झारखंड : बिल्डिंग, गाड़ी और बैंक बैलेंस हैं, लेकिन आज भी कहलाते रिफ्यूजी हैं

लौहनगरी जमशेदपुर में 15 हजार वोटर रिफ्यूजी ऐसे हैं जिनकी जमीन को मालिकाना नहीं मिला. उनका कहना है कि कई पीढ़ियां यहां गुजर गई, लेकिन वे आज भी रिफ्यूजी कहलाते हैं. विश्व शरणार्थी दिवस पर पढ़ें खास रिपोर्ट...

By Prabhat Khabar News Desk | June 20, 2023 2:41 PM

जमशेदपुर, संजीव भारद्वाज. पूरी दुनिया में आठ करोड़ लोग शरणार्थी के तौर पर जीवन बिता रहे हैं. हर वर्ष 20 जून को दुनिया भर में ‘वर्ल्ड रिफ्यूजी डे’ मनाया जाता है. लौहनगरी जमशेदपुर में गोलमुरी स्थित रिफ्यूजी काॅलोनी, सिंधी काॅलोनी और ईस्ट बंगाल काॅलोनी में करीब 15 हजार लोग ऐसे हैं जिनके पास बिल्डिंग, गाड़ियां, बैंक बैलेंस, आधार, वोटर, पैन कार्ड, बैंक के खाते हैं, बावजूद इसके वे आज तक रिफ्यूजी ही कहलाते हैं. जिस जमीन पर उन्हें बसाया गया, उसका मालिकाना हक उन्हें नहीं प्रदान किया गया. इसे लेकर कई बार प्रयास किये गये, लेकिन कोई हल नहीं निकला. उन्हें मालिकाना हक मिले इसके लिए विधानसभा में भी मामला उठाने की तैयारी है.

भारत-पाक जंग के वक्त 400 लोग आये थे शहर

भारत और पाकिस्तान के बीच हुई जंग (1965 और 1971) के बाद पाकिस्तान-बांग्लादेश से करीब चार सौ लोग जमशेदपुर आये थे. उन्हें पहले सिदगोड़ा में ठहराया गया. बाद में गोलमुरी में रिफ्यूजी कालोनी, सिंधी कालोनी व ईस्ट बंगाल कालोनी के रूप में उन्हें बसाया गया. इसके अलावा मानगो शंकोसाई रोड नंबर दो में भी बांग्लादेश से आये शरणार्थियों को खुदीराम बोस कॉलोनी में बसाया गया. पहले जहां इनकी संख्या 400 थी, अब शरणार्थी कहलानेवालों की संख्या 15 हजार से अधिक हो गयी है. गोलमुरी रिफ्यूजी काॅलोनी का नाम बदलने को लेकर कई बार कवायद हुई. कभी आदर्शनगर, तो कभी गुरु गोविंद सिंह नगर नाम रखा गया, लेकिन इन नामों को पहचान नहीं मिल सकी. सरकारों ने मालिकाना हक देने की कवायद शुरू की, बंदोबस्ती के लिए कैंप लगाये गये, लेकिन गिनती के ही लोगों ने पर्चा लिया, जिसे जमा भी नहीं कराया.

क्या कहते हैं लोग

हमारी तीन पीढ़ियां गुजर गयीं. सहूलियतें तो मिलीं, लेकिन जब तक जमीन का मालिकाना नहीं मिल जाता, तब तक रिफ्यूजी ही कहलायेंगे- चरणजीत लाल खरबंदा

भारत के बंटवारे के बाद हमारे पूर्वज आकर जमशेदपुर में बस गये थे. यहां हमें रिफ्यूजी कहा जाता था. हमें बाकी सभी अधिकार मिले लेकिन आज तक जमीन का पट्टा-मालिकाना नहीं मिला- अवतार सिंह सचदेव

रिफ्यूजी कालोनी में कोई दिक्कत नहीं है. सिर्फ जमीन के कागजात मिल जायें तो यह नाम भी बदल जायेगा. रिफ्यूजी कॉलोनी नाम से लोग यह समझ लेते हैं कि हम लोग पाकिस्तान से लौहनगरी आये हैं- सतनाम सिंह गंभीर

बंटवारे के वक्त हमें अपनी जमीन जायदाद धन-दौलत छोड़कर भारत आना पड़ा. अब तक हमें जमीन का अधिकार नहीं मिला. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए- मोतीलाल कर्मकार

ईस्ट बंगाल कालोनी के बड़ी संख्या में लोग पूर्वी पाकिस्तान से भारत आये. सरकार ने उन्हें रहने के लिए छत दी. अब सरकार ने नागरिक तो मान लिया है, लेकिन उन्हें जमीन का अधिकार नहीं दिया- रंजीत चक्रवर्ती

जमीन के कागजात नहीं होने से बच्चों के लिए एजुकेशन लोन, घर बनाने के लिए लोन नहीं मिलता है. स्थायी आवासीय बनने में दिक्कत होती है. हमें सरकार मालिकाना हक प्रदान करे- संजय नंदी, सचिव ईस्ट बंगाल कॉलोनी

मानगो के शंकोसाई में रोड नंबर-2 स्थित खुदीराम बोस काॅलोनी को लोग रिफ्यूजी काॅलोनी के नाम से जानते हैं. इसका नामकरण 1980 में हुआ था. फिलहाल यहां 59 लोग घर बनाकर रह रहे हैं. लोगों का कहना है कि उनके पास जमीन का नक्शा है, पुनर्वास के कागजात हैं, लेकिन जमीन का पट्टा अभी तक हमारे नाम से नहीं हुआ है- जीवन कृष्ण मजूमदार

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