जमशेदपुर, दशमत सोरेन: शौक और जुनून ऐसा कि डुंगरी (छोटी पहाड़ी) पर हरियाली ला दी. 30 साल पहले जहां केवल पत्थर थे, वहां अब पेड़-पौधे हैं और चारों तरफ हरियाली ही हरियाली छायी हुई है. यह संभव हुआ है पूर्वी सिंहभूम जिले के सुंदरनगर के पुरीहासा निवासी बीरप्रताप मुर्मू की मेहनत और शौक की वजह है. वह पेशे से शिक्षक हैं, लेकिन बागवानी (गार्डनिंग) के शौक की वजह से उन्होंने अपने पैतृक गांव फूफड़ी बाड़ेडीह में हजारों पेड़ लगाये हैं. उनके गांव में दो डुंगरी (छोटी पहाड़ी) है, जहां करीब 30 साल पहले पत्थर ही पत्थर था. लेकिन अभी ये दोनों डुंगरी घने जंगल में तब्दील हो गये हैं. इन डुंगरी पर करीब 12 हजार से अधिक छोटे-बड़े पेड़-पौधे हैं. इन दोनों डुंगरी पर अब चारों ओर हरियाली ही हरियाली है. बीरप्रताप मुर्मू ने अपनी कड़ी मेहनत से इसे संभव कर दिखाया है. अब आलम यह है कि उनके दोस्त, रिश्तेदार और अनजान भी उनके हरे-भरे डुंगरी को देखने आते हैं. वे अपने क्षेत्र में गार्डनिंग के लिए काफी मशहूर हैं. साथ ही, वे दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन गये हैं.
व्यस्तता के बाद भी निकाल लेते हैं बागवानी के लिए समय
बागवानी (गार्डनिंग) करना कई लोगों को मुश्किल लगता है क्योंकि उनके हिसाब से इस काम को काफी समय देना पड़ता है. लोगों का मानना है कि यह गृहिणियों और रिटायर्ड लोगों का शौक है, लेकिन जमशेदपुर के बीरप्रताप मुर्मू मानते हैं कि अगर आपको एक बार पौधों से प्यार हो गया, तो आप गार्डनिंग के लिए समय निकाल ही लेते हैं. जैसा वे खुद करते हैं. वे स्कूल की छुट्टी के बाद एक बार पौधों को देखने जरूर जाते हैं. छुट्टी के दिन तो वह अपना सारा समय पेड़-पौधों के बीच ही गुजारते हैं. ग्रामीणों के सहयोग नये पौधों को लगाते हैं या कमजोर पौधे जो गिरने की हालत में रहते हैं, उसे बांस का सहारा देकर सीधा करते हैं.
डुंगरी में बाचकोम घास की कर रहे खेती
बीरप्रताप मुर्मू इन छोटी पहाड़ियों अर्थात डुंगरियों में बाचकोम (एक तरह का घास, जो खटिया बीनने में उपयोग होता है) की खेती करते हैं. गांव में जब भी किसी को खटिया बनाना होता है, तो वे इस डुंगरी से बाचकोम को काटकर ले जाते हैं और खटिया बीनते हैं. फूफड़ी बाड़ेडीह के लोग बाचकोम कभी नहीं खरीदते हैं.
पेड़-पौधे काटने पर है रोक, पकड़े जाने पर देते हैं दंड
डूंगरी के पेड़ों को काटने पर पूरी तरह से रोक है. फिर भी दूसरे गांव के लोग चोरी-छिपे पेड़ को काट ही लेते हैं. पकड़े जाने पर उन्हें आर्थिक दंड देते हैं. पेड़ काटने वाले व्यक्ति से 50 रुपये आर्थिक दंड लिया जाता है. वहीं, पेड़ों को काटने की सूचना देने वालों को पुरस्कृत किया जाता है. बीच-बीच में वन व पर्यावरण संरक्षण के लिए गांव में जनजागरण रैली और गोष्ठी आदि का भी आयोजन करते हैं. इसकी वजह से ग्रामीण पेड़-पौधों के महत्व को भलीभांति जानने लगे हैं.
साहित्य सृजन से भी है काफी लगाव, मिल चुका है साहित्य अकादमी अनुवाद पुरस्कार
बीरप्रताप मुर्मू साहित्यकार भी हैं. उन्हें साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली की ओर से अनुवाद पुरस्कार भी मिल चुका है. उन्हें यह पुरस्कार मुंशी प्रेमचंद के हिंदी उपन्यास प्रतिज्ञा का संताली में अनुवाद पुस्तक ‘किरा’ के लिए मिला है. वे संताली भाषा की लिपि ओलचिकी के अच्छे जानकार हैं. वे इसका भी प्रचार-प्रसार करते हैं. साथ ही, युवाओं को ओलचिकी लिखने-पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. वे कई सामाजिक संगठनों के साथ जुड़े हैं और सामाजिक गतिविधियों में हमेशा सक्रिय रहते हैं.
हरियाली देखकर मिलता है सुकून : बीरप्रताप मुर्मू
बीरप्रताप मुर्मू बताते हैं कि पेड़-पौधे लगाना उनका शौक है. वह हमेशा अपने घर व गांव के आसपास हरियाली देखना चाहते हैं. इसलिए खाली पड़ी जमीन पर पेड़-पौधे लगाते रहते हैं. गांव के लोग भी इसमें आगे बढ़कर सहयोग करते हैं. दोस्त व रिश्तेदार उनके इस शौक की वजह से प्रोत्साहित करते हैं, तो उनका मनोबल और बढ़ता है. इसलिए वे दूसरों को भी पौधरोपण के लिए प्रोत्साहित करते हैं. वे बताते हैं कि आज के समय में तो हर व्यक्ति को पौधरोपण करना चाहिए. या यूं कहें कि इसे अन्य कामों की तरह अपने दिनचर्या में शामिल करना चाहिए.
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