यूनिफॉर्म, चॉक और ब्लैक बोर्ड. लेकिन, अफसोस इस बात की है कि स्कूल के साथ अब पिस्टल, फायरिंग, नशा और धूम्रपान की गतिविधि की सुनायी दे रही है. श्रेष्ठ स्कूली शिक्षा के लिए जिस बिहार-झारखंड को देशभर में जाना जाता है, वहां यह क्या हो रहा है? यह सवाल उठना आज लाजमी है. सुपौल की घटना ने सभ्य समाज के हर आम और खास लोगों को झकझोर दिया है. इस प्रकार की घटना के हर पहलू को समझने का प्रयास किया गया, जिसके बाद यह बात उभर कर सामने आयी कि इसमें कहीं ना कहीं अभिभावकों की सबसे बड़ी कमी है. बच्चों के साथ आज के दौर में हैंडल विद केयर से पेश आने की आवश्यकता है. उन्हें किस प्रकार के खिलौने दे रहे हैं, इस पर भी विचार करना चाहिए. यह स्कूल, अभिभावक और पूरे समाज के लिए चुनौती से कम नहीं है.

दयानंद पब्लिक स्कूल में चल चुकी है गोली

वर्ष 2016 में दयानंद पब्लिक स्कूल में गोली चल चुकी है. ग्यारहवीं क्लास का एक छात्र अपने स्कूल बैग में छिपा कर पिस्तौल लेकर आ गया था. अपने एक साथी से मामूली विवाद होने पर उसने क्लास रूम में ही गोली चला दी थी. इसके साथ ही शहर के एक अन्य स्कूल में छात्र के बैग से चापड़ निकला था. छात्र से पूछताछ करने पर बताया गया कि छुट्टी के समय उसका किसी के साथ झगड़ा हुआ था, वह उससे बदला लेने के लिए स्कूल बैग में हथियार लेकर आया था.

विश्व के कई देशों में हो चुकी हैं ऐसी घटनाएं

ऐसी कई घटनाएं विश्व के कई बड़े देशों में भी घटित हो चुकी हैं. जनवरी 2023 में अमेरिका के वर्जीनिया में भी हैरान कर देने वाला मामला सामने आया था. वहां छह साल के एक बच्चे ने अपने क्लासरूम में फायरिंग कर दी थी, जिसमें स्कूल की शिक्षिका गंभीर रूप से घायल हो गयी थी.

हर बच्चे का बैग चेक करना संभव नहीं, हर घटना के लिए शिक्षक ही दोषी नहीं : फादर विनोद

सुपौल की घटना पर लोयोला स्कूल के प्रिंसिपल फादर विनोद फर्नांडिस ने गहरा दुख प्रकट किया. उन्होंने कहा कि माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों के मनोरंजन और शिक्षा के साधनों पर कड़ी निगरानी रखने की जरूरत है, ताकि उनमें सही और सकारात्मक मूल्यों का विकास हो सके. यह घटना न केवल एक चेतावनी है, बल्कि एक अवसर भी है कि हम बच्चों के साथ संवेदनशीलता और अधिक समझदारी के साथ ही बेहतर संवाद स्थापित करें. उन्हें यह सिखाएं कि असली नायक वही होता है, जो कानून का पालन करता है और समाज की रक्षा करता है. इस घटना में यह दुखद पहलू है कि स्कूल के डायरेक्टर को गिरफ्तार कर लिया गया. कोई स्कूल का प्रिंसिपल या डायरेक्टर नहीं चाहेगा कि उसके स्कूल में गोली चले. साथ ही अगर कोई स्कूल बैग में पिस्टल लेकर आएगा, तो यह संभव भी नहीं है कि हर दिन स्कूल बैग की जांच हो. शिक्षा के मंदिर में मेडल डिटेक्टर नहीं चाहिए. इसके लिए जरूरत इस बात की है कि अभिभावक और शिक्षक दोनों के कलेक्टिव अफर्ट से बच्चों में संस्कार आधारित शिक्षा दी जाए.

क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक

बच्चों को न कहने की आदत डाले पैरेंट्स, हर जिद पूरी नहीं करें : अनु तिवारी

बाग ए जमशेद स्कूल की प्रिंसिपल सह बच्चों के मनोविज्ञान पर रिसर्च करने वाली अनु तिवारी कहती हैं कि बच्चों में बढ़ती हिंसा की प्रवृत्ति एक सामाजिक समस्या है. इसके कारण हमारे समाज में ही व्याप्त हैं. बच्चों का स्वभाव अगर गुस्सैल है, तो उसे बढ़ावा न दें. उनकी नाजायज मांगों को पूरा न करें. बचपन से ही बच्चे जो भी जिद करते हैं, अभिभावक उसे तुरंत लाकर दे देते हैं. इससे उनमें न सुनने की आदत डेवलप नहीं हो पाती है. जब उन्हें कोई किसी बात को लेकर न कहता है, तो वे अपना आपा खो देते हैं. अत्यधिक मोबाइल देखने और हिंसक गेम खेलने पर भी अभिभावक रोक लगाएं. बच्चों को अपना समय दें. एक विश्वास कायम करें, ताकि वे अपनी हर अच्छी बुरी बात आपसे साझा कर सके. उनकी दोस्ती और दैनिक गतिविधियों पर नजर रखें.

