धरोहरों को बचाने की प्रशासनिक पहल शुरू
नाला : जिला प्रशासन व पर्यटन विभाग द्वारा मालंचा पहाड़ तथा पाथरघाटा प्राचीन शिवालय को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की पहल की जा रही है. पिछले दिनों उपायुक्त के निर्देश पर बीडीओ ज्ञान शंकर जायसवाल ने प्राचीन शिवालय पहुंच कर तथ्यों की जानकारी ली. क्या है किवदंती : ज्ञात हो कि मोरबासा […]
नाला : जिला प्रशासन व पर्यटन विभाग द्वारा मालंचा पहाड़ तथा पाथरघाटा प्राचीन शिवालय को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की पहल की जा रही है. पिछले दिनों उपायुक्त के निर्देश पर बीडीओ ज्ञान शंकर जायसवाल ने प्राचीन शिवालय पहुंच कर तथ्यों की जानकारी ली.
क्या है किवदंती : ज्ञात हो कि मोरबासा पंचायत अंतर्गत स्थित मालंचा पहाड़ न केवल धार्मिक स्थल है बल्कि ऐतिहासिक धरोहर के रूप में प्राचीन गाथाओं को संजोये हुए है. बताया जाता है कि1721 में कुंडहित प्रखंड के धासुनिया पहाड़ अंचल में एक साहसी रमना आहड़ी नामक योद्धा का जन्म हुआ था. बाल्यावस्था से ही रमना एक कुशल तीरंदाज, दक्ष शिकारी और गोरिल्ला युद्ध में निपुणता हासिल कर लिया और संताल परगना में एक चर्चित व्यक्तित्व बनकर उभरने लगा. तत्कालीन स्थानीय राजा ने रमना आहड़ी की वीरता और युद्ध कला से प्रभावित होकर 1200 तीरंदाजी वाहिनी के सरदार के पद पर उसे नियुक्त किया.
राजमहल पर्वत माला से होकर जामताड़ा के जंगलों में रमना आहड़ी और उनके अनुगामी अनुचर व संप्रदायों का निवास स्थल था. 1766 के आस-पास अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जीत होकर रमना आहड़ी के वाहिनी सेना पर हमला बोला. इस युद्ध में रमना ने गोरिल्ला रीति से लड़ता हुआ नाला के समीप इसी मालंचा पहाड़ में आश्रय लिया. मुगल और ईस्ट इंडिया कंपनी की संयुक्त सेना ने पहाड़ को चारों तरफ से घेर लिया.
बंदूक कमान से सजे सेना से तीर धनुष की असम युद्ध में रमना आहड़ी अपनी पराजय निकट देखकर अपने प्रमुख सहयोगी सेना कड़िया पूजहर को दुर्गम पहाड़ी अंचल से नाला से होकर निकलने का निर्देश देकर स्वयं आमने-सामने की लड़ाई में कूद पड़े. इस क्रम में वे कडि़या पूजहर को निर्देश देना नहीं भूले कि नया तीरंदाज वाहिनी संगठित कर वह ब्रिटिश सेना से पुन: लड़े जो उस समय आमगाछी पहाड़ी पर डेरा डाले हुए थे. ईधर मालंचा पहाड़ में ब्रिटिश तथा मुगल सेनाओं से लड़ते-लड़ते रमना आहड़ी वीरगति को प्राप्त हुए.