धसनियां, चापुड़िया और फतेहपुर डाकबंगले बता रहे ब्रिटिशकालीन धरोहरों की दुर्दशा राजेश चौधरी, फतेहपुर ब्रिटिशकालीन धरोहरों के संरक्षण और उनकी ऐतिहासिक विरासत को सहेजने का विषय आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना अतीत में था. कभी शाही ठाठ-बाट और उच्चाधिकारियों के लिए बनाए गए धसनियां, चापुड़िया और फतेहपुर डाकबंगले आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. ये संरचनाएं, जो कभी प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र और प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक थीं, अब जर्जर अवस्था में पहुंच चुकी हैं. इन ऐतिहासिक स्थलों के पुनरुद्धार की मांग वर्तमान समय की एक बड़ी आवश्यकता बन चुकी है. फतेहपुर प्रखंड के आसनबेड़िया पंचायत स्थित धसनियां गांव में स्थित यह डाकबंगला ब्रिटिशकालीन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है. स्वतंत्रता से पूर्व यह स्थान उच्चाधिकारियों के कोर्ट कैम्प और ग्रामीणों की समस्याओं के निराकरण का केंद्र हुआ करता था. स्वतंत्रता के बाद भी यह अधिकारी वर्ग का विश्राम स्थल बना रहा. घने जंगलों से घिरा यह स्थल न केवल मनोरम था, बल्कि वन विभाग और स्थानीय प्रशासन के लिए रणनीतिक महत्व भी रखता था. आज यह डाकबंगला जर्जर दीवारों, दीमक लगे दरवाजों और टूटते छज्जों के बीच अपनी दुर्दशा की कहानी खुद बयां कर रहा है. भवन में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं, और चारों ओर बर्बादी का मंजर है. अगर इसे फिर से संरक्षित कर उपयोग में लाया जाए, तो यह पर्यटन और प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र बन सकता है. चापुड़िया डाकबंगला हुआ उपेक्षा का शिकार गोविंदपुर-साहिबगंज हाईवे से सटे चापुड़िया मोड़ पर स्थित यह डाकबंगला कभी अंग्रेज हुकूमत के बड़े अफसरों का प्रमुख आवास स्थल था. समय के साथ, यह उपेक्षा का शिकार होता चला गया। छत पर उगे पेड़ और जंगली जानवरों के आशियाने ने इसे एक खंडहर में तब्दील कर दिया है. यहां स्थित कूप और रसोईघर, जो कभी व्यस्त और उपयोगी थे, अब केवल खंडहर मात्र हैं. यहां वन विभाग के कर्मचारी एक समय में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते थे, जिससे डाकबंगला परिसर सुरक्षित और संरक्षित था. लेकिन समय के साथ कर्मचारियों का स्थानांतरण और प्रशासनिक उदासीनता ने इस धरोहर को उपेक्षा के गर्त में धकेल दिया. परिसर में लगाये गये हरे-भरे पेड़ अब चोरों की भेंट चढ़ चुके हैं, और यह स्थल बंजर रूप में नजर आता है. फतेहपुर डाकबंगला हुआ वीरान कभी फतेहपुर थाना के संचालन का मुख्यालय रह चुका फतेहपुर डाकबंगला अब पूरी तरह से वीरान पड़ा हुआ है. अंग्रेजी शासनकाल में यह उच्चाधिकारियों के रुकने और जंगल सफारी का केंद्र था. लेकिन आज यह स्थान सांप-बिच्छू और अन्य जंगली जानवरों का ठिकाना बन चुका है. थाना भवन बनने के बाद यह डाकबंगला धीरे-धीरे महत्वहीन होता गया. इसकी छतें टूट चुकी हैं, और परिसर वीरान हो चुका है. यह डाकबंगला अब केवल एक प्राचीन धरोहर के रूप में खड़ा है, जिसे तत्काल संरक्षण और पुनरुद्धार की आवश्यकता है. पुनरुद्धार की आवश्यकता ये तीनों डाकबंगले हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर हैं, जो हमारी सामूहिक स्मृतियों और प्रशासनिक व्यवस्था के प्रतीक हैं. यदि इनका पुनर्निर्माण और संरक्षण किया जाए, तो न केवल ये स्थल पर्यटकों को आकर्षित करेंगे, बल्कि स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा कर सकते हैं. सरकार और संबंधित विभागों को चाहिए कि इन धरोहरों की महत्ता को समझते हुए इनका जीर्णोद्धार करें. चारदीवारी और आवश्यक संरचनाओं के निर्माण से न केवल इन स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है, बल्कि इनकी ऐतिहासिक महत्ता को भी बचाया जा सकता है. धसनियां, चापुड़िया और फतेहपुर डाकबंगले केवल पुरानी इमारतें नहीं, बल्कि इतिहास के जीवंत प्रमाण हैं. इन्हें बचाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी हमारे गौरवशाली अतीत का अनुभव कर सकें.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है