नक्सल प्रभावित डुमरिया प्रखंड में नींबू और इमली की होती है बंपर पैदावार, किसान बन रहे आत्मनिर्भर
नक्सल प्रभावित डुमरिया प्रखंड में नींबू और इमली की होती है बंपर पैदावार
ओडिशा और बंगाल के कारोबारी ले जाते हैं किसानों के उत्पाद
किसानों के लिए एफपीओ के माध्यम से लगेगा प्रोसेसिंग प्लांट और कोल्ड स्टोरेज
ब्रजेश सिंह
जमशेदपुर.
पूर्वी सिंहभूम जिले में वैसे तो किसानी काफी बेहतर नहीं है, लेकिन यहां कई सब्जियों और अन्य उत्पाद से किसान आत्मनिर्भर बन रहे हैं. जिले के डुमरिया प्रखंड को कभी नक्सल प्रभावित माना जाता था, लेकिन इस नक्सल प्रभावित इलाके का एक गांव बरुनिया है, जहां के किसान नींबू की खेती कर खुद आत्मनिर्भर हो रहे हैं. लेकिन नींबू के लिए कोल्ड स्टोरेज या प्रोसेसिंग की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण किसानों को नुकसान हो रहा है. ऐसे में अब किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) के माध्यम से यहां प्रोसेसिंग प्लांट लगाने और कोल्ड स्टोरेज की स्थापना करने की तैयारी की गयी है, ताकि यहां के किसानों का मुनाफा बढ़ाया जा सके. इसी तरह इमली की पैदावार से भी यहां के किसान और ग्रामीण आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं. अब इमली के कारोबार को भी यहां दुरुस्त किया जा रहा है और एक सप्लाई चेन के अलावा इसका भी प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित किया जा रहा है. एफपीओ की ओर से कराये गये सर्वे के मुताबिक, सिर्फ बरुनिया गांव में करीब 100 किसान नींबू की पैदावार में लगे हुए हैं, जिससे एक सीजन में औसतन 250 से 300 टन नींबू की पैदावार हो जाती है. एक बार गर्मी के मौसम में जबकि दूसरी बार ठंड के मौसम में नींबू की फसल होती है. बरुनिया गांव में घर-घर लोग नींबू के पेड़ लगाये हुये हैं. बंगाल और ओडिशा के कारोबारी औने-पौने दाम पर ले जाते हैं नींबूमिली जानकारी के मुताबिक, ओडिशा और बंगाल के रास्ते कारोबारी आकर किसानों से औने-पौने दाम पर नींबू की खरीदारी कर ले जाते हैं. इससे किसानों को जितना फायदा होना चाहिए उतना नहीं हो पाता है. साथ ही उचित देखरेख नहीं होने के कारण एक सीजन में करीब 50 टन नींबू बर्बाद हो जाते हैं, क्योंकि यहां क्लोड स्टोरेज की व्यवस्था नहीं है. प्रोसेसिंग प्लांट के अभाव में नींबू का वैल्यू एडिशन नहीं हो पाता है. ऐसे में अब नींबू के लिए एफपीओ की ओर से एक प्रस्ताव उद्योग विभाग को भेजा गया है, जिसके माध्यम से वहां प्रोसेसिंग प्लांट लगाया जायेगा और कोल्ड स्टोरेज की भी स्थापना करने का प्रस्ताव दिया गया है.डुमरिया में 100-150 टन इमली की होती है पैदावारडुमरिया में इमली की करीब 100 से 150 टन पैदावार होती है. डुमरिया से लेकर घाटशिला और बहरागोड़ा के जंगलों में इसकी खूब पैदावार होती है. किसान और ग्रामीण इसको चुनकर या तोड़कर लाते हैं और इसे बेचकर अच्छी आमदनी करते हैं. हालांकि इसके रख-रखाव की कोई उचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से ग्रामीण औने-पौने दाम पर इसे बेच देते हैं. ऐसे में ग्रामीणों की सहूलियत के लिए प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की तैयारी चल रही है, ताकि इमली का अपग्रेडेशन किया जा सके. मुख्य तौर पर इन सारे प्रोसेसिंग प्लांट के जरिये सोर्टिंग, ग्रेडिंग और पैकिंग हो सकेगी, ताकि ज्यादा समय तक ये उत्पाद रह सकें और इसको बेहतर तरीके से अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचायी जा सके.
क्या कहते हैं एफपीओ के जिला स्तर के पदाधिकारीएफपीओ के जिला स्तर के पदाधिकारी का कहना है कि इस इलाके में नींबू और इमली की पैदावार इतनी होती है कि इसको दूसरे राज्यों के लोग ले जाते हैं और अपने मन मुताबिक कीमत पर शहरों में बेचते हैं. 300 नींबू 150 रुपये के हिसाब से ले जाते हैं, जबकि बाजार में तीन नींबू की कीमत लगभग 20 रुपये है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसानों को कितना मुनाफा हो रहा है और कारोबारी कितना कमा रहे हैं. अगर प्रोसेसिंग प्लांट और कोल्ड स्टोरेज बन जाये तो निश्चित तौर पर किसानों की आमदनी बढ़ जायेगी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है