Tata Steel बनी कार्बन कैप्चर प्लांट लगाने वाली देश की पहली स्टील कंपनी, कोयले की खपत कम करने पर जोर

टाटा स्टील कार्बन उत्सर्जन नेट जीरो करने के लिए कोयले की खत्म कम कर रही है. कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए कार्बन कैप्चर प्लांट लगाने वाली टाटा स्टील देश की पहली बन गयी है. इसके लिए कंपनी ने 554 करोड़ रुपये खर्च किया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 17, 2022 5:24 PM

Jharkhand News: औद्योगिक क्रांति की वजह से विकास की गति तो तेज हुई, लेकिन विकसित और विकासशील देशों की चिंताएं भी बढ़ रही है. इसका मुख्य कारण है कार्बन उत्सर्जन. यह अमेरिका, चीन और जापान जैसे विकसित देशों के लिए बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है. भारत भी कार्बन उत्सर्जन करने वाला तीसरा बड़ा देश बनता जा रहा है. अमेरिका (लक्ष्य 2050) और चीन (लक्ष्य 2060) ने कार्बन उत्सर्जन को जीरो करने के लिए पूर्व में ही लक्ष्य निर्धारित कर लिया था, लेकिन केंद्र सरकार ने वर्ष 2021 में इसके प्रति गंभीरता दिखायी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लक्ष्य 2070 का लक्ष्य निर्धारित कर दिया है.

कार्बन उत्सर्जन से पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति

कार्बन उत्सर्जन से पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति और जीव-जंतु, मनुष्य के साथ-साथ पृष्वी पर पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव को खत्म करने के लिए लाइफ स्टाइल फॉर इन्वारमेंट तय किया गया है. यानी हमें अपने जीने, रहन-सहन और कार्य करने की पद्वति में भी बदलाव लाना होगा. 2020 में प्रकाशित आयरन एंड स्टील टेक्नोलॉजी रोड मैप रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने बताया कि भारत के औद्योगिक ऊर्जा खपत का पांचवां हिस्सा लौह और इस्पात क्षेत्र से होता है. वहीं, औद्योगिक क्षेत्र से होने वाले कुल कार्बन उत्सर्जन का लगभग एक तिहाई स्टील क्षेत्र से होता है.

टाटा स्टील ने खर्च किए 554 करोड़ रुपये

वहीं, अगर टाटा स्टील की बात करें, तो यह देश की सबसे बड़ी और सबसे अधिक स्टील उत्पादन करने वाली कंपनी है. कंपनी के लिए स्टील की लगातार बढ़ती मांग और उस अनुपात में कार्बन उत्सर्जन को कम करना बड़ी चुनौती है. टाटा स्टील कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में पहल करने वाली भारत कंपनी है. कंपनी न केवल कोयले की खपत को कम करने के उपाय कर रही है, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से भी कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में बेंचमार्क स्थापित करने की दिशा में काम शुरू हो चुकी है. कंपनी द्वारा जारी वित्तीय वर्ष 2021-22 की रिपोर्ट के अनुसार, कार्बन उत्सर्जन को करने के लिए 554 करोड़ रुपये खर्च किया है. टाटा स्टील की अनुषंगी इकाई भी इसके लिए पहल कर रही है.

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जमशेदपुर प्लांट में हो रहा परीक्षण

टाटा स्टील ने जमशेदपुर प्लांट में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए ई-ब्लास्ट फर्नेंस में कोल बेड मिथेन (CBM) गैस के निरंतर इंजेक्शन के लिए परीक्षण शुरू किया है. टाटा स्टील दुनिया की पहली ऐसी कंपनी बन गयी है, जो पर्यावरण स्नेही पहल के तहत किसी स्टील कंपनी में सीबीएम को इंजेक्ट के रूप में इस्तेमाल किया है. टाटा स्टील की इस पहल से कोक की खपत में भी 10 किलोग्राम प्रति टन की कमी आएगी. साथ ही कच्चे स्टील के 33 किलोग्राम सीओ दो प्रति अन कम करने में मदद मिलेगी.

क्या है कार्बन कैपचर प्लांट

टाटा स्टील के जमशेदपुर स्थित वर्कशॉप में कार्बन कैप्चर प्लांट लगाया गया है. देश की किसी भी स्टील कंपनी में कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में स्थापित किया गया पहला प्लांट है. यह कंपनी के ब्लास्ट फर्नेंस से निकलने वाले कार्बन डाईऑक्साइड से कार्बन उत्सर्जन को कम करेगा. कार्बन कैप्चर और यूटिलाइजेशन सीसीयू तकनीक पर आधारित इस प्लांट में कार्बन को शोषित कर उसे दोबारा प्रयोग में लाया जा पाना संभव हो रहा है. कार्बन डाइऑक्साइड को फिर से गैस नेटवर्क में भेजा जायेगा. इस प्रोजेक्ट को कार्बन क्लीन तकनीक की मदद से चलाया जा रहा है जो दुनिया में कार्बन उत्सर्जन को कम करने की तकनीक में काफी आगे है. कंपनी योजना कार्बन कैप्चर प्रोजेक्ट की संख्या को बढ़ाने के साथ हाइड्रोजन इकॉनोमी को तलाशने पर ध्यान दे रही है.