हिंसक प्रवृत्ति रोकने में अभिभावक का साथ देना है जरूरी : प्रतिमा सिन्हा

सोनारी स्थित आरएमएस बालीचेला स्कूल की प्रिंसिपल प्रतिमा सिन्हा कहती हैं कि सुपौल की घटना ने शहर के हजारों पेरेंट्स के साथ ही शिक्षकों को चिंता में डाल दिया है. पैरेंट्स इस सोच से परेशान हैं कि क्या अब बच्चा स्कूल में भी सुरक्षित नहीं है ? शिक्षा के मंदिरों में हथियार पहुंचने लगे, वह भी पढ़ाई करने वाले बच्चों के जरिये. गंभीर चिंता की बात है. बच्चों में तेजी से बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति को रोका जाए, इसके लिए शिक्षकों के साथ ही अभिभावकों को भी प्रयास करने की आवश्यकता है. हिंसा वाली फिल्म खासकर ओटीटी पर आने वाली मूवी, वीडियो गेम से बच्चे को दूर रखें.

पारिवारिक तनाव व मीडिया है इसका जिम्मेदार : अमित श्रीवास्तव

अरका जैन यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर अमित श्रीवास्तव ने कहा कि सुपौल की घटना जितनी चिंताजनक है उतनी ही विचारणीय भी. इतनी कम उम्र में एक बच्चे का ऐसा कृत्य समाज के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करता है. इसके पीछे हिंसा से भरे मीडिया, पारिवारिक तनाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं जैसे कई कारण हो सकते हैं. बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना और उन्हें हिंसक वस्तुओं से दूर रखना नितांत आवश्यक है. इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए हमें समाज में सकारात्मक मूल्यों को बढ़ावा देना होगा और बच्चों को प्यार और सहानुभूति. इस घटना से हमें यह सबक लेना चाहिए कि बच्चों के मनोविज्ञान को समझना और उनकी देखभाल करना सबकी जिम्मेदारी है.

मोबाइल और इंटरनेट का है साइड इफेक्ट : प्रीति सिन्हा

गुलमोहर हाई स्कूल की प्रिंसिपल प्रीति सिन्हा ने कहा कि यह घटना इस बात को साबित करती है कि आज हमारे नौनिहालों पर इंटरनेट और सोशल मीडिया का कितना बुरा प्रभाव पड़ रहा है. अक्सर अभिभावक बच्चे को खिलौना के रूप में बंदूक खरीद कर दे देते हैं. उसे खेल-खेल में जब वे चलाते हैं, तो किसी को मारने के लिए. उन्हें यह भी बताना जरूरी है कि मारने वाला नहीं, बल्कि बचाने वाला ही समाज का नायक होता है.

हिंसक वीडियो गेम से बच्चों को दूर रखें : साजिया कादिर

यह घटना बहुत दुखद है, पर विचारणीय है. समाज के बुद्धिजीवी वर्ग से लेकर हर वर्ग को इस पर सोचने की आवश्यकता है. मुझे ऐसा लगता है कि बच्चों पर सोशल मीडिया का प्रभाव और गेम्स में जो हिंसा और क्रूरता दिखायी जा रही है, वही इन पर हावी हो गयी है और उसका नतीजा यह है कि बच्चे उसे अपने जीवन में अप्लाई कर रहे हैं. इसे रोकने का सबसे सही उपाय यही है कि माता-पिता बच्चों के साथ समय बिताए. उन्हें सोशल मीडिया से दूर करें. बच्चे हिंसक वीडियो गेम से दूर रहें.

पारिवारिक परिवेश भी डालता है प्रभाव : उमा तिवारी

हिलटॉप स्कूल की प्रिंसिपल उमा तिवारी ने कहा कि सुपौल की घटना ने समाज में बच्चों की मानसिकता और उनकी परवरिश पर गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं. बच्चों में बढ़ती हिंसा की प्रवृत्ति, सोशल मीडिया का प्रभाव और पारिवारिक परिवेश इसके संभावित कारण हो सकते हैं. समाज, परिवार और स्कूलों को मिलकर बच्चों की नैतिक शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना होगा. सुदृढ़ संस्कार और सकारात्मक वातावरण से ही इस पर रोक संभव है.

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