जमशेदपुर, राजमणि सिंह : कभी घरों की छत और आंगन में फुदकने वाली गौरैया अब यदा-कदा ही नजर आती है. आंकड़ों की मानें, तो गौरैया की संख्या में करीब 60 से 80% तक कमी आयी है. इसके संरक्षण के लिए प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है. हम भी छोटे प्रयास से घर-आंगन में गौरैया की चहचहाहट वापस ला सकते हैं.
5000 घोंसला तैयार करने में जुटी प्रियंका झा
कोल्हान में गौरैया के संरक्षण के लिए कई पक्षी प्रेमी काम कर रहे हैं. ऐसा ही एक नाम है. पटमदा प्रोजेक्ट गर्ल्स हाई स्कूल की प्राचार्य प्रियंका झा का. प्रियंका गोरैया संरक्षण के लिए पिछले दो वर्षों से काम कर रही हैं. बांस की कमची, सूतली और नारियल के रेशों से 5000 घोंसला तैयार कराने में जुटी हैं. घोंसला तैयार होने के बाद सोसाइटी में लोगों से संपर्क कर घोंसला लगाने का अभियान चलाया जायेगा.
बच्चों को देती है प्रशिक्षण
प्रियंका स्कूल के बच्चों को पेड़ की पत्तियों, बोरा और नारियल के छिलके से घोंसला बनाने का प्रशिक्षण देती हैं. बच्चों द्वारा तैयार किये गये घोंसलों को आस-पास के घरों व पेड़ों पर लटका देती हैं. इसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली है. कई घोंसलों में चिड़िया आकर रहने भी लगी हैं और अंडे भी दिये हैं. प्रियंका झा ने बताया कि नेस्ट मैन ऑफ इंडिया राजेश खत्री से विद्यालय के बच्चों को कृत्रिम घोंसला बनाने का प्रशिक्षण दिलवाने के लिए ऑनलाइन वर्कशॉप कराया जा रहा है. डीएफओ ममता प्रियदर्शी ने स्कूल परिसर में बर्ड माॅनिटरिंग और नर्सरी तैयार कराने की स्वीकृति दी है, जिसे जल्द ही पूरा कराने की प्रक्रिया चल रही है.
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प्रदूषण व खेतों में अत्यधिक कीटनाशक का प्रयोग गौरैयों के लिए घातक
चांडिल के सुखसारी निवासी राहुल प्रसाद जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेडएसआई) में सत्र 2017-20 तक फाउनल डायवर्सिटी ऑफ दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी एंड सारंडा फॉरेस्ट डिवीजन झारखंड, इंडिया प्रोजेक्ट के तहत बतौर रिसर्च स्कॉलर काम कर चुके हैं. राहुल बताते हैं कि मुंबई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के प्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक विभु प्रकाश के अनुसार, इंडिया में हाउस स्पैरो की संख्या में करीब 80 प्रतिशत तक की कमी देखी जा रही है. अगर इसी तरह यह सिलसिला चलता रहा, तो हाउस स्पैरो की प्रजाति इंटरनेशनल यूनियन फॉर कनवर्सन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में आ जायेगी.
गौरैया पर आए संकट की प्रमुख वजह यह है
गौरैया की आबादी में गिरावट के कारणों में तेजी से शहरीकरण, घटते पारिस्थितिक संसाधनों, प्रदूषण के उच्च स्तर और माइक्रोवेव टावरों से उत्सर्जन के कारण निवास स्थान का नुकसान है. पारंपरिक प्रजनन स्थलों में कमी प्रजनन के मौसम और उपयुक्त घोंसले के स्थानों के दौरान उपयुक्त भोजन की कमी भी कारण है.
ऐसे करें गौरैयों के पुनर्वास में मदद
अपने फ्लैट एवं कंक्रीट के घरों में कृत्रिम घोंसला तैयार कर लगायें.
घोंसलों के आसपास दाना और पानी की व्यवस्था करें.
सूरजमुखी के बीज, सफेद बाजरा और मक्का बिखेर कर रख दें
खेतों में कीटनाशक का उपयोग कम करें.
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