सोलर एनर्जी, ई व्हीकल भी एक बड़ी पहल

टाटा स्टील अप्रत्यक्ष रूप से भी कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में काम कर रही है. इसके लिए सबसे बड़ी पहल सोलर एनर्जी की दिशा में काम किया जा रहा है. कंपनी के नोआमुंडी माइंस के बंद पड़े एक बड़े साइट पर सोलर प्लांट लगाया गया है जिससे 3.2 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. वहीं टाटा स्टील प्लांट के अंदर फ्लोटिंग सोलर पैनल लगाने की दिशा में काम चल रहा है. यानी पानी पर तैरता सोलर प्लांट होगा. कंपनी के अंदर स्थित तालाबों (जलाशयों) पर फ्लोटिंग सोलर पैनल रहेगा. इससे पारंपरिक बिजली की खपत कम होगी. इसके साथ ही कंपनी ने माल ढुलाई में ई व्हीकल ट्रेलर का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. ट्रेलर जैसी हैवी व्हीकल जो बैटरी चालित है. इससे गाड़ियों से निकलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड को कम किया जा सकेगा. आने वाले दिनों में सफलता के अनुसार ऐसी गाड़ियों का इस्तेमाल बढ़ेया जायेगा.

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ये भी है बड़ी पहल

बड़े पैमाने पर पौधरोपण, पार्कों का निर्माण, ई-व्हीकल का इस्तेमाल, विधि पूर्वक कचरा निस्तारण जैसी पहल भी जा रही है. सस्टेनिबिलिटी के तहत कंपनी टाटा स्टील यूटिलिटी एंड इंफ्रास्ट्रक्चर सर्विसेस लिमिटेड (पूर्व में जुस्को) के माध्यम से पौधरोपण व शहर में पार्कों का निर्माण कर रही है. शाल के वृक्ष ज्यादा लगाये जा रहे हैं जिसमें कार्बन शोषित करने की क्षमता सबसे अधिक होती है. टाटा स्टील की जुगसलाई मकदम पहाड़ पर बना ईको पार्क और मरीन ड्राइव में स्थित कचरा के पहाड़ को हरा भरा पार्क के रूप में तब्दील करना एक बड़ी पहल है. जुस्को ने पिछले 10 वर्षों में दर्जनों नये पार्क का निर्माण किया है. घर घर कचरा उठाव के लिए ई व्हीकल, ई रिक्शा का इस्तेमाल, अधिकारियों को ढोने के लिए ई कार का उपयोग किया जा रहा है. वाटर बॉडी को जीवित करना और नये वाटर बॉडी को तैयार करना भी इसी का एक हिस्सा है.

स्टील उद्योग के लिए सबसे बड़ी चुनौती

अन्य स्टील उत्पादक देशों के मुकाबले भारत इसलिए अलग है क्योंकि यहां कोयले पर निर्भरता काफी अधिक है. दूसरे, यहां स्क्रैप का इस्तेमाल भी बहुत कम होता है. इसलिए कच्चे माल के बतौर लौह अयस्क पर निर्भरता काफी अधिक है. अयस्क के लिए खनन भी बहुतायत है. यह भी कार्बन उत्सर्जन का एक बड़ा कारण है. कोयला की खपत करने के लिए सीबीएम पहल :टाटा स्टील ने जमशेदपुर प्लांट में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए ई ब्लास्ट फर्नेस में कोल बेड मिथेन (सीबीएम) गैस के निरंतर इंजेक्शन के लिए परीक्षण शुरू किया है. टाटा स्टील दुनिया की पहली ऐसी कंपनी बन गयी है जो पर्यावरण स्नेही पहल के तहत किसी स्टील कंपनी में सीबीएम को इंजेक्टे रूप में इस्तेमाल किया है. टाटा स्टील की इस नयी पहल से कोक की खपत में भी 10 किलोग्राम प्रति टन की कमी आयेगी. साथ ही कच्चे स्टील के 33 किलोग्राम सीओ 2 प्रति टन कम करने में मदद मिलेगी.

क्याें जरूरी है नेट जीरो

वर्ल्ड मेटोर्लाजिकल ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएमओ) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को पिछले साल प्राकृतिक आपदाओं की वजह से 87 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा था. इसी तरह चीन को 238 अरब डॉलर और जापान को 83 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था. एक रिपोर्ट के अनुसार अगर 2050 तक पृथ्वी का तापमान 2.0 से 2.6 डिग्री तक बढ़ता है तो पूरी दुनिया की इकोनॉमी को 11 से 13.9 प्रतिशत का नुकसान होगा. इसी तरह यूएनईपी की रिपोर्ट कहती है कि अभी अलग अलग देशों ने जो लक्ष्य तय किये हैं, उससे दुनिया का तापमान इस सदी के अंत तक 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ेगा. ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का लक्ष्य हासिल करना है, तो दुनिया को अगले आठ वर्षों में सालाना ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को आधा करने की आवश्यकता है.

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भारत ने चीन से 10 साल बाद का रखा लक्ष्य

भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन करने वाला देश है. उसकी दुनिया में 7 प्रतिशत हिस्सेदारी है जबकि चीन की 28 फीसदी और अमेरिका की 15 फीसदी हिस्सेदारी है. ऐसे में अमेरिका और चीन की तरह भारत को 2050 और 2060 तक इस लक्ष्य को हासिल करना चाहिए. लेकिन आबादी के आधार प्रति व्यक्ति उत्सर्जन देखा जाये तो तस्वीर कुछ और नजर आती है. वर्ल्ड मीटर की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन 15.12 टन, चीन में 7.38 टन, रूस में 11.44 टन, कनाडा 18.58 टन, कतर में 37.29, कुवैत में 25.65, ऑस्ट्रेलिया में 17.10 टन है जबकि भारत में यह केवल 1.91 टन है.

केंद्र सरकार ने 2030 तक का तय किया लक्ष्य

– जीवाश्म रहित ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट करेगा
– 50 प्रतिशत ऊर्जा मांग, रीन्यूएबल एनर्जी से पूरी करेगा
– प्रोजेक्टेड कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करेगा
– अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेंसिटी को 45 फीसदी से भी कम करेगा.

रिपोर्ट : विकास श्रीवास्तव, जमशेदपुर.

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