नारायणपुर. भाजपा जनजाति मोर्चा की ओर से बांग्लादेशी घुसपैठिये व हेमंत सरकार के आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ नारायणपुर हटिया से रैली निकाली गयी, जो प्रखंड मुख्यालय तक गयी. रैली का नेतृत्व भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रखंड अध्यक्ष बलदेव हांसदा ने किया. रैली में भाजपा नेता सुनील कुमार हांसदा, मोर्चा के जामताड़ा जिलाध्यक्ष मंगल सोरेन, अर्जुन सोरेन, बुधराम सोरेन, श्याम कुमार सोरेन, भाजपा नारायणपुर मंडल अध्यक्ष दीपक सिन्हा, भाजपा नेता संजय मंडल शामिल हुए. इसमें संताल परगना क्षेत्र के सभी जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठिये के कारण आदिवासी समाज की घटती आबादी की जांच के लिए एसआइटी का गठन से संबंधित राज्यपाल के नाम से नारायणपुर बीडीओ को ज्ञापन सौंपा गया. सुनील कुमार हांसदा ने कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठिये की समस्या झारखंड में विकराल रूप धारण करती जा रही है. घुसपैठियों के कारण सबसे ज्यादा आदिवासी समाज प्रभावित है. बांग्लादेशी घुसपैठ लव जिहाद, लैंड जिहाद के माध्यम से आदिवासी बेटियों से शादी रचा रहे हैं और उनकी जमीन भी कब्जा कर रहे हैं. अब तो आदिवासी महिला के लिए आरक्षित सीट पर जन प्रतिनिधि बनाकर राजनीतिक में रूप से भी बांग्लादेशी घुसपैठिये मजबूत हो रहे हैं. 1951 के जनगणना रिपोर्ट झारखंड की डेमोग्राफी बदल रही है. राज्य में आदिवासियों की आबादी 36 प्रतिशत थी जो 2011 की जनसंख्या रिपोर्ट में घटकर 26 प्रतिशत हो गयी. उसी प्रकार हिंदू आबादी 87.9 प्रतिशत से घटकर 81.7 प्रतिशत हो गयी, जबकि मुस्लिम आबादी 8.9 प्रतिशत बढ़कर 14.5 प्रतिशत हो गयी. इसी प्रकार यदि केवल संथाल परगना क्षेत्र की जनगणना रिपोर्ट पर नजर डालें तो 1951 में आदिवासियों की आबादी 44.67 प्रतिशत थी जो 2011 में घटकर 28.11 प्रतिशत पर आ गयी, जबकि मुस्लिम आबादी 9.44 प्रतिशत से बढ़कर 22.73 प्रतिशत पहुंच गयी. अन्य समुदायों की जनसंख्या 45.9 प्रतिशत से घट कर 44.2 प्रतिशत पर पहुंच गयी. आज एक-एक बूथों पर 12.3 प्रतिशत तक मतदाताओं में वृद्धि दर्ज हुई है. ऐसी परिस्थिति में बांग्लादेशी घुसपैठियों को राज्य सरकार का संरक्षण हो रहा है. झामुमो, कांग्रेस जैसे सत्ताधारी दल तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं. अब तो स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है की आदिवासी समाज के लोग मुस्लिम बहुल गांव से पलायन कर रहें. दहशत में जीने में मजबूर हैं. अपने धार्मिक आयोजन भी नहीं कर पा रहे हैं. न्यायालय के आदेश के बावजूद राज्य सरकार आदिवासियों की लूटी हुई जमीन से बांग्लादेशी का कब्जा नहीं हटा पा रही है.
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