सुदामा-कृष्ण की जैसी हो मित्रता, जो बने मिसाल: जगदानंद महाराज

श्री धाम वृंदावन से आए विख्यात कथावाचक जगदानंद महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण और उनके परम मित्र सुदामा के मधुर संबंध का वर्णन किया.

By Prabhat Khabar News Desk | November 13, 2024 6:45 PM
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प्रतिनिधि,

बिंदापाथर

. बिंदापाथर पंचायत के हरिनादह हरि मंदिर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के समापन पर, श्री धाम वृंदावन से आए विख्यात कथावाचक जगदानंद महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण और उनके परम मित्र सुदामा के मधुर संबंध का वर्णन किया. उन्होंने कहा कि सुदामा न केवल भगवान श्रीकृष्ण के घनिष्ठ मित्र थे, बल्कि वेद-पुराणों के विद्वान, एक महान ब्राह्मण भी थे. कृष्ण के साथ गुरुकुल में पढ़ने वाले सुदामा एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण परिवार से थे. हालात इतने विकट थे कि बच्चों का पेट भरना भी कठिन हो गया था. गरीबी से आहत होकर एक दिन सुदामा की पत्नी ने उनसे कहा कि वे खुद भूखे रह सकती हैं, परंतु बच्चों को भूखा नहीं देख सकतीं. पत्नी की बात सुनकर सुदामा गहरे विचार में पड़ गए और उनसे इसका उपाय पूछा. इस पर पत्नी ने सुझाया कि द्वारका के राजा कृष्ण, जो आपके परम मित्र हैं, उनके पास सहायता के लिए क्यों न जाया जाये. सुदामा द्वारका पहुंचे तो भगवान श्रीकृष्ण अपने मित्र के स्वागत में नंगे पांव दौड़ पड़े. यह देखकर सभी चकित रह गये कि एक समृद्ध राजा और एक गरीब ब्राह्मण के बीच कैसी मित्रता हो सकती है. कृष्ण सुदामा को अपने महल में ले गये और अपने गुरुकुल के दिन याद कर प्रसन्न हुए. उन्होंने सुदामा से पूछा कि उनकी भाभी ने उनके लिए क्या भेजा है. संकोचवश सुदामा चावल की पोटली छुपाने लगे, लेकिन कृष्ण ने वह पोटली लेकर उसमें से सूखे चावल प्रेमपूर्वक खाना शुरू कर दिया. सुदामा की विपन्नता देख कृष्ण की आंखों में आंसू आ गये. सुदामा ने कुछ दिन द्वारका में बिताये, लेकिन अपनी संकोची स्वभाव के कारण कुछ भी मांगने में असमर्थ रहे. विदाई के समय कृष्ण उन्हें विदा करने स्वयं द्वारका के द्वार तक आए और उनसे गले मिले. घर लौटते समय सुदामा चिंतित थे कि उनकी पत्नी उनसे पूछेगी कि वह क्या लाए हैं. पर जब वे अपने गांव पहुंचे, तो उनकी झोपड़ी गायब थी; उसके स्थान पर एक सुंदर भवन खड़ा था. सुदामा की पत्नी सुशीला, सुंदर वस्त्रों में सजी हुई बाहर आईं और कृष्ण की कृपा से उनकी गरीबी दूर होने की बात कही. सुदामा के मन में कृष्ण के प्रति प्रेम और कृतज्ञता का भाव उमड़ पड़ा, और उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलक आये. यह कथा कृष्ण-सुदामा की सच्ची मित्रता की मिसाल प्रस्तुत करती है. ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण ने सुदामा को इतना धनवान बना दिया कि लोग आज भी उनकी मित्रता को आदर्श मानते हैं. इस सजीव चित्रण ने वहां उपस्थित लोगों को भावविभोर कर दिया, और कथा के समापन पर परिसर में गूंज उठी धुन ” अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो… ” ने भक्तों को भावविभोर कर झूमने पर मजबूर कर दिया.

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