Jamshedpur news. पुलिस बूथ में ट्रैफिक थाना, कैसे संभव हो यातायात व्यवस्था पर नियंत्रण पाना
सिस्टम को सुधारें कैसे - ट्रैफिक पुलिस के पास नहीं है संसाधन
Jamshedpur news.
राज्यों में कानून व्यवस्था को संभालने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है. इसके अलावा शहरों में यातायात व्यवस्था को भी पुलिस ही संभालती है, इसलिए इसे ट्रैफिक पुलिस भी कहा जाता है. यातायात का नियंत्रित करने का काम आसान नहीं होता है. शहर की यातायात व्यवस्था को संभालने के लिए ट्रैफिक पुलिस को ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि शहर की यातायात व्यवस्था ठीक रहे. यातायात पुलिस का मुख्य काम शहर की ट्रैफिक को कंट्रोल करना और सड़क हादसों को रोकना है. ट्रैफिक कंट्रोल करने के लिए यातायात पुलिस द्वारा सड़कों पर संकेतक भी लगाये जाते हैं. यातायात पुलिस के जवान ट्रैफिक और सड़क हादसों को कंट्रोल करने के साथ ही यातायात नियमों का पालन भी कराते हैं. नियमों का उल्लंघन करने वालों से जुर्माना भी वसूलते हैं, लेकिन यह भी सच है कि ट्रैफिक को ठीक से चलाने वाली ट्रैफिक पुलिस की ही व्यवस्था ठीक नहीं है. कहीं कंटेनर में ट्रैफिक थाना चल रहा है, तो कही पुलिस बूथ में ट्रैफिक थाना संचालित है. शहर में पांच ट्रैफिक थाना है. इसमें से कोई भी थाना भवन हाइटेक नहीं है. ऐसे में ड्यूटी के बाद भी जवानों को सही से बैठने तक की जगह नहीं है. ऐसे में सभी कंटेनर के छांव में बैठते हैं. करोड़ों रुपये का राजस्व देने वाले ट्रैफिक पुलिस कई समस्याओं के साथ ड्यूटी कर रहे हैं.न शौचालय की व्यवस्था और न छुपने का जगह
ट्रैफिक पुलिस अगर चेकिंग कर रही है और अगर बरसात होने लगे, तो उनके पास छुपने तक की व्यवस्था नहीं होती है. सड़क के चौराहों पर होने वाले ट्रैफिक पोस्ट केबिन भी व्यवस्थित नहीं है कि पुलिसकर्मी उसमें खड़े होकर ड्यूटी करे. बिष्टुपुर लाइट सिग्नल से केबिन हटा भी दिया गया है. इसके अलावा गोलमुरी और मानगो थाना में शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है. इतना ही नहीं, इन दोनों थाना में सभी पुलिसकर्मी के बैठने तक की कोई व्यवस्था नहीं है.संसाधन का है अभाव
ट्रैफिक पुलिस के पास पदाधिकारी, हवलदार और जवान की काफी कमी है. इस कारण से हर जगह जवान तैनात नहीं हो पाते. इस कारण से जहां संभव है, वहां जवान और पदाधिकारियों की ड्यूटी लगाया जाता है. इसके अलावा ट्रैफिक पुलिस के पास अपना क्रेन नहीं है. चेकिंग के दौरान गाड़ी जब्त होने के बाद थाना लेकर जाने में घंटों इंतजार करना पड़ता है. स्लाइडर और जब्त गाड़ियों को रखने की व्यवस्था नहीं है. इसके अलावा ब्रेथ एनलाइजर, स्पीडोमीटर, वर्दी कैमरा और रोड साइड कैमराें की संख्या काफी कम है, वह भी हाइटेक और अपडेट नहीं है. पुलिस अधिकारी के चलने के लिए काफी पुरानी गाड़िया है. एक ही गाड़ी होने के कारण मेडिकल जांच कराने के लिए अस्पताल लेकर जाने में काफी परेशानी होती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है