World Elephant Day 2022: हाथियों के लिए संरक्षित है दलमा क्षेत्र, बढ़ी गजराजों की संख्या
आज विश्व हाथी दिवस है. इसका उद्देश्य लोगों को हाथियों के प्रति जागरूकता और उसके संरक्षण को बढ़ावा देना है. जमशेदपुर का दलमा वन क्षेत्र हाथियों के संरक्षित स्थल है. झारखंड में हाथियों के तीन कॉरिडोर है. पलामू का बेतला नेशनल पार्क, पलामू सेंचुरी और दलमा आश्रयणी है.
World Elephant Day 2022: आज विश्व हाथी दिवस है. विश्व हाथी दिवस की शुरुआत 12 अगस्त, 2012 को हुई थी. इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य हाथियों के प्रति जागरूकता और संरक्षण को बढ़ावा देना है. हाथी को राष्ट्रीय विरासत पशु भी घोषित किया जा चुका है. हाथी को झारखंड में राजकीय पशु का दर्जा मिला हुआ है. दो जिलों के बीच स्थित दलमा जंगल हाथियों के लिए सुरक्षित और संरक्षित स्थान घोषित है.
तीन साल में दलमा की स्थिति में सुधार
गज परियोजना के तहत दलमा के हाथियों पर प्रति वर्ष करोड़ों रुपये खर्च किये जाते हैं. पिछले कुछ सालों में हाथियों की संख्या में बड़ी गिरावट आयी है जो दुनियाभर के लिए चिंता का विषय है. भारत में भी हाथियों की संख्या में कमी हो रही है. लेकिन, पिछले तीन साल के आंकड़े पर गौर करे, तो झारखंड और दलमा की स्थिति में काफी सुधार हुआ है. दलमा आश्रयणी में 2019 में जहां हाथियों की संख्या 67 थी, वहीं 2022 में यह संख्या 104 दर्ज की गयी है. यह आंकड़े दर्शाते हैं कि हाथियों को 197 किलोमीटर क्षेत्र में फैला दलमा के पसंद आ रहा है.
दलमा में जलाशय और उपलब्ध भोजन आ रहा पसंद
दलमा जंगल में हाथियों की संख्या बढ़ने का कारण यहां के पर्यावरण व उपलब्ध उनके भोजन व जलाशय हैं. गर्मी के दिनों में जलाशय के सूखने के मामले सामने आते हैं. लेकिन, दलमा गज परियोजना के तहत जलाशय सूखने नहीं दिया जाता है. दलमा में वर्तमान में 76 से ज्यादा प्राकृतिक और 40 कृत्रिम तालाब हैं. वहीं हाथियों के भोजन के तौर पर पीपल, बरगद, कटहल, अमरूद, मोहलाल, बेल, गुल्लर के पत्ते और बांस काफी पसंद है.
Also Read: Tata Power की बिजली जमशेदपुर, आदित्यपुर और गम्हरिया में होगी महंगी, जानें नया टैरिफ रेट
सिकुड़ रहे जंगल, इसलिए बढ़ रहा इंसान और हाथी में टकराव
झारखंड में गजराज चिंघाड़ रहे हैं. वर्ष 2012 में यह संख्या 688 थी. झारखंड में हाथियों के तीन कॉरिडोर है. पलामू का बेतला नेशनल पार्क, पलामू सेंचुरी और दलमा आश्रयणी (सरायकेला-खरसावां) है. राज्य में जंगल के भौगोलिक क्षेत्रफल में इजाफा हुआ है, लेकिन घने जंगल कम हुए हैं. एक रिपोर्ट अनुसार, भारत में सिर्फ 27 हजार हाथी ही बचे हैं. देश में सर्वाधिक हाथियों की संख्या 6000 कर्नाटक में है.
कॉरिडोर प्रभावित होने से बढ़ी परेशानी
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) आशीष रावत के अनुसार, हाथी बड़ा जानवर है. इसे गश्त करने के लिए बड़ा क्षेत्र चाहिए. इसलिए किसी तरह की घेराबंदी से हाथी का कॉरिडोर प्रभावित होता है. भोजन की तलाश में हाथी जंगल से ग्रामीण इलाके में प्रवेश करते हैं.
फसल बचाने के लिए तार से घेराबंदी
पशु चिकित्सक डॉ ओम प्रकाश साहू ने बताया कि रांची से सटे आस-पास के इलाके में इटकी, बेड़ो, लापुंग व कर्रा जंगल में हाथियों के झुंड का आना-जाना लगा रहता है. फसलों को बचाने के लिए ग्रामीण कंटीले तार से घेराबंदी कर देते हैं. कभी-कभी इनमें करंट भी लगा देते हैं.
हाथियों से जुड़े रोचक तथ्य
– हाथी के बच्चे जन्म के महज 20 मिनट के बाद खड़े हो जाते हैं
– हाथी खाने के बहुत शौकीन होते हैं वह हर दिन लगभग 16 घंटे भोजन करने में बिताते हैं
– हाथियों के लिए कीचड़ सनस्क्रीन है, इसलिए कीचड़ में लोटना पसंद करते हैं.
दो साल में तीन हाथियों के ट्रेन से कटने से हुई मौत
दलमा जंगल पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला जिला के अलावे ओड़िशा और पश्चिम बंगाल के सीमा से सटा है. चाकुलिया का सुनसुनिया सबसे घने जंगल में से एक है. यहां हाथी ज्यादा समय तक वास करते हैं. यह क्षेत्र हाथियों के आहार के लिए जितना सुलभ है, वहीं दुर्भाग्य है कि यह क्षेत्र हाथियों के मौत का कारण भी बनता है. चाकुलिया के पास के गिधनी और कोकपाड़ा रेलवे स्टेशन के पास ट्रैक पार करते वक्त ट्रेन से कट कर कई हाथी की मौत हो चुकी हैं. वर्ष 2018 के दिसंबर में दो हाथी और 2020 के फरवरी में एक हाथी ट्रेन से कट गये थे. वर्ष 2022 के मई में चाईबासा में भी एक हाथी के ट्रेन से कटने से मौत हो गयी थी.
Posted By: Samir Ranjan.