जमशेदपुर. देशभर में लोकतंत्र का महापर्व हर्षोल्लास व जोश के साथ मनाया जा रहा है. हम सभी के लिए यह महापर्व आने वाले पांच साल के लिए कैसी सरकार बने और देश को आगे ले जाने वाले जनप्रतिनिधि कैसे हों, उनको चुनकर संसद में भेजने का मौका लेकर आया है. ऐसे में आपके एक-एक वोट का महत्व काफी बढ़ जाता है. प्रभात खबर के न्यू बाराद्वारी ऑफिस में मंगलवार को चुनावी चौपाल हुआ, जिसमें लोकतंत्र के महापर्व पर चर्चा हुई. मतदान और एक-एक मत के महत्व को रेखांकित किया गया. इसको लेकर लोगों ने बार-बार जागरूकता की कमी की तरफ उंगलियां उठायीं. कहा कि जिस प्रकार शादी में निश्चित संख्या में बरातियों की व्यवस्था की जाती है और आधी बरात आने पर मेजबानों को जो पछतावा होता है. ठीक वैसा ही अफसोस मतदाता केंद्र तक मतदाताओं के नहीं आने से होता है. क्योंकि, एक मतदाता को मतदान केंद्र तक ले जाने में प्रशासन को बहुत ताकत लगानी पड़ती है. इसलिए सभी ने लोकसभा चुनाव में मतदान करने और इसको लेकर लोगों को जागरूक करने की बात कही. इस दौरान ””25 को 25”” का नारा दिया गया. मतलब यह कि 25 मई को मतदान के दिन सभी अपने स्तर पर 25 लोगों को जागरूक कर मतदान केंद्र तक लाएंगे.
किसने क्या कहा
प्रशासन की तरफ से सारी व्यवस्था हो जाती है, लेकिन मतदाता मतदान केंद्र तक नहीं पहुंचता. ऐसे में कम मतदान होता है. फर्ज लीजिए 60 प्रतिशत पोलिंग हुआ. इसमें 15 फीसदी मत लाने वाले जीत जाते हैं. जिसे 15 प्रतिशत मत मिला वह कुल वोट का कितना है? मेरा मानना है कि 51 प्रतिशत मत लाने वाले को ही प्रतिनिधि चुना जाना चाहिए. इसको लेकर सकारात्मक माहौल बनाने की जरूरत है. अस्पताल में भर्ती रोगी का मतदान कैसे हो, इस दिशा में भी सोचा जाना चाहिए.– अहमद बद्र, प्राध्यापक करीम सिटी कॉलेज
शत-प्रतिशत मतदान के लिए सोसाइटी को भी आगे आना होगा. पहले लोग घर-घर पर्चा पहुंचा जाते थे. अब ऐसा नहीं होता. इस समय पॉलीटिकल वर्कर का अभाव दिखता है. मतदान को लेकर छोटी-छोटी संस्थाओं को आगे आना चाहिए. लोगों को बताना चाहिए कि मतदान हमारा हक है और इसका इस्तेमाल हमें जरूर करना चाहिए. जिला प्रशासन ढाई महीने से इस दिशा में मेहनत कर रहा है. हमारी ओर से भी कोशिश होनी चाहिए कि अच्छे लोग राजनीति में आये.– मुख्तार आलम खान, सचिव ह्यूमेन वेलफेयर ट्रस्ट
जागरूकता की कमी, मतदाताओं की लापरवाही, वोट की अहमियत को नहीं समझने के कारण मतदान का प्रतिशत घट रहा है. प्रतिनिधि अच्छे नहीं हैं, तो नोटा का इस्तेमाल हो सकता है. लेकिन, हर हाल में मतदान करना चाहिए. मतदान के संबंध में जारी नंबर 1950 की जानकारी कम लोगों के पास है. मतदान के लिए सभी को छुट्टी मिलती है, लेकिन लोग मतदान नहीं कर छुट्टी मनाते हैं. होना यह चाहिए कि जो वोट डालेगा उसे ही छुट्टी मिले. इसको लेकर थोड़ी शक्ति बरतने की जरूरत है.– मतिनुलहक अंसारी, निदेशक बचपन प्ले स्कूल
मुझे पोलिंग एजेंट बनने का मौका मिला है. देखा गया है कि संभ्रांत वर्ग भीड़ से परहेज करता है. उच्च मध्यम वर्ग को सरकारी सुविधाओं से लेना-देना नहीं रहता. इसलिए वह भी मतदान करने नहीं जाता. निम्न मध्यम वर्ग पेंडुलम की तरह है. जबकि निम्न वर्ग को राजनीतिक पार्टी हाइजैक कर लेती है. इसलिए मतदान प्रतिशत घट रहा है. इस दिशा में सोचने की जरूरत है. निर्वाचन आयोग को वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए. वोट प्रतिशत बढ़े इसके लिए ऑनलाइन एक व्यवस्था हो सकती है.– अपूर्व पाल, पारडीह
मैं तलवार बिल्डिंग में रहती हूं. हमारे यहां से 99 प्रतिशत मतदाता मतदान करने जाते हैं. जिसे आप चुनने वाले हैं, वह पांच साल शासन करने वाला है. चुनाव है, चुन लीजिए. नहीं तो कोई और जिसे आप पसंद नहीं करते उसे चुन लेगा. पूरी दुनिया को कोई बदल नहीं सकता, लेकिन हम खुद को बदल ही सकते हैं. यह सोचना चाहिए कि वोट से हम आगे बढ़ेंगे. सब कुछ प्रशासन के भरोसे नहीं हो सकता. हमारी भी कुछ जिम्मेदारी है. लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए हमें वोट करना चाहिए.– डॉ अर्चना द्विवेदी, प्राचार्य अहसेन इंटरनेशनल स्कूल
मैं वर्ष 1984 के बाद हर बार गल्फ से मतदान करने यहां आता हूं. पहले वोटर लिस्ट मिल जाती थी. डोर-टू-डोर इसे बांटा जाता था. ऐसा अब देखने को नहीं मिलता. डोर-टू-डोर लिस्ट जाने पर लोग समझते थे. यह भी अवेयरनेस का एक तरीका था. लोगों को मतदान का महत्व समझना होगा. लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए अपने हक का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए. मैं अगर गल्फ से मतदान करने यहां आ सकता हूं, तो यहां के लोग अपने घर से मतदान केंद्र तक क्यों नहीं जा सकते?
