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सत्संग का सर्वोत्तम मार्ग है भागवत कथा : सिया तान्या शरण

मिथिला कुंज करमाटांड़ ठाकुरबाड़ी में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा चल रहा है. कथा वाचिका सिया तान्या शरण ने कहा कि संस्कार के लिए सत्संग जरूरी है.

By Prabhat Khabar News Desk | September 9, 2024 10:12 PM

नारायणपुर. विद्यासागर के पावन कर्म भूमि रही मिथिला कुंज करमाटांड़ ठाकुरबाड़ी में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा चल रहा है. कथा के प्रथम दिवस को कथा वाचिका सिया तान्या शरण ने कथा सुनायी. कहा कि संस्कार के लिए सत्संग जरूरी है. सत्संग का सर्वोत्तम मार्ग भागवत कथा है. इसके श्रवण और अनुसरण से मानव के जीवन में सत्कर्म का आगमन होता है. अपने बच्चों को संस्कार देने के लिए प्रतिदिन मंदिर भेंजे. धार्मिक ग्रंथों में समाहित तथ्यों को बताएं. वैसे भी भारत की संस्कृति और सभ्यता भी अपने में अनोखी है. अपने बच्चों को हम सभ्यता और संस्कृति से भी समय-समय पर अवगत कराते रहे. कथा व्यास सिया तान्या शरण ने श्रीमद् भागवत कथा का संक्षिप्त में श्रोताओं को सार बताया. कहा कि भागवत अवरोध मिटाने वाली उत्तम अवसाद है. भागवत का आश्रय करने वाला कोई भी दुखी नहीं होता है. भगवान शिव ने शुकदेव बनकर सारे संसार को भागवत सुनाई है. कथा व्यास ने श्रोताओं को कर्मों का सार बताते हुए कहा कि अच्छे और बुरे कर्मों का फल भुगतना ही पडता है. उन्होंने भीष्म पितामह का उदाहरण देते हुए कहा कि भीष्म पितामह 6 महीने तक वाणों की शैय्या पर लेटे थे. जब भीष्म पितामह वाणों की शैय्या पर लेटे थे तब वे सोच रहे थे कि मैंने कौन सा पाप किया है जो मुझे इतने कष्ट सहन करना पड रहे है. उसी वक्त भगवान कृष्ण भीष्म पितामह के पास आते हैं. तब भीष्म पितामह कृष्ण से पूछते है कि मैंने ऐसे कौन से पाप किये है कि वाणों की शैय्या पर लेटा हूं पर प्राण नहीं निकल रहे हैं. तब भगवान कृष्ण ने भीष्म पितामह से कहा कि आप अपने पुराने जन्मों को याद करो और सोचो कि आपने कौन सा पाप किया है. भीष्म पितामह बहुत ज्ञानी थे. उन्होंने कृष्ण से कहा कि मैंने अपने पिछले जन्म में रतीभर भी पाप नहीं किया है. इस पर कृष्ण ने उन्हें बताते हुए कहा कि पिछले जन्म में जब आप राजकुमार थे और घोडे पर सवार होकर कहीं जा रहे थे. उसी दौरान आपने एक नाग को जमीन से उठाकर फेंक दिया तो कांटों पर लेटा दिया था पर 6 माह तक उसके प्राण नहीं निकले थे. उसी कर्म का फल है जो आप 6 महीने तक वाणों की शैय्या पर लेटे हैं. इसका मतलब है कि कर्म का फल सभी को भुगतना होता है. इसीलिए कर्म करने से पहले कई बार सोचना चाहिए. भागवत भाव प्रधान और भक्ति प्रधान ग्रंथ है. भगवान पदार्थ से परे हैं, प्रेम के अधीन है. कहा कि सत्यनिष्ठ प्रेम के पुजारी भक्त भगवान के अति प्रिय होते हैं. कलयुग में कथा का आश्रय ही सच्चा सुख प्रदान करता है. कथा श्रवण करने से दुख और पाप मिट जाते हैं. सभी प्रकार के सुख एवं शांति की प्राप्ति होती है. भागवत कलयुग का अमृत है और सभी दुखों की एक ही औषधि भागवत कथा है.

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