कृष्ण और सुदामा की मित्रता प्रेरणा का अथाह सागर : सिया तान्या शरण
श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन कथावाचिका सिया तान्या शरण ने विभिन्न प्रसंगों पर कथा सुनायी.
नारायणपुर. करमाटांड प्रखंड क़े ठाकुरबाड़ी परिसर में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन कथावाचिका सिया तान्या शरण ने विभिन्न प्रसंगों पर कथा सुनायी. उन्होंने कथा में भगवान श्रीकृष्ण के अलग-अलग लीलाओं का वर्णन किया. कहा मां देवकी के कहने पर छह पुत्रों को वापस लाकर मां देवकी देना, सुभद्रा हरण का आख्यान कहना एवं सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि मित्रता कैसे निभाई जाए यह भगवान श्री कृष्ण सुदामा से समझ सकते हैं. सुदामा पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र से सखा सुदामा मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे. सुदामा द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढ़ने लगे द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया. तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं, इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है. अपना नाम सुदामा बता रहा है जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना प्रभु सुदामा सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे सामने सुदामा सखा को देखकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया. सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया. दोनों की ऐसी मित्रता देखकर सभा में बैठे सभी लोग अचंभित हो गये. कृष्ण सुदामा को अपने राज सिंहासन पर बैठाया हुआ. उन्हें कुबेर का धन देकर मालामाल कर दिया. जब जब भी भक्तों पर विपदा आ पड़ी है. प्रभु उनका तारण करने अवश्य आए हैं. कहा कि जो भी भागवत कथा का श्रवण करता है. उसका जीवन तर जाता है.
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