– मोइनुद्दीन अंसारी, ओल्ड पुरुलिया रोड
मैं आधी आबादी की बात करूंगी. मुझे आजादबस्ती में काम करने का मौका मिला है. हमारे स्कूल के बच्चों ने रैली भी निकाली. महिलाओं में जिम्मेदारी की भावना की कमी है. उसे समझना चाहिए वो पहले नागरिक हैं, फिर महिला. हमने महिलाओं को मतदान को लेकर शपथ दिलायी है. हर स्तर पर अवेयरनेस को लेकर काम करने की जरूरत है. हमारे एक मत से क्या फर्क पड़ने वाला है. इस सोच से लोगों को ऊपर उठने की जरूरत है. एक-एक मत अहम है.
– डॉ निधि श्रीवास्तव, प्राचार्य विवेकानंद इंटरनेशनल स्कूल
मुझे पीठासीन पदाधिकारी के तौर पर छह लोकसभा और आठ विधानसभा चुनाव कराने का अनुभव है. रिमोट एरिया में ऐसा होता है कि जानकारी के अभाव में मतदाता कहीं पर भी बटन दबा देते हैं. इसे देखने की जरूरत है. विचारधारा को लेकर भी मतदाताओं को परेशानी होती है. जिसे वोट दिया पता नहीं वह कल किधर चला जाये. प्रतिनिधि एक विचारधारा पर टिक नहीं पा रहे. डेमो के लिए कुछ दिन पहले वोटिंग मशीन रिमोट एरिया में पहुंचायी जानी चाहिए.
– रिजवान अहमद, पूर्व प्रधानाध्यापक कबीर मेमोरियल उर्दू हाइस्कूल
हमें अपनी सोच के दायरे को बढ़ने की जरूरत है. मुझे लोकसभा में दो बार मतदान करने का मौका मिला है. मेरे दृष्टिकोण से मेरा राज्य अव्वल हो और देश का विकास हो, इस दिशा में काम करने वाले को वोट मिलना चाहिए. युवाओं में मंदिर, आरक्षण, मुस्लिम या मंगलसूत्र मुद्दा नहीं है. मुद्दा रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य है. इसको लेकर जो काम करने का वादा करे उसे ही अपना मत दें. अगर पहले किसी ने वादा कर पूरा नहीं किया है, तो उसे नकार दें.
– अभिषेक शर्मा, डिमना रोड मानगो
वोटरों में उदासीनता आ गयी है. इसके कई कारण हैं. अकसर देखा जाता है कि प्रतिनिधि अपने वादे को पूरा नहीं कर पाते. जो वादा पूरा नहीं हुआ, वह वादा नहीं हुआ. कोई अच्छा नहीं है तो नोटा का इस्तेमाल करना चाहिए. तब राजनीतिक पार्टी सोच-समझकर प्रतिनिधि उतारेगी. देखा गया है कि कई बार वोटर लिस्ट भी सही नहीं होती. पोलिंग बूथ बदल जाने पर इसकी जानकारी लोगों को नहीं मिल पाती है. वोटर हेल्पलाइन एप है, लेकिन इसकी जानकारी कम लोगों के पास है.
– मुमताज शरीक, निदेशक मदर होम पब्लिक स्कूल
कई बार लोगों को पता नहीं होता है कि मतदान के लिए कहां जाना है. उदाहरण के लिए किसी का आदित्यपुर की वोटर लिस्ट में नाम है, क्योंकि वह पहले आदित्यपुर में रहता था. अब जमशेदपुर आ गया. यहां की लिस्ट में नाम नहीं है. इसका क्या समाधान होना चाहिए? मतदाताओं को जागरूक करने के लिए इलेक्शन कमीशन लगातार प्रयास कर रहा है. लोगों को भी चाहिए जहां उनका मत है, वहां जरूर मतदान करें. आखिर यह हक का मामला है.
– हमीद रजा खान, आशियाना रेसिडेंसी मानगोB
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