टाइगर इज बैक : दलमा और आसपास के जंगलों में फिर से हो सकता है बाघों का साम्राज्य

Tiger is Back in Dalma: पूर्वी सिंहभूम के दलमा वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी में बाघों की वापसी हो गयी है. दलमा और आसपास के जंगलों में फिर से बाघों का साम्राज्य स्थापित हो सकता है.

By Mithilesh Jha | February 3, 2025 5:00 AM

Tiger is Back in Dalma|जमशेदपुर, ब्रजेश सिंह : दलमा वन्यजीव अभयारण्य और आसपास के जंगल शुरू से ही बाघों के लिए पर्यावास (जीवों के रहने के लिए प्राकृतिक वातावरण वाला स्थल) रहा है. 70-80 के दशक में दलमा में बाघों की अच्छी खासी संख्या थी. लेकिन धीरे-धीरे विलुप्त हो गये. लेकिन बीते दो-तीन महीने से बाघों का बार-बार दलमा और आसपास के जंगलों में आना यह संकेत दे रहा है कि यहां बाघों के लिए अनुकूल परिस्थितियां बन रही हैं. दरअसल, दलमा और कोल्हान के जंगल बाघों को भा रहे हैं और आनेवाले समय में फिर से दलमा में बाघों का साम्राज्य हो सकता है. वन विभाग इसे सुखद घटना मान रहा है.

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ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में बढ़ी बाघों की संख्या

जानकारों के अनुसार, बाघ दलमा और आसपास के जंगलों में अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहते हैं. यही वजह है कि पश्चिम बंगाल और ओडिशा से होते हुए कोल्हान के जंगलों में बार-बार आ-जा रहे हैं. एक गणना के मुताबिक, ओडिशा और झारखंड के अलावा छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. पश्चिम बंगाल के रास्ते कोल्हान में इंट्री के साथ इनका दायरा बढ़ा है. अब ये जमशेदपुर के आसपास तक पहुंच गये हैं. वन विभाग के अनुमान के मुताबिक, सिमलिपाल (ओडिशा) के जंगल और पलामू से भी बाघों का मूवमेंट यहां हो सकता है.

दलमा का वातावरण बाघों के प्रजनन के अनुकूल

विशेषज्ञों के अनुसार, दलमा का वातावरण बाघों के प्रजनन के अनुकूल है. हालांकि, अब तक गणना में यहां एक भी बाघ नहीं मिला है. वन विभाग के अनुसार, दलमा में कभी बाघ और शेर थे. यहां 10 जगहों पर इनका गुफा है. यही वजह है कि जब भी दलमा में जानवरों की गणना होती है, तो उसमें बाघ का भी एक कॉलम होता है.

दलमा से लेकर पूरा कोल्हान बाघों के लिए माकूल : पीसीसीएफ

सत्यजीत सिंह.

झारखंड के वन विभाग के सर्वोच्च पदाधिकारी पीसीसीएफ सत्यजीत सिंह ने बताया कि दलमा समेत कोल्हान का पूरा इलाका हाथियों के माकूल माना जाता है. झारखंड की वादियां भी बाघों के अनुकूल है. पलामू टाइगर रिजर्व में नये बाघ देखने की सूचना है. छह बाघ यहां हैं. पहले इसकी संख्या पांच ही थी. कोल्हान में लगातार टाइगर की इंट्री पर उन्होंने कहा कि अक्सर वहां बाघ का मूवमेंट होता रहता है. सिमलिपाल से लेकर बंगाल से भी बाघ का मूवमेंट हो सकता है.

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1970-80 के दशक तक देखे गये थे बाघ

दलमा को वर्ष 1975 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था. उस वक्त की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां बाघ पाये जाते थे और 1980 के दशक में इक्के-दुक्के बाघ थे. चूंकि, जंगल और आसपास आबादी कम थी, तो उनका मूवमेंट होता था, लेकिन बाद में विलुप्त हो गये और हाथियों की संख्या बढ़ गयी.

