सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग पर एक जुलाई से सरकार ने देशभर में रोक लगा रखी है. रोक पर अमल करने के लिए निकायों की टीम मशक्कत कर रही है. इसके बावजूद हर माह शहर के कचरा में 70% तक अमानक पॉलिथीन पहुंच रहा है. बड़ा सवाल यह है कि अगर प्रशासनिक टीम कार्रवाई कर रही है, तो प्रतिबंधित पॉलिथीन कैसे बाजार और घरों से होता हुआ कचरा में पहुंच रहा है?
दरअसल, सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल दुकानों, फल ठेला, होटल, सब्जी, चिकन-मटन की दुकानों में हो रहा है. प्रशासनिक टीम यहां से कुछ माल जब्त कर जांच की खानापूर्ति कर लेती है. वहीं, इस धंधे से जुड़े बड़े कारोबारी बच निकलते हैं. ऐसा नहीं है कि प्लास्टिक के उत्पादन से लेकर वितरण तंत्र की जानकारी प्रशासन को नहीं है.
कोलकाता, आसनसोल, पुरुलिया से बस, ट्रक और अन्य ट्रांसपोर्ट के माध्यम से गोलमुरी, साकची, बिष्टुपुर, जुगसलाई के गोदामों तक प्लास्टीक पहुंच रहा है. यहां से शहर में इसकी आपूर्ति हो रही है. अब तक निकायों की टीम ने इस पर रोक लगाने की पहल नहीं की है.
दुकानदारों के लिए : पहली बार दो हजार, दूसरी बार पांच हजार, तीसरी बार 10 हजार के साथ ट्रेड लाइसेंस रद्द
स्ट्रीट वेंडर के लिए : पहली बार 200 रुपये, दूसरी बार 500 रुपये और तीसरी बार एक हजार के साथ लाइसेंस रद्द
शहर में पांच टन से ज्यादा प्लास्टिक की खपत होती है. इसमें 75 फीसदी का इस्तेमाल सिर्फ एक बार होता है. सबसे उपयोग ज्यादा सिंगल यूज प्लास्टिक के अलावा बोतल, डिस्पोजल प्लेट और नमकीन, मिक्चर आदि के पैकेट का कचरा निकलता है.
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एक किलो तक –100 रुपये प्रति 100 ग्राम
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एक किलो से पांच किलो तक – एक हजार प्लस 200 रुपये प्रति किलोग्राम
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पांच किलो से ज्यादा – 2 हजार प्लस 100 रुपये प्रति किलोग्राम
प्लास्टिक स्टिक युक्त ईयर बड्स, गुब्बारों के प्लास्टिक की डंडियां, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी स्टिक, आइसक्रीम की डंडियां, पॉलीस्टाइरीन (थर्मोकोल) की सजावटी सामग्री, प्लेट, कप, गिलास, कांटा, चम्मच, चाकू, स्ट्रा, ट्रे आदि.