गांधी के विचारों को आत्मसात कर ही बेहतर भारत का निर्माण संभव
वरिष्ठ पत्रकार मुधकर ने भी रखी अपनी बात जामताड़ा : गांधी जी के आदर्शों पर चलकर ही उनके सपनों का भारत की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है. उनके द्वारा दिये गये मंत्र आज के दौर में प्रासंगिक है़ं. सत्य और अहिंसा का पाठ जो गांधी ने पढ़ाया था, आज भारत ही नहीं बल्कि […]
वरिष्ठ पत्रकार मुधकर ने भी रखी अपनी बात
जामताड़ा : गांधी जी के आदर्शों पर चलकर ही उनके सपनों का भारत की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है. उनके द्वारा दिये गये मंत्र आज के दौर में प्रासंगिक है़ं. सत्य और अहिंसा का पाठ जो गांधी ने पढ़ाया था, आज भारत ही नहीं बल्कि दुनिया इसको मानने को बाध्य है़.
जाति, धर्म, संप्रदाय से ऊपर उन्होंने कर्म को प्रधानता दी थी़ अस्पृश्यता को लेकर उठाया गया कदम न केवल राजनीतिक बल्कि वैचारिक क्रांति लाने का काम किया था़. यह गांधी का ही सपना था कि देश ग्राम स्वराज की ओर बढ़े़ आज की पीढ़ी को गांधी जी के विचारों को आत्मसात करने की जरूरत है तभी एक बेहतर भारत का निर्माण किया जा सकता है़.
यह कहना था वरिष्ठ पत्रकार मधुकर का. मौका था भारतीय रेडक्रॉस सोसाइटी में राष्ट्रपिता गांधी के 150वीं जयंती अभियान के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी का़बुधवार को रेडक्राॅस सभागार में गांधी के सपनों का भारत विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसमें मुख्य रूप से वरिष्ठ पत्रकार मधुकर, सेवानिवृत्त जामताड़ा काॅलेज के प्राचार्य प्रो महेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र चौधरी तथा डीएवी स्कूल के प्राचार्य डॉ जीएन खान, रेडक्राॅस सचिव राजेंद्र शर्मा उपस्थित थे. संगोष्ठी के माध्यम से लोगों को गांधी जी के विचारधारा से अवगत कराना था़ गांधी ने देश की आजादी के लिए किन-किन बलिदानों को दिया है. गांधी ने स्वराज का सपना देखा था.
जिसमें सभी को स्वतंत्रता, रोजगार, बिजली, पानी, शिक्षा विकास सहित अन्य सुविधाएं आसानी से मिल सकें. इस मौके पर डीएवी के प्राचार्य डॉ जीएन खान ने कहा कि गांधी जी जब 1919 में साउथ अफ्रीका से भारत लौटे तो देखा कि देश पूर्ण रूप से अंग्रेजी हुकूमत से जकड़ा हुआ है. देश के लोगों के साथ घोर अन्याय किया जा रहा था. उसी समय 1919 में उन्होंने अहिंसा का आंदोलन असहयोग आंदोलन की शुरुआत की. जिसमें देश के हर वर्ग के लोगों ने खुलकर गांधी जी को सहयोग दिया.
इससे पूर्व कभी इतना बड़ा आंदोलन किसी ने शुरू नहीं किया था, लेकिन चौड़ी-चौड़ा कांड के बाद गांधी जी ने अपने आंदोलन को वापस लिया और बहुत दुखी हुए थे. उन्होंने कहा कि गांधी जी कभी भी पार्लियामेंटरी पावर नहीं चाहते थे. वे हमेशा से संघीय ढांचा के तहत देश निर्माण के पक्षधर थे. उन्होंने ग्राम स्वराज पर जोर दिया था.