दलमा और आसपास के जंगलों में बाघ कब-कब आये

  • 2010 : रॉयल बंगाल टाइगर को डिमना के पास दलमा के तराई वाले एरिया में पानी पीते देखा गया था. करीब तीन दिन इलाके में रहने के बाद लौट गये थे.
  • 2016 : ओडिशा के जंगलों से नर और मादा बाघ को दलमा में देखा गया था. इन बाघों ने यहां पालतू जानवरों का शिकार भी किया था.
  • 2019 : पश्चिम बंगाल से एक बाघिन आयी थी. करीब एक सप्ताह तक विचरण करने के बाद लौट गयी.
  • 2024 : दिसंबर में ओडिशा के सिमलिपाल अभयारण्य से भटक कर एक बाघिन यहां पहुंची थी. चाकुलिया से लेकर घाटशिला तक इसका दहशत रहा. फिर यह पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर गयी, जहां से वन विभाग के अधिकारी उसे पकड़ कर ओडिशा ले गये. हालांकि, बाघिन ने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया.
  • 2025 : जनवरी में एक बाघ को पहले सरायकेला-खरसावां जिले के कांड्रा और चौका के बीच तुलग्राम के जंगल एरिया में देखा गया. बाघ ने यहां एक बैल और बछिया का शिकार किया. इसके बाद वह पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर गया. लेकिन फिर से बंगाल से वह झारखंड में आया और जमशेदपुर से सटे एमजीएम थाना क्षेत्र और पटमदा के इलाके में विचरण करने के बाद फिर घाटशिला अनुमंडल क्षेत्र में चला गया. बाघ अब भी यहां विचरण कर रहा है.

देश में बाघों की संख्या बढ़ी, सबसे अधिक मध्य प्रदेश में

एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बीते एक दशक में बाघों की संख्या दोगुनी हो गयी है. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के मुताबिक, भारत में 2010 से 2022 के बीच बाघों की आबादी 1706 से बढ़कर 3682 हो गयी है. इसके मुताबिक, दुनिया भर में जितने बाघ हैं, उनमे से 75 फीसदी भारत में ही हैं. भारत में सबसे अधिक बाघ मध्य प्रदेश में हैं. यहां बाघों की संख्या 785 है. भारत में दूसरे सबसे अधिक बाघों वाला राज्य कर्नाटक है. यहां 563 बाघ हैं. तीसरे स्थान पर उत्तराखंड है. यहां 560 बाघ हैं. चौथे नंबर पर महाराष्ट्र है, जहां 444 बाघ हैं. ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में भी बाघों की संख्या बढ़ी है.

दलमा में पहले भी थे बाघ, इसलिए अब आ रहे : जीव कल्याण बोर्ड

जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज के प्राचार्य डॉ अमर कुमार सिंह.

जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज के प्राचार्य और जीव कल्याण बोर्ड के सदस्य डॉ अमर सिंह ने बताया कि बाघ पहले भी दलमा में थे. यह इतिहास में दर्ज है. कई बार बाघों का मूवमेंट हुआ है. यही वजह है कि बाघ आ रहे हैं. बाघों का आना यहां के बेहतर आबोहवा का द्योतक भी है. लेकिन जन-सुरक्षा के साथ बाघों का संरक्षण भी करना होगा. इसके लिए नीति बननी चाहिए.

वन विभाग के लिए बाघ का आना सुखद : डीएफओ

दलमा के डीएफओ सबा आलम अंसारी. फोटो : प्रभात खबर

दलमा के डीएफओ सबा आलम ने कहा कि दलमा और कोल्हान के आसपास के जंगल बाघों के अनुकूल होने के कारण वे यहां आ-जा रहे हैं. यह हमारे लिए सुखद बात है. इससे कोई डरने की बात नहीं है. जंगल बाघ का ही होता है. अगर वे आ रहे हैं, तो यह सुखद है.

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