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World Tourism Day 2023: सोलो ट्रिप बन रही लोगों की पहली पसंद, इन जगहों पर टूर कर पहुंचे जमशेदपुर के ट्रैवलर

आज-कल सोलो ट्रिप लोगों की पसंद बन रही है, क्योंकि यह यात्रा आपको स्वयं व पर्यटन क्षेत्रों के बारे में जानने का समय देती है, जिसमें अधिक आनंद मिलता है. जमशेदपुर में ऐसे कई यायावर हैं, जिन्हें नयी-नयी जगहों को देखने और वहां के रहन-सहन को समझने का शौक है. इसके लिए वे समय और मौसम नहीं देखते.

World Tourism Day 2023: विश्व पर्यटन दिवस 27 सितंबर को मनाया जाता है. इसकी शुरुआत वर्ष 1980 में संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन के द्वारा हुई. इस तिथि के चुनाव का मुख्य कारण यह था कि वर्ष 1970 में यूएनडब्ल्यूटीओ की कानून को स्वीकारा गया था. इसे वैश्विक पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयास में मील के पत्थर के रूप में देखा जाता है. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व में इस बात को प्रसारित तथा जागरूकता फैलाना है कि किस प्रकार पर्यटन वैश्विक रूप से, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा आर्थिक मूल्यों को बढ़ाने में तथा आपसी समझ बढ़ाने में सहायता कर सकता है. घूमने-फिरने के शौकीन लोग कवि ख्वाजा मीर दर्द के उक्त शे’र को जिंदगी में उतार कर अलग-अलग जगहों की संस्कृति से रू-ब-रू होते रहे हैं. इसमें उन्हें आनंद भी आता है, क्योंकि आप जितना घूमकर सीख सकते हैं, उतना किताबों से नहीं सीख सकते. पर्यटन सीखने और जानने का बेहतरीन जरिया है. इससे वैसी चीजों को जानने का मौका मिलता है, जिसको किसी और तरीके से जाना ही नहीं जा सकता. जमशेदपुर में ऐसे कई यायावर हैं, जिन्हें नयी-नयी जगहों को देखने और वहां के रहन-सहन को समझने का शौक है. इसके लिए वे समय और मौसम नहीं देखते. उनका ट्रैवलिंग सामान हमेशा तैयार रहता है.

पारडीह निवासी कुमार तेजस्वी को नयी-नयी जगह देखने का शौक है. वे बाइक से अकेले घूमना पसंद करते हैं. प्लानिंग कर यात्रा नहीं करते, मूड पर यात्रा तय होता है. वे बताते हैं कि जमशेदपुर के आसपास जैसे बंगाल, ओडिशा के इलाके को बाइक से ही ट्रेवल करते हैं. हाल ही में उन्होंने जमशेदपुर से कोई 240 किलोमीटर दूर ओडिशा के बगदा बीच की यात्रा की. वे बताते हैं कि इस बीच के बारे में कम लोगों को पता है. इसकी खूबी है कि दिन में यहां एक से डेढ़ किलोमीटर समुद्र पीछे चला जाता है. यानी इतनी दूरी तक समुद्र में आप पैदल जा सकते हैं. संध्या और रात्रि में समुद्र फिर नजदीक आ जाता है.

यहां जाना है आसन

जमशेदपुर की तेजस्वी बताते हैं कि धीरे-धीरे लोगों को बगदा बीच की जानकारी मिल रही है. अभी यहां ठहरने के लिए कोई होटल नहीं है. कैंप या टैंट में रहना पड़ता है. टैंट में 1300 रुपये चार्ज है, जबकि कैंप में बेड के हिसाब से चार्ज देना पड़ता है. यहां डबल बेड का 1800 रुपये लगता है. साथ में दो समय का खाना और नाश्ता मिलता है. वे बताते हैं कि यहां जाना बहुत ही आसान है. बालासोर से सिर्फ 40-50 किलोमीटर दूर है यह बीच.

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चांदनी रात में लाल केकड़े दिखते हैं मनोरम

वे बताते हैं कि इस समुद्र की एक और खूबी है. यहां लाल रंग के केकड़े रहते हैं, जो रात्रि में समुद्र से बाहर निकलते हैं. चांदनी रात में यह दूर से ही चमकते हैं, जो काफी मनोरम लगता है. तेजस्वी यात्रा की बातें अपने चैनल मूव लाइक तेजस पर साझा करते हैं. वे छोटे-छोटे रील भी बनाते हैं.

6 साल में 1.50 लाख किमी का सफर कर चुके हैं सोनारी के संदीप दास

कांट्रैक्टर और पैकर्स एंड मूवर्स का काम करने वाले सोनारी संगम विहार के संदीप दास शौकिया सोलो राइडर हैं. वे अपनी बाइक से 6 साल में 1.50 लाख किलोमीटर का सफर कर चुके हैं. उनकी पत्नी और एक बेटा भी है, लेकिन जब उनका मन करता है अकेले यात्रा पर निकल पड़ते हैं. उन्होंने बताया कि 1995 से उन्होंने सोलो राइड की शुरुआत की, जो लगातार जारी है. अब उन्होंने एक और नयी बाइक ली है, जिससे करीब 18 हजार किलोमीटर का सफर कर चुके हैं. अकेले घूमना उनका पैसन है. 53 वर्षीय संदीप दास कहते हैं कि उनके इस शौक को पूरा करने में उनके परिवार का भी सहयोग रहता है. वे अब तक पूरा दक्षिण भारत, महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, नार्थ-ईस्ट समेत कई राज्यों का भ्रमण कर चुके हैं. इससे वे देश भर की कला और संस्कृति को जान पाते हैं. हर साल कोई न कोई लंबा ट्रिप तो जरूर करते हैं. शुरुआत में कुछ दिक्कतें हुईं, लेकिन अब यह आसान लगता है.

हर तीन महीने में टूर पर जाते हैं कदमा के अजीत मिश्रा

कदमा निवासी अजीत मिश्रा की रेलवे कॉलोनी लाल बिल्डिंग में किताब की दुकान है. उन्हें घूमने-फिरने का बहुत शौक है. हर तीन महीने पर वे घूमने के लिए कहीं-न-कहीं निकल जाते हैं. वे बताते हैं कि पर्व-त्योहार पर दुकान नहीं चलती है. इसलिए इस दौरान ही वे प्राय: निकलते हैं. वे अब तक कई जगहों की यात्रा कर चुके हैं. पहले वे परिवार के साथ निकलते थे. कोरोना काल के बाद अकेले ट्रेवलिंग करना शुरू कर दिया है. वे पर्यटन से लगाव की बातों को याद कर बताते हैं कि मैट्रिक पास करने के बाद एक रैली में दोस्तों के साथ दिल्ली चले गये थे. जहां वे रैली से अलग होकर दो दिनों तक दिल्ली घूमे. यहीं से उन्हें सैर-सपाटे का चस्का लगा. भारत के बाहर भी वे दो बार नेपाल, दुबई और थाइलैंड जा चुके हैं. हाल में भूटान की यात्रा पूरी की. भूटान में वे फुनसुलिंग गये. वे बताते हैं कि यह शहर भारत के बॉर्डर से सटा है. इस तरफ जयगांव है और बॉर्डर के उधर फुनसुलिंग. वे बताते हैं कि यहां जाने के लिए वीजा की जरूरत नहीं पड़ती. हां, बॉर्डर पर भारत का मतदाता पहचान पत्र जरूर देखा जाता है. वे ढाका और श्रीलंका जाना चाहते हैं. बताते हैं कि दुनिया भर में सबसे ज्यादा रिक्शा ढाका में है. इसलिए वे वहां के कल्चर को देखना चाहते हैं.

साकची के डॉ आरएल अग्रवाल डायमंड क्रेटर की ट्रैकिंग का उठा चुके हैं लुत्फ

साकची निवासी सीनियर फिजिशियन डॉ आरएल अग्रवाल को भी घुमक्कड़ी का शौक है. 28 जुलाई से 18 सितंबर तक वे हवाई (अमेरिका) में रहकर आये हैं. वे बताते हैं कि कई बॉलीवुड फिल्मों में हवाई का जिक्र है, जो नेचुरल ब्यूटी के लिए जाना जाता है. यहां सुंदर-सुंदर पहाड़ियां हैं. पहाड़ियों के बीच हरियाली की चादर बिछी है. वे बताते हैं कि जूरासिक पार्क, किंगकांग जैसी फिल्मों की शूटिंग यहीं हुई. यहां पर ज्वालामुखी फटने के बाद पहाड़ बन गया है, जिसे डायमंड क्रेटर कहा जाता है. यहां उन्होंने ट्रैकिंग की, जहां एक तरफ समुद्र है और दूसरी तरफ सिटी. डॉ अग्रवाल बताते हैं कि हवाई यात्रा के दौरान उन्होंने पर्ल हार्बर भी देखा, जो हॉनलूलू से कोई 10 किलोमीटर दूर है. वे बताते हैं कि यहां द्वितीय विश्वयुद्ध में इस्तेमाल किया गया नेवी का जहाज है. इस जहाज में द्वितीय विश्वयुद्ध से संबंधित हर चीज को बहुत ही बढ़िया तरीके से दिखाया गया है. जिस पर फिल्म भी बन चुकी है. वे बताते हैं कि ट्रेवलिंग से बाहर की संस्कृति की जानकारी मिलती है. वे साल में दो से तीन बार टूर पर जरूर निकलते हैं.

बाराद्वारी के रत्नदीप बाइक से 15 राज्यों का कर चुके हैं सफर

बाराद्वारी निवासी रत्नदीप को घूमने का बचपन से शौक है. वे बताते हैं कि स्कूली कक्षाओं में इतिहास-भूगोल की किताबों में कई जगहों के बारे में पढ़ता था. उस समय लगता था कि अमुक-अमुक जगह पर एक बार जरूर जाना है. कॉलेज लाइफ शुरू हुई, तो चीजें और साफ होती चली गयी. यहां ये यात्रा भी शुरू हो गयी, जो अभी भी जारी है. रत्नदीप गिटारिस्ट हैं. एक तो घूमने का शौक, दूसरा संगीत से लगाव. इस लगाव ने ही उन्हें अरुणाचल प्रदेश के जीरो फेस्टिवल ऑफ म्यूजिक कार्यक्रम में खींच लाया. इस फेस्टिवल में हिस्सा लेने के लिए जाने के क्रम में मंगलवार को उन्होंने मेघालय से बताया कि यह फेस्टिवल 28 सितंबर से एक अक्तूबर तक चलेगा, जिसमें वहां की लोक संस्कृति देखने को मिलेगी. उन्हें अलग-अलग जगहों की संस्कृति को देखना-समझना अच्छा लगता है. इसलिए यहां की 1308 किलोमीटर यात्रा उन्होंने जमशेदपुर से बाइक से अकेले ही शुरू कर की.

13,853 किमी सोलो राइड

रत्नदीप बताते हैं कि इससे पहले वे कश्मीर से कन्याकुमारी तक की यात्रा भी अकेले ही बाइक से कर चुके हैं. वे बताते हैं कि वर्ष 2017 में उन्होंने यह यात्रा शुरू की थी. इस दौरान 28 दिनों में 15 राज्यों का सफर किया. 13,853 किलोमीटर सोलो राइड किया. इसी तरह वर्ष 2018 में नॉर्थ-ईस्ट की 5,835 किलोमीटर की यात्रा की. यात्रा के क्रम में वे रेस नहीं करते, सेफली राइड करते हैं. सुबह आठ से दोपहर बाद तीन-चार बजे तक ही रुक-रुककर राइड करते हैं. वर्ष 2019 में उन्होंने बाइक से ही हिमाचल की यात्रा की थी.

रत्नदीप इंस्टाग्राम पर साझा करते हैं यात्रा वृतांत

रत्नदीप को केवल घूमने का शौक नहीं है, वे यात्रा की बातें दूसरे लोगों तक भी पहुंचाते हैं. वे इंस्टाग्राम द मिंट विल्स नाम से ब्लॉग लिखते हैं, जिसमें केवल यात्रा की बातें होती हैं. वे बाइक टूरिज्म पर पुस्तक भी लिखना चाहते हैं. वे बताते हैं कि सोलो राइड आपको हर चुनौती का मुकाबला करना सिखाता है. जिम्मेदारी लेना सिखाता है.

बागबेड़ा के अमन जायसवाल को है माइनिंग टूरिज्म का शौक

बागबेड़ा निवासी अमन जायसवाल यात्रा में कुछ नया खोजने की कोशिश करते हैं. जिस कारण माइनिंग टूरिज्म से उनका लगाव होता चला गया. वे ओडिशा के क्योंझर माइनिंग क्षेत्र की यात्रा कर चुके हैं. वे बताते हैं कि माइनिंग का तरीका क्या है, डेली लाइफ में इसका क्या महत्व है, माइनिंग के बाद जो वेस्ट प्रोडक्ट हैं, उसकी क्या वेल्यू है, जैसे सवाल से दो-चार कराता है यह टूरिज्म. माइनिंग के कोर बेल्ट में जाने की परमिशन लेनी पड़ती है. लेकिन, आउटर एरिया में जाने के लिए परमिशन की जरूरत नहीं पड़ती. वे बताते हैं कि कई वैसी जगहें भी हैं, जहां पहले माइनिंग होती थी, अभी वह बंद है. वहां की स्थिति भी जानना चाहिए. ऐसे एरिया में गार्ड रहते हैं. जिनसे बहुत कुछ जानकारी मिल जाती है. अमन बताते हैं कि वे बैगपैकर ट्रेवल इन इंडिया ग्रुप से जुड़े हैं. यह ट्रेवलिंग का ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है, जहां वे यात्रा की बातें साझा करते हैं. इसके अलावा वे घुम्मकड़ी दिल से ग्रुप से भी जुड़े हैं. वहां भी यात्रा वृतांत लिखते हैं. वे बताते हैं कि माइनिंग टूरिज्म में अपार संभावनाएं हैं. लेकिन, इसे मुख्यधारा में नहीं देखा जाता. सरकार की नजर भी इस पर नहीं है. इस तरफ दृष्टि जाये, तो सरकार को बढ़िया राजस्व मिल सकता है.

गालूडीह के सामू महतो ने बुलेट से ही नाप दी 40 हजार किमी की दूरी

पर्यटन का जुनून देखना और जानना है, तो गालूडीह के सामू महतो से मिलिये. 47 वर्षीय सामू महतो का पैतृक गांव बेड़ाहातू है, पर वह कई वर्षों से गालूडीह के महुलिया हाई स्कूल चौक के पास गैरेज चला रहे हैं. जब वे 24 साल के थे, तब से पर्यटन टूर पर जा रहे हैं. खास बात यह है कि सामू बुलेट और बाइक से ही टूर पर जाते हैं और अब तक करीब 40 हजार किमी की यात्रा कर चुके हैं. वह बुलेट और बाइक से कुंभ मेला, महाबलीपुरम, अमरकंटक, खजुराहो, मैहर की माता शारदा, बालाघाट, चित्रकूट धाम, राम जन्मभूमि अयोध्या, बनारस, आगरा, नागपुर, तिरुपति, नेपाल, श्रीनगर, गोवा, मुंबई, कोलकाता, दिल्ली समेत देश के विभिन्न पर्यटन स्थलों का भ्रमण कर चुके हैं. अपनी पिछली यात्राओं में ली गयी अनगिनत तस्वीरों में से अच्छी तस्वीरों को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर करते रहते हैं. उनकी यात्रा अभी भी रुकी नहीं है. वे कहते हैं जल्द ही वे फिर गोवा जाने वाले हैं. उनके साथ रॉयल राइडर के कई दोस्त भी लगातार कई वर्षों से बूलेट में पर्यटक स्थल का सैर कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि नयी जगहों पर जाना और शानदार दृश्य देखना अच्छा लगता है. वे कहते हैं 2014 के बाद कई जगहों पर बाइक से गये हैं.

एक दिन में 850 किमी तक किया सफर, 240 किमी तक बिना रुके चले

सामू महतो बताते हैं कि वह एक दिन 850 किमी तक बुलेट से सफर किये हैं. वहीं, 240 किमी बिना रुके चले हैं. सुबह से शाम तक बुलेट से सफर करते हैं. शाम के बाद किसी शहर में रुक जाते हैं. रात में सफर करने में नयी जगहों पर परेशानी होती है. उनका पर्यटन का शौक अब भी जारी है.

बिष्टुपुर के प्रतीक दिल्ली से बाइक से निकल पड़े मनाली

बिष्टुपुर के थियेटर कलाकार प्रतीक चौरसिया को भी घूमने का शौक है. वे प्लान कर कहीं नहीं निकलते. अचानक मूड बनता है और जहां जिस अवस्था में वहीं से टूर पर निकल पड़ते हैं. वे बताते हैं कि यात्रा से स्थानीय भाषा, संस्कृति, रहन-सहन और खान-पान की जानकारी मिलती है. वे हिमाचल, ओडिशा, सिक्किम, मेघायल की यात्रा कर चुके हैं. वे प्राय: सोलो ट्रिप पर ही निकलते हैं. वे बताते हैं कि मनाली की यात्रा की, जो तीन दिन का ट्रिप था. जमशेदपुर से दिल्ली तक ट्रेन से सफर हुआ. दिल्ली से उन्होंने किराये पर बाइक उठायी और मनाली घूम आये. झारखंड में वे नेतरहाट की चार बार यात्रा कर चुके हैं. वे बताते हैं कि नेतरहाट का वेदर बहुत अच्छा है, जहां सनसेट और सनराइजिंग प्वाइंट हैं. ये अपने आप में अद्भुत हैं. वे बताते हैं कि रांची से करीब 150 किलोमीटर की यह यात्रा कोई भी कर सकता है.

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