सोना उगलने वाली नदी सुवर्णरेखा और खरकई के ईर्द-गिर्द स्टील और क्लीन सिटी बसती है. लेकिन जिंदगी और जीवन का आधार माने जाने वाली दोनों नदियां अब नाले में तब्दील होने लगी हैं. झारखंड हाइकोर्ट के आदेश, जमशेदपुर अक्षेस, मानगो अक्षेस के दावों के बीच सच्चाई यह है कि अब तक नदी में बिना ट्रीटमेंट के ही नाले में गंदे पानी बहाये जा रहे हैं. हालात यह है कि पानी निर्मल होने की बजाय काला हो चुका है.
इंडस्ट्रियल वेस्ट से ज्यादा यहां नागरीय कचरे नदी में ही बहाये जा रहे हैं. नदी में 20 से अधिक नाले का मुंह सीधे नदी में खोल दिया गया है. टाटा कमांड एरिया हो या जमशेदपुर अक्षेस या मानगो अक्षेस एरिया, हर जगह का यही हाल है. हर जगह से नाले सीधे नदियों से जोड़ गिये दिये गये हैं. हालात यह है कि अब पानी की सफाई करना भी मुश्किल हो गया है. इसको साफ कर पानी पीने लायक बनाने में भी परेशानी हो रही है.
नदियों में नाले का पानी का ट्रीटमेंट कर पानी छोड़ने को लेकर हाइकोर्ट में एक याचिका दायर की गयी थी, लेकिन, उस पर दिया गया आदेश भी धरा का धरा रह गया. जमशेदपुर अक्षेस, मानगो नगर निगम, जुगसलाई नगर परिषद और कारपोरेट संस्थाएं चुप रहने में ही अपनी भलाई समझ रही हैं. नदी से जमशेदपुर में 340 मिलियन लीटर प्रतिदिन पानी निकाला जा रहा है, लेकिन इसकी सफाई कैसे होनी है, उस पर कोई ध्यान किसी भी एजेंसी का नहीं रह गया है.
जुगसलाई नगर परिषद करीब 16 मिलियन लीटर हर दिन पानी का उठाव करती है तो 300 से 400 मिलियन लीटर टाटा स्टील और टाटा स्टील यूआइएसएल करती है. मानगो में 10 मिलियन लीटर पानी का उठाव रोजाना होता है. बिरसानगर के मोहरदा जलापूर्ति योजना के तहत 14 मिलियन लीटर उठाव हो रहा है. इतना नदी का दोहन हो रहा है, इसका ट्रीटमेंट कर पानी पीया जा रहा है, लेकिन कुछ सालों बाद नदी का क्या हाल हो जायेगा, इसकी चिंता किसी को नहीं है और न ही कोई कदम उठाये जा रहे हैं. जितनी भी कार्रवाई हो रही है सभी कागजी साबित हो रही है.