मंडरो के राजबाड़ी दुर्गा मंदिर में 300 वर्षों से हो रही है मां दुर्गा की पूजा

नारायणपुर प्रखंड के मंडरो स्थित राजबाड़ी दुर्गा मंदिर प्राचीनतम दुर्गा मंदिरों में से एक है.

By Prabhat Khabar News Desk | October 3, 2024 8:04 PM

नारायणपुर. नारायणपुर प्रखंड के मंडरो स्थित राजबाड़ी दुर्गा मंदिर प्राचीनतम दुर्गा मंदिरों में से एक है. नवरात्र के अवसर पर कई गांव के श्रद्धालु उक्त मंदिर में देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना करने पहुंचते है. मंडरो दुर्गा मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है. इस मंदिर में मां के नौ स्वरूपों की पूजा होती है. मंदिर के इतिहास के बारे में राजपरिवार के गिरिधर प्रसाद सिंह बताते हैं कि आज से करीब 300 वर्ष पूर्व नारायणपुर प्रखंड के घांटी (नारायणपुर) राजतंत्र में देवी दुर्गा की पूजा होती रही. उस समय घांटी राजपरिवार में चार राजकुमार थे. चूंकि शासन औऱ क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से राजा का क्षेत्र बहुत बड़ा था. इस कारण चारों राजकुमारों ने मौजा अनुसार अपना-अपना क्षेत्र बांट लिया. इसी क्रम में क्रमशः सबसे बड़े राजकुमार को घांटी, मध्य को मंडरो (राजा शोभा सिंह) , संझले को पिंडारी (विद्यासागर) व कनिष्ठ को आमजोरा राज्य मिला और शासन चलाने लगे. बंटवारे के कई वर्षों तक मंडरो के राजा बने राजकुमार राजा शोभा सिंह ने भी घांटी में ही देवी दुर्गा की पूजा अर्चना की. परंतु जब उनके क्षेत्र के प्रजाओं ने उन्हें मंडरो में ही देवी दुर्गा की पूजा अर्चना कराने का अनुरोध किया तब राजा शोभा सिंह बंगला संवत सन 1642 के 13 बैशाख को देवी दुर्गा की बेदी को घांटी से मंडरो लाकर स्थापित किया. तब से लेकर वर्तमान समय तक देवी दुर्गा की पूजा अर्चना राज परिवार के सदस्य ही करते आ रहे है. राजपरिवार के सदस्य ने बताया कि जब राजा शोभा सिंह देवी दुर्गा की पूजा अर्चना करने को तैयार हुए तब उनके रियासत में पड़ने वाले 36 मौजा के प्रजाओं ने प्रतिवर्ष देवी को बकरा की बलि देने के लिए प्रत्येक मौजा से एक-एक बकरा देने की शुरुआत की. राजा के साथ मिलकर 36 मौजा के सभी प्रजा देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना धूमधाम से करने लगे. राजा के निर्देश पर दीवान पूजा के व्यवस्था राजकोषी से करने लगे, तब देवी दुर्गा का मंदिर मिट्टी व फूस की बनी. इसके बाद हाल ही के वर्षों में मंदिर का पुनर्निर्माण कर भव्य रूप दिया गया है. वर्तमान में भी उक्त मंदिर में बकरे की बलि दी जाती है. नवमी को आज भी क्षेत्र की प्रजा परंपरा के अनुसार बकरे की बली देते हैं. मंडरो के इस दुर्गा मंदिर में सर्वप्रथम राजा शोभा सिंह ने पूजा अर्चना की थी. इसके बाद क्रमशः राजा दौलत सिंह, राजा निर्मल सिंह, राजा नीलकंठ सिंह, राजा धनपत लाल सिंह, राजा हरे कृष्णलाल सिंह, राजा रघुनंदन लाल सिंह, राजा लाल मोहन सिंह, राजा गोविंद लाल सिंह, राजा शिव प्रसाद सिंह, राजा वंशीधर लाल सिंह, राजा मोतीलाल सिंह एवम इसके बाद राजवंश के अर्धेन्धु नारायण सिंह, चंद्र मोहन सिंह, पंचम सिंह, शशिधर प्रसाद सिंह ने किया था. वर्तमान में देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना की समस्त व्यवस्था व खर्च राजपरिवार के गिरिधर प्रसाद, अशोक सिंह, गोलक बिहारी सिंह, राजकिशोर सिंह , निरंजन सिंह, अंतु सिंह, हरि सिंह, अजय सिंह करते हैं. प्रखंड मुख्यालय से मंडरो स्थित उक्त मंदिर की दूरी 6 किलोमीटर है, जबकि निकटतम रेलवे स्टेशन विद्यासागर से दूरी 8 किलोमीटर है. देवी दुर्गा की प्रतिमा का निर्माण निरसा के मूर्तिकार वंशानुगत करते आ रहे हैं.

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