परंपरागत तरीके से बहनों ने मनाया करमा पर्व

त्योहार . पर्व के दौरान बहनों में दिखाया प्रकृति से प्रेम, भाई की सुख व समृद्धि की मांगी मन्नतें, उत्साह का दिखा माहौल मिहिजाम : करमा पर्व इलाके में धूमधाम से मनाया गया. आदिवासियों के प्रमुख पर्व में से एक करमा को लेकर लोगों में काफी उत्साह का वातारवरण रहा. भाई-बहन के इस पर्व में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 13, 2016 5:52 AM
त्योहार . पर्व के दौरान बहनों में दिखाया प्रकृति से प्रेम, भाई की सुख व समृद्धि की मांगी मन्नतें, उत्साह का दिखा माहौल
मिहिजाम : करमा पर्व इलाके में धूमधाम से मनाया गया. आदिवासियों के प्रमुख पर्व में से एक करमा को लेकर लोगों में काफी उत्साह का वातारवरण रहा. भाई-बहन के इस पर्व में बहन अपने भाई की दीघार्यु होने की कामना करती है. शुक्ल पक्ष की पंचमी से ही इस पर्व की तैयारियां शुरु हो जाती है. महिलाएं डाली में पांच प्रकार के अनाज को बुनती है.
दसवीं दिन से वर्तियों के द्वारा करमा के गीतों का मंगल शुरु हो जाता है. इस दौरान पूरा-पूरा ग्रामीण इलाका करमा के गीतों से गुंजायमान होते रहता है. एकादशी के रोज भाई अपने बहनों के लिए कुरम डाल काटती है. जिसे बहन अपने घर लाकर डाल को आंगन में गाड़ती है, फिर डाल को अच्छी तरह सजाया जाता है. बहनें भाई की सुख समृद्धि की कामना करती है. सारी रात करमा के गीतों से माहौल गुंजायमान रहता है.
सुबह होते ही करम डाल का विसर्जन किया जाता है. नाला प्रतिनिधि के अनुसार प्रकृति व भाई-बहन का स्नेह का प्रतीक करमा पर्व प्रखंड में धूमधाम से मनाया गया. बारघरिया, जुड़ीडंगाल, मथुरा, नीलडंगाल, परिहारपुर, तिलाबनी, नतुनडीह, जामडंगाल, जोबड़ा, भेलुआ आदि गांवों में लोक परंपरा के अनुसार पर्व मनाया गया. हलांकि राय परिवारों में इस पर्व का खास प्रचलन है. यह पर्व विधि-विधान पूर्वक व्रतियों द्वारा पालन किया गया. इस पर्व से संबंधित कई प्राचीन गाथाएं भी प्रचलित है. व्रतियों ने बताया कि यह पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है.
इस दौरान बहने नौ दिन पूर्व नयी डाली लेकर तालाब घाट पर जाकर उसी डाली में बालू भरकर उसमें पांच तरह का बीज, मकई, चना, धान, कुरथी, जौ आदि बोती है. उसी दिन से बहने नौ दिनों तक स्थापित करम गोसांय के चारों ओर घूम-घूमकर नृत्य तथा गीत गाती है. ज्ञात हो कि परंपरानुसार इस पर्व के गीत खोरठा तथा मगही मिश्रीत बोली में गायी जाती है. सोमवार को नृत्य के क्रम में महिलाव्रती द्वारा -भइया हो बसले नगरिया दिहें भइया डलवा संदेश, बहिन गे सभे डलवा सरसता भेल टाकाबांसे डलवा महंगा भेल भैया हो देतलो डलवा पूजे तरो करम गोराई.
अर्थात बहन भाई से संदेश के रुप में डाला सजाने की बात कहती है. भाई उसका विदेश में है. महंगाई की असर से डाली, पूजा सामग्री खरीद पाने में भी कठिनाई हो रही है. तभी भाई सांत्वना देता है कि हम आवश्य आयेंगे और तुम्हारा डाला सजायेंगे. प्राचीन परंपरा के अनुसार आज भी इस पर्व में ब्राह्मण व पुरोहितों की आवश्यकता नहीं होती हैै. पर्व के दौरान बहने करम गोसांय से अपनी भाई की लंबी आयु की मंगल कामना करती है तथा रक्षा सूत्र भी बांधती है. फतेहपुर प्रतिनिधि के अनुसार करमा मिलन समारोह सह करमा गीत प्रतियोगिता का आयोजन मेलर समाज द्वारा डोकीडीह प्रांगण में दामोदर सिंह मेलर की अध्यक्षता में संपन्न हुआ. श्री सिंह ने पर्व की महता बतायी. मौके पर संतोष सिंह मेलर, केशोरी सिंह मेलर, रवि राय मेलर, रामकृष्ण राय मेलर के अलावा महिला व युवतियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. नारायणपुर प्रतिनिधि के अनुसार भाई-बहन के प्यार का प्रतीक का पर्व करमा प्रकृति पूजा से जुड़ा हुआ है.
पर्व को लेकर कई स्थानों पर भाइयों ने पंडाल के भीतर करम गोसाई को लगाया गया है. करमा जीवन में कर्म के महत्व का पर्व है. तीज के विसर्जन के बाद करमा पर्व का आगमन भादो मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की रात को करमा पर्व मनाया जाता है. लगातार नौ दिनों तक चलने वाले करमा पर्व प्रखंड के सभी क्षेत्रों की महिलाओं द्वारा मनाया जाता है. इस पर्व में सभी बहनें अपने भाई के दीघार्यु की कामना करते हैं.
दूसरी ओर करम अखाड़ा में चारों ओर भेलवा, सखुआ, आदि खड़ा किया जाता है. युवक-युवतियां करम नृत्य प्रस्तुत करती हैं. दूसरे दिन सुबह भेलवा वृक्ष की टहनियों को धान के खेत में गाड़ दिया जाता है. ऐसा करने से फसल सुरक्षित रहते हैं